दिल और दिमाग़ में संतुलन ही सुखी-सफल जीवन की कुंजी.. दिनेश मालवीय वर्तमान युग मानवता की महानतम ज्ञान-विज्ञान उपलब्धियों का युग माना जाता है. सचमुच विज्ञान और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में जो प्रगति हुई है, वह कल्पना से भी परे है. इसने जीवन को बहुत आसान बना दिया है. जिन चीजों को प्राप्त करने के लिए हमें बहुत तकलीफें झेलनी पड़ती थीं, वे आज हमें सहज उपलब्ध हो जाती हैं. कंप्यूटर, एंड्रॉयड फोन, इंटरनेट सहित कुछ ऐसी ईजाद हुई हैं, जिनके कारण पूरी दुनिया एक छोटे-से गाँव जैसी हो गयी है. हमें दुनिया के किसी भी कोने की कोई भी जानकारी एक बटन दबाते ही मिल जाती है.
दुनिया का सारा ज्ञान इंटरनेट के जरिये हमारे मोबाइल स्क्रीन पर एक क्षण में मिल जाती है. कम्युनिकेशन, ट्रैवल आदि जितने फास्ट हो गए हैं, वह हमने सपने में भी नहीं सोचा था. निश्चय ही यह मानव के मस्तिष्क के विकास की देन हैं. हमारे दिमाग का विकास बहुत ही चमत्कारिक ढंग से हुआ है. आज के बच्चे भी जन्म से ही बहुत तीक्ष्ण बुद्धि के होते हैं. लेकिन इसमें एक बहुत बड़ा विरोधाभास भी है. इतनी सुख-सुविधाएं अर्जित करने के बाद भी हमें उस अवस्था की प्राप्ति नहीं हो रही जिसे आनंद कहते हैं. बहुत अधिक सुविधाएं, हमें सुख और सुविधाएं तो दे रही हैं, लेकिन हम मानसिक शान्ति, तृप्ति और आनंद से बहुत दूर हैं.
जिस प्रगति से संसार में प्रेम, भाईचारा, सद्भाव जैसे भावों का विकास होना था, उसने इनके विपरीत भावों को मजबूत किया है. यही कारण है कि आज संसार में ऐसे हथियार बन गये हैं, जो क्षण भर में पूरी दुनिया को राख के ढेर में बदल सकते हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि यदि युद्ध में इन हथियारों का प्रयोग हो गया तो मनुष्य तो मनुष्य पृथ्वी पर घास का एक तिनका तक नहीं बचेगा. सारी भौतिक प्रगति के बावजूद सामाजिक और पारिवारिक जीवन का ताना बाना पूरी तरह बिखर रहा है. संबंधों में अब वैसी प्रगाढ़ता, ऊष्मा और मिठास नहीं रह गयी है, जो इन सुख-सुविधाओं के पहले थी. पूरी दुनिया, समाज और परिवार एक बाज़ार के रूप में तब्दील होता जा रहा है. इसका कारण एक ही है, कि हमने अपने दिमाग के विकास पर एकतरफा ज़ोर दिया. जिस व्यक्ति की बौद्धिक मेधा या Intelligence Quotient ज्यादा होती है, उसका अधिक सम्मान होता है. जो व्यक्ति भावुक होता है, हम उसका मजाक उड़ाते हैं.
हम जिस चीज़ पर ज्यादा बल देते हैं, उसका विकास होता है. लेकिन सिर्फ दिमाग़ ही तो जीवन नहीं है ! पूरे शरीर में दिमाग की भूमिका निश्चित ही बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन दिमाग़ ही सबकुछ नहीं है. दिमाग या बुद्धि को बहुत अधिक महत्व देकर हमने ह्रदय यानी दिल की एक तरह से पूरी तरह उपेक्षा कर दी. यही आज के युग की सबसे बड़ी भूल है. इस युग में महाविनाश का कारण यही. आपके पास एक से एक बढ़कर हथियार हैं, लेकिन उनका उपयोग किस पर, कहाँ और कब करना है, इसका विवेक नहीं होने पर इनका उपयोग अनावश्यक विनाश के लिए ही होगा. बन्दर के हाथ में उस्तरा की कहावत चरितार्थ होगी.
यह विवेक सिर्फ भावनात्मक विकास से संभव है. इसे Emotional Quotient या भावनात्मक मेधा कहते हैं. भावनात्मक मेधा आखिर है क्या ? दूसरों के भावों और भावनाओं को समझने की शक्ति ही भावनात्मक मेधा है. आज सबसे बड़ी कमी इसी की है. कोई भी दूसरे की भावनाओं को न तो समझ रहा है और न समझने की कोशिश कर रहा है. करना भी चाहे, तो नहीं कर सकता, क्योंकि बचपन से ही सिर्फ हमें दिमाग के विकास का शिक्षण-प्रशिक्षण दिया गया है. भावनात्मक मेधा की ज़रुरत खासकर उन लोगों को है, जो परिवारों, संस्थाओं, दलों, संगठनों आदि के प्रमुख हैं. जब तक वे अपने लोगों के मन के भाव और भावनाओं को नहीं समझेंगे, तब तक सही नेतृत्व किस तरह दे सकेंगे. वे यही सोचेंगे कि हम जो कर रहे हैं, जो सोच रहे हैं, जो करना चाहते अहिं, जो करेंगे, वही सही है. उन्हें पता ही नहीं होगा कि उनसे जुड़े लोग क्या सोचते हैं और क्या करना चाहते हैं.
यदि पता चल भी जाए, तो भावनात्मक मेधा के अभाव में वे उनकी अनदेखी करते रहेंगे. आज जिस तरह का सामाजिक और पारिवारिक बिखराव हो रहा है, वैसा कभी नहीं. हर रिश्ता सिर्फ गिव एंड टेक का होता जा रहा है. दिल की गहराई से कोई किसी को चाहता ही नहीं है. जिससे जितना काम हो या जिससे जितना स्वार्थ हो, उससे उतना ही रिश्ता रखा जाता है. यहाँ तक कि सगे भाई-बहनों, माता-पुत्र और पिता-पुत्र में आत्मिक सम्बन्ध कम हो गए हैं. मित्रता जैसा पवित्र सम्बन्ध भी इसका शिकार हो गया है. आज के युग में यदि सुखी और आनंदित जीवन चाहिए तो दिल और दिमाग में संतुलन बनाना बहुत ज़रूरी है. मनुष्य का सिर्फ बौद्धिक नहीं बल्कि भावनात्मक विकास भी होना चाहिए. ऐसा नहीं होने की स्थिति में पूरी मानवता का विनाश होना निश्चित है.
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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