सुप्रभात का आरंभ:
प्रातः 4 से 4:30 बजे के बीच उठना एक आदर्श दिनचर्या की शुरुआत है। इस समय में ब्राह्ममुहूर्त में जागरण का महत्व बहुत अधिक होता है।
शरीर को खींचें:
उठते ही शरीर को ढीला नहीं पूजता। धीरे-धीरे उठकर शरीर को खींचें ताकि शांति और सुकून से आदर्श दिन का आरंभ हो सके।
ध्यान और आध्यात्मिक साधना:
एक छोटी सी बैठक में बैठकर ध्यान करने से मन को शांति मिलती है। इस समय में अपने इष्ट देवता या गुरुदेव की आराधना करना चाहिए।
भूमि-वंदन:
धरती माता का सम्मान करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके लिए भूमि-वंदन का रितुआल किया जा सकता है, जिससे हम अपने संबंध दृष्टि से सुदृढ़ रखते हैं।
पानी प्रयोग:
खाली पेट पानी पीना शरीर के लिए बहुत ही उपयुक्त है। इससे शरीर को ऊर्जा मिलती है और शुद्धि होती है।
कर-दर्शन और श्लोक:
दोनों हाथों के दर्शन करते हुए कुछ श्लोकों का पाठ करना, जैसे "कराग्रे रदर्शनम्" और "करदर्शनम्" एक शुभ आरंभ का संकेत होता है।
साधना का समापन:
आखिर में, एक शांत और सकारात्मक माहौल में साधना को समाप्त करना चाहिए। हंसी भरी कुछ मिनट के लिए आत्मा को प्रसन्न करना, जीवन को उत्साही और पौर्णिक बनाने का आदर्श तरीका है।
आदर्श दिनचर्या का सकारात्मक प्रभाव:
यह सभी प्राकृतिक और आध्यात्मिक अभ्यास आदर्श दिनचर्या का हिस्सा बनाने से हमारे जीवन को सकारात्मक दिशा में प्रवृत्ति करता है, जिससे हम स्वस्थ, उत्साही और समृद्धि पूर्ण जीवन जी सकते हैं।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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