कोई भी व्यक्ति यदि अस्वस्थ होकर काँपता है, बहकी बहकी बातें करता है, उठकर भागने लगता है, तो मान लेते हैं कि इसे कोई भूत लग गया है। लोगों का आना-जाना श्मशान के पास से होता ही है। अगर दोपहर या संध्या के समय श्मशान के पास से गुजरते हुए उसने श्मशान की ओर मुँह करके मूत्र त्याग किया है और कुछ दिन बाद वह बीमार हो जाता है तो मान लेते हैं कि इसे मसण्या भूत लग गया है।
पुरुषों के समान ही महिलाओं की बीमारी के लिए मानते हैं कि इसे डाकन लगी है। डाकन भी विभिन्न प्रकार की मानी गई है, जैसे- जोगन डाकन, जल डाकन, कुँवारी डाकन। डाकन के अलावा लगने वाली चुड़ैल के बारे में भी मान्यता है कि कुंवारी चुड़ैल, रगतवाळी चुड़ैल, मसाणी चुड़ैल, नदी नालों में रहने वाली चुड़ैल।
भूत, डाकन व चुड़ैल द्वारा ग्रसित पुरुष या महिला के उपचार के लिए सर्वप्रथम किसी बड़वे को बुलाते हैं। बड़वा बीमार पुरुष या महिला को देखता है और घरवालों को बताता है कि इसे कौन-सा भूत, कौन सी डाकन और कौन-सी चुड़ैल लगी है। बड़वा उसका उपचार मंत्र-तंत्र से करता है।
भूत, डाकन-चुड़ैल भगाने के लिए सबसे पहले हुसेन टेकरी वाले बाबा का नाम लेते हुए प्रारंभ करते हैं। सवा किलो चावल और एक मुर्गी बुलवाते हैं। पीड़ित के हाथ में एक छल्ला, एक भुजा पर, एक कमर में बांधते हैं।
बीमार को काकड़ (ग्राम की सीमा) पर ले जाकर एक छोटे नींबू में काला धागा पहनाकर उसकी कमर में बाँधते हैं। एक नींबू भुजा पर व एक कलाई पर बाँधते हैं। फिर शमशान में जाकर मुर्गी का सिर काटकर दीमक के बिल में डालकर उस छेद को बंद कर देते हैं।
वापस बीमार के घर आते हैं और मकान के अन्दर मध्य में जो धारण (बड़ा खम्भा) के सामने चावल का चौक बनाते हैं। शुद्ध जल का छिड़काव कर एक आरती पात्र में पूजन सामग्री मय दीपक के रखते हैं। एक बहु, एक कुँवारी लड़की, दोनों बारी-बारी से धारण को तिलक लगाकर पूजन करते हैं।
फिर लोहे के पाँच खीले, पाँच लौंग, पाँच नींबू लेते हैं। एक खीला, एक नींबू, एक लौंग, रोटी बनाने के चौके पर जहाँ रोटी बनाने की बड़ी थाली (परात) रखते हैं, उसके नीचे गाड़ते हैं। चार खीले, चार नींबू व चार लौंग एक-एक लेकर घर के चारों कोने में गाड़ते हैं (घर में इस पूजन के पहले घर को गाय के गोबर से लीपकर गाय का दूध व नर्मदा जी के जल को छींटते हैं)।
उड़द के दाने और नींबू तेल में भिगोकर एक चलनी में रखते हैं। एक कवेलू में अंगारे लेकर अंगारों के ऊपर चलनी को हिलाकर उन्हें अँगारों पर गरम करने के समान क्रिया करते हैं। फिर उड़द के दानों को व नींबू को घर के ऊपर छत पर फेंक देते हैं। पीड़ित व्यक्ति यदि अच्छा हो जाता है, तो बारह महीने बाद उसकी मन्नत देते हैं।
स्रोत:- केसर सिंह निगवाल
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