आधुनिक जीवनचर्या के दौर में कंप्यूटर और मोबाइल के दौर में लगातार एक जगह बैठे रहना या गलत अवस्था में बैठना व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक हानिकारक साबित हो सकता है। इससे कमरदर्द और स्लिप डिस्क की समस्या देखने को मिल रही है। कुछ समय पहले तक इसका प्रभाव ज़्यादातर बढ़ती उम्र में देखने को मिलता था लेकिन अब युवा वर्ग भी इसकी चपेट में आ रहा है।
इससे परेशानी से दो आसान राहत दे सकते हैं-
1. प्लावनी प्राणायाम 2. भुजंगासन
प्लावनी प्राणायाम
इस प्राणायाम में उदर में श्वास भरने का अभ्यास किया जाता है। पेट में वायु भरकर मशक या रबड़ के गोले के समान फुला दिया जाता है। खूब वायु भर जाने पर पेट पर ठोकने से एक प्रकार की आवाज सी आती है, परन्तु इसमें ध्यान रखने की बात यह है कि जिस समय उदर में वायु भरें, तब शरीर के अन्य अंगों में वायु नहीं होनी चाहिए, तभी प्लावनी सिद्ध होगी। इस प्राणायाम में साधक का प्राण पर तो अधिकार हो ही जाता है, साथ ही उदर के सब रोगों का नाश होकर पेट मुलायम हो जाता है और आरोग्यता का विकास करता है।
कब्ज तो जड़ से समाप्त हो जाती है, जिसको सर्व रोगों का जनक कहा जाता है। समान वायु की शुद्धि, मल-मूत्र का निर्विघ्न विसर्जन, पाचन शक्ति में वृद्धि, वीर्य एवं रक्त में शुद्धि आदि अनेक लाभ होते हैं। प्लावनी प्राणायाम करके व्यक्ति इच्छानुसार पानी मैं खड़ा रह सकता है। फिर उड्डियान बंध करके वायु धीरे-धीरे बाहर निकाल दें। इस प्राणायाम को किसी अनुभवी से सीख लेना चाहिए। जो मनुष्य इसके अभ्यासी हों, वे कुछ दिन तक बिना आहार के रह सकते हैं।
भुजंगासन
पेट के बल आसन पर लेट जाएँ। सिर का अगला भाग भूमि पर टिका हुआ रहेगा। पैरों के पंजे लंबे होकर भूमि में टिकने चाहिए। एड़ियाँ और घुटने भी मिले रहें। दोनों हाथों की कोहनियाँ मुड़ी हुई ऊपर की ओर तथा उँगलियाँ कन्धों के नीचे रखकर कमर से लगी रहनी चाहिए। धीरे-धीरे ठुड्डी को ऊपर उठाते हुए ग्रीवा को जितना हो सके, पीछे की ओर मोड़िए। पेट नाभि तक उठेगा और नाभि से निचला भाग भूमि पर टिका हुआ रहेगा। अभ्यस्त हो जाने पर हाथों को भी ऊपर उठाया जा सकता है या नाममात्र का सहारा लिया जा सकता है। दस-पन्द्रह सेकेण्ड के पश्चात् धीरे-धीरे पूर्वस्थिति में आना होता है। यह अभ्यास 2 से 5 बार किया जा सकता है।
लाभ : इस आसन से भूख बढ़ती है, जठराग्नि तेज होती है, मेरुदण्ड लचीला और स्वस्थ रहता है। इस आसन से आमाशय और पीठ की पेशियों पर स्वास्थ्यकारी दबाव पड़ता है, जिससे इन भागों में रक्त प्रवाह तीव्र हो जाता है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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