Published By:धर्म पुराण डेस्क

10 सितंबर को Bhadrapada Purnima 2022, ऐसा करने से पितरों की तृप्ति मिलती है.

भाद्रपद पूर्णिमा 2022: भाद्रपद पूर्णिमा किस दिन है? जानिए सही तारीख और इसका धार्मिक महत्व..

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि आज है. भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि आज शुक्रवार 09 सितंबर को होगी.

भाद्रपद पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों, झीलों, तालाबों आदि में स्नान करने और ब्राह्मणों को दान देने से पुण्य का फल मिलता है। भाद्रपद पूर्णिमा तिथि 09 सितंबर शाम 06.07 बजे से शुरू हो रही है।

भाद्रपद पूर्णिमा के दिन पूर्णिमा श्राद्ध किया जाता है। पितृपक्ष दूसरे दिन से ही शुरू हो जाता है।

वर्तमान में भाद्रपद मास का शुक्ल पक्ष चल रहा है, इसकी पंद्रहवीं तिथि पूर्णिमा तिथि होती है, जिसे भाद्रपद पूर्णिमा कहा जाता है। भाद्रपद पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों, झीलों, तालाबों आदि में स्नान करने और ब्राह्मणों को दान देने से पुण्य का फल मिलता है। इसके अलावा भाद्रपद पूर्णिमा का एक और महत्व है।

भाद्रपद पूर्णिमा के दिन पूर्णिमा श्राद्ध किया जाता है। पितृपक्ष दूसरे दिन से ही शुरू हो जाता है। हालांकि भाद्रपद पूर्णिमा श्राद्ध को पितृपक्ष का हिस्सा नहीं माना जाता है। जिन लोगों के पूर्वजों की मृत्यु पूर्णिमा के दिन हुई थी, वे सर्व पितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध करते हैं।

भाद्रपद पूर्णिमा तिथि 2022:

पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि शुक्रवार 09 सितंबर को सायं 06:07 बजे से प्रारंभ हो रही है. भाद्रपद पूर्णिमा तिथि अगले दिन 10 सितंबर को दोपहर 03:28 बजे समाप्त होगी। ऐसे में भाद्रपद पूर्णिमा 10 सितंबर को होगी. इस दिन पितरों के लिए श्राद्ध कर्म, स्नान, व्रत आदि का आयोजन किया जाएगा।

भाद्रपद पूर्णिमा श्राद्ध समय:

जिन लोगों को इस दिन भाद्रपद पूर्णिमा का श्राद्ध कर्म करना है, वे इसे रोजाना सुबह 11.30 बजे से दोपहर 2.30 बजे तक कर सकते हैं। श्राद्ध कर्म पूरा होने के बाद पितरों को तर्पण करना चाहिए और उन्हें तृप्त करने के बाद परिवार की खुशी के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।

भाद्रपद पूर्णिमा का चंद्रोदय:

इस दिन चंद्रमा शाम 06:49 बजे से उदय होगा । 

इस त्योहार में सूर्योदय से पहले उठकर तीर्थ या पवित्र नदी के जल में स्नान किया जाता है। फिर पूरे दिन सूर्य को अर्घ्य देने, भोग लगाने, व्रत करने और भगवान विष्णु की पूजा करने का संकल्प लिया जाता है। इसलिए इस दिन को स्नान और दान की पूनम कहा जाता है। इस दिन तिल और वस्त्र का दान करने से बहुत शक्ति मिलती है। 

तुलसी और पीपल वृक्ष की पूजा का दिन:

भाद्र मास की पूनम के दिन तुलसी को जल चढ़ाकर परिक्रमा करें और फिर प्रणाम करें। जिससे परेशानियां दूर होती हैं और सुख-समृद्धि बढ़ती है। उसके बाद दूध, तिल, जौ और चावल को जल में मिलाकर पीपल के पेड़ पर चढ़ा देना चाहिए। फिर घी का दीपक जलाकर वृक्ष को प्रणाम करें। ऐसा करने से माता-पिता संतुष्ट होते हैं। इस वृक्ष में भगवान विष्णु का वास है।  

श्राद्ध पक्ष की शुरुआत भद्रवी पूनम से..

भगवान विष्णु-लक्ष्मी की पूजा का दिन:

पुराणों के अनुसार भाद्र मास की पूनम तिथि को तीर्थ में स्नान करने, दान करने, व्रत करने और भगवान विष्णु की पूजा करने से जाने-अनजाने पापों का नाश होता है। इस दिन विष्णु की पूजा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। इस दिन चंद्रमा भी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है।

भद्रवी पूनम का महत्व और उससे जुड़ी बातें..

इसी पूनम से पितृपक्ष की शुरुआत होती है। इस दिन तिल के साथ जल मिलाकर सूर्य को अर्घ्य देने से पितरों की प्रसन्नता होती है।

भाद्र मास की पूनम के दिन पवित्र नदियों के जल में स्नान करने की परंपरा है। इस दिन घर में लक्ष्मी-नारायण को प्रसन्न करने के लिए व्रत किया जाता है और सत्यनारायण की कथा सुनी जाती है।

भाद्र मास की पूनम तिथि पर अन्न, जल, जूते-चप्पल, सुतार वस्त्र और छतरियां दान करना बहुत शुभ माना जाता है।


 

धर्म जगत

SEE MORE...........