माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन बसंत पंचमी मनाई जाती है। यह दिन ज्ञान की देवी मां सरस्वती के पूजन का दिवस भी है। बच्चों का विद्यारंभ संस्कार इसी दिन किया जाता है। इस दिन स्वयंसिद्ध मुहूर्त होता है इसलिए बिना मुहूर्त के विवाह संपन्न किए जाते हैं।
इस दिन मां देवी सरस्वती की आराधना की जाती है। इस दिन महिलाएं पीले रंग का वस्त्र धारण करती हैं। भारत समेत नेपाल में छह ऋतुओं में सबसे लोकप्रिय ऋतु बसंत है। इस ऋतु में प्रकृति का सौंदर्य मन को मोहित करता है।
बसंत पंचमी के मौके पर आइये जानते हैं कैसे प्राप्त हुई संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी
सृष्टि रचना के दौरान भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। ब्रह्माजी अपने सृजन से संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगा कि कुछ कमी है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया है।
विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल का छिड़काव किया, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही कंपन होने लगा। इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति प्रकट हुई। यह शक्ति एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री थी। जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरे हाथ में वर मुद्रा था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी।
ब्रह्माजी ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया, जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हुई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हुआ। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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