हम मन से शुद्ध और तन से स्वस्थ रह सकें इसके लिए हमें मूढ़ता से बचना होगा। मूढ़ता का मतलब मूर्खता (Foolishness) से नहीं है। मूढ़ का मतलब सिर्फ़ मूर्ख (Foolish) नहीं होता। यह शब्द गहरा और पारिभाषिक है।
मनोविज्ञान जिसे बुद्ध कहता है इडियट (Idiot) कहता है उसे है दर्शनशास्त्र ने मूढ कहा है। मूर्ख और बुद्धिमान में जो फर्क होता है वह मात्रा का होता है गुण का नहीं होता जबकि मूड और बुद्धिमान में गुण का फर्क होता है, मात्रा का नहीं इसे ज़रा गहराई से समझे।
जिसे हम मूर्ख कहते हैं वह थोड़ा कम बुद्धिमान होता है और जिसे बुद्धिमान कहते हैं वह थोड़ा कम मूर्ख होता है याने दोनों के बीच जो फर्क है वह बुद्धि की मात्रा (Quantity) का है, गुण (Quality) का नहीं।
मूढ़ और बुद्धिमान में मात्रा का नहीं, गुण का फ़र्क होता है याने सवाल कम या ज्यादा बुद्धि के होने का नहीं है बल्कि इस गुण से हीन होना ही मूढ़ होना है। हम जब जब जो जो विचार या कार्य बुद्धिरहित होकर करते हैं तब तब उस उस विचार या कार्य की दृष्टि से मूढ़ होते हैं जैसे जिस डाल पर बैठे हों उसे ही काटें तो हम मूढ़ हैं।
हम ऐसे आचार विचार करें जो हमें हानि पहुंचाते हैं तो हम मूड हैं न जानते हुए भी हम इस गलतफहमी में रहें कि हम जानते मूढ़ हैं तो हम मूढ़ हैं।
हम प्रकृति और स्वाभाविकता के विपरीत आचरण करें तो हम मूढ़ हैं क्योंकि अप्राकृतिक यानी अस्वाभाविक कार्यों के परिणाम कभी अच्छे नहीं होते।
विवेक रहित होकर मन की मर्जी के अनुसार आचरण करना मूढ़ता है और यह मूढ़ता ही हमारे तन-मन को विकारस्त करके हमें अस्वस्थ और रोगी बना देती है। आचार-विचार की मूढ़ता मन को और आहार-विहार की मूढता तन को रोगी बनाती है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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