उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक पौराणिक नगर मेरठ में स्थित औघड़नाथ मंदिर में धार्मिक क्रांति अठारह सौ सत्तावन में प्रारंभ हुई थी। एक सौ चौंतीस साल बाद इसी मंदिर में प्रेम की क्रांति जन्म ले रही है। सुखद दांपत्य जीवन के लिए यहां भावी जीवनसाथी का चयन करना अच्छा माना जाने लगा है।
यही कारण है कि मंदिर परिसर में तय होते वैवाहिक रिश्तों तथा प्रेमी युगलों को अक्सर देखा जा सकता है-
आस्था एवं श्रद्धा का केंद्र। साथ में राष्ट्रीय गौरव का स्मारक भी। जहां रोज कई जोड़ियां बनती हैं। ऊं नमः शिवाय के उद्घोष के साथ भक्तों का सैलाब उमड़ता है। घंटों की आवाज गूंजती है।
प्राचीन सिद्धपीठ औघड़नाथ (काली पलटन) शिव मंदिर मेरठ का ऐसा ही एक पवित्र धाम है। यदि आप आस्तिक हैं, तो मेरठ आने पर भगवान औघड़नाथ के मंदिर में शीश नवाने का लोभ नहीं छोड़ सकते। शिवरात्रि पर दूरदराज के लाखों श्रद्धालु हरिद्वार या गंगोत्री से गंगाजल अपने कंधों पर लटका कर यहां पहुंचते हैं।
यहां के प्राचीन शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं। मनोकामना के लिए शिवभक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है। यह स्थल सिर्फ शिवभक्तों की धार्मिक भावना के लिए ही नहीं, राष्ट्रीय भावना के लिए भी विख्यात है। अठारह सौ सत्तावन के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी यहीं फूटी थी। यहीं पर सशस्त्र संग्राम का शंखनाद किया गया था।
औघड़नाथ शिव मंदिर की पावन धरा पर दो भारतीय सैनिकों ने एक व्यक्ति के हाथ से पानी पीना मना कर दिया। उस व्यक्ति ने भारतीय सैनिकों को धिक्कारा "एक हिंदुस्तानी के हाथ से पानी पीते हुए तुम्हें शर्म आती है, लेकिन ये गोरी पलटन जब तुम्हें चर्बी लगे कारतूस देती है, तो तुम उन्हें मुंह से खोल देते हो! कहां गया तुम्हारा धर्म ? क्या यही है तुम्हारा धर्म?" भारतीय सैनिक फटी आँखों से उस व्यक्ति को देखते रह गए।
धर्म का अपमान बस, फिर क्या था, चर्बी लगे कारतूसों के खिलाफ भारतीय सैनिक लामबंद हो गए। जिन भारतीय सैनिकों को अंग्रेज काली पलटन कहते थे, उसी काली पलटन वाले सैनिकों ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए।
'दिल्ली चलो, दिल्ली चलो' का नारा लगाते बाबा औघड़नाथ की जय-जयकार करते हुए बहादुर शाह जफर की ताजपोशी के लिए निकल पड़े। इतना ऐतिहासिक है औघड़नाथ मंदिर। क्रांति का जनक, श्रद्धा और विश्वास का संगम स्थल प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का उद्गम स्थल होने के कारण यह मंदिर जहां हर भारतीय के लिए सम्मानीय है|
वहीं भगवान शंकर के भक्तों के लिए अटूट विश्वास का केंद्र भी। भगवान शिव-पार्वती के दांपत्य जीवन को आदर्श मानने वाले यहां अपने भावी जीवनसाथी की तलाश करना श्रेयस्कर मानते हैं। साथी के चयन की इस प्रक्रिया में कभी परिवार वाले साथ होते हैं, तो कभी युवक-युवती अकेले। मंदिर परिसर में ही नए बने राधा-गोविंद मंदिर में तय होते वैवाहिक रिश्तों की बानगी अक्सर देखी जा सकती है।
प्रेम दीवानों के लिए भी यह मंदिर सुरक्षित स्थल हो चला है। भगवान को साक्षी मान कर घंटों प्रेमी युगल अपनी डेटिंग की समस्या को सुलझाते हैं। इनके लिए मंदिर भी पर्यटन स्थल हो गए हैं।
कंप्यूटर युग में युवाओं का यह नवप्रयोग कुछ लोगों की राय में संस्कृति पर आक्रमण है, तो मंदिर समिति के पदाधिकारी भी मंदिर की शुचिता को लेकर चिंतित हैं। इस बारे में मंदिर में दर्शनों के लिए आए सुनील का कहना है, "भगवान शंकर तो स्वयं प्रेम के पुजारी थे। ऐसे में अगर मंदिर में युवा अपने भावी जीवनसाथी को जानने-परखने की कोशिश करते हैं, तो इसमें बुराई क्या है? पर यह कोशिश शालीनता के दायरे में ही होनी चाहिए।"
मंदिर मौज-मस्ती का केंद्र ना बने, इसके लिए मंदिर समिति ने पुलिस-प्रशासन से भी अनुरोध किया है, वैसे सेना ने मंदिर के पास ही दो पार्कों को विकसित कर समस्या का समाधान करने का प्रयास किया है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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