Published By:धर्म पुराण डेस्क

भागवत संतों के लक्षण, संत और भगवान में क्या अंतर है, संत क्या हैं, संतों के लक्षण क्या है..

संत और भागवत एक ही हैं। भगवान ने स्वयं भागवत के लक्षण बताए हैं, उनमें से कुछ ये हैं जो सब प्राणियों का हित करते हैं, जिनके मन में डाह और द्वेष नहीं है, जो जितेन्द्रिय, निष्काम और शान्त हैं। जो मन, वाणी, शरीर से किसी को पीड़ा नहीं पहुँचाते। जो प्रतिग्रह नहीं लेते। 

भगवान के गुण जानने के प्रेमी हैं, गंगा और विश्वनाथ मानकर माता-पिता की सेवा करते हैं, परनिन्दा नहीं करते। जो सबके हित की बात ही कहते हैं, गुण ग्रहण करते हैं, सब प्राणियों में आत्मबुद्धि रखते हैं, शत्रु-मित्र में समदर्शी हैं, सत्यवादी हैं तथा संतों की सेवा करने वाले हैं, गो-ब्राह्मण की सेवा करते हैं, तीर्थों को मानते हैं, दूसरे की उन्नति देखकर प्रसन्न होते हैं। 

वृक्ष आदि लगाते हैं, कुआँ-तालाब बनाते हैं, मंदिर बनाते हैं, गायत्री जपते हैं, पुराणादि को श्रद्धा पूर्वक सुनते-पढ़ते हैं। हरिनाम सुनते ही जिनको बड़ा आनन्द होता है। शरीर पुलकित होता है। 

तुलसी जी में भक्ति है, जो अतिथि की सेवा करते हैं। भगवान शिव में प्रीति, भक्ति रखते हैं। शिव का पूजन करते हैं। रुद्राक्ष और त्रिपुण्ड्र धारण करते हैं, हरिनाम और शिव नाम कीर्तन करते हैं। देवाधिदेव शिव और परमात्मा विष्णु में विभिन्न भाव रखते हैं। 

शिवपंचाक्षर जपते हैं, एकादशीव्रत करते हैं। गो दान करते हैं और सब कर्म केवल मेरे ही (भगवान के लिये ही) करते हैं। ये सब लक्षण जिनमें हैं वे भागवतों में उत्तम हैं।


 

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