भील लोग धाणकला भीलों को छोटी जाति का मानते हैं। भील जनजातीय मान्यता है कि भीलों में पटलिया भील अन्य भील उपजातियों जैसे भिलाला और बारेला लोगों से ऊँचे स्तर के हैं। भीलों में एक उपजाति को पटलिया भील कहा जाता है।
भीली लोकमान्यता है कि पटलिया जाति भी पहले भिलाला ही थी, किन्तु ईश्वर ने जब जातियाँ बनाई और सभी लोगों को अलग-अलग काम सौपें उस घड़ी कुछ लोग पशुओं के चमड़े से बने रस्सों को हल बक्खर और बैलगाड़ी में उपयोग करने लगे। चमड़े को छूने के कारण मानने लगे कि ये लोग विटळ गये हैं। इसके बाद पटलिया जाति के लोग अपने को भिलाला से ऊँची जाति का मानने लगे।
भीलों में मान्यताओं के अनुसार अंतरजातीय विवाह निषेध है। अगर कोई भिलाला भील की लड़की से प्रणय कर उसे पत्नी स्वरूप अपने घर ले आता है तो उसे भिलाला जाति से पृथक माना जाता है। फिर उसकी संतान का विवाह भील जाति में ही हो सकता है। अर्थात भील जाति व्यवस्था में वह एक पायदान नीचे उतर जाता है।
अगर कोई भिलाला भील की लड़की को पत्नी बनाकर रखता है, तो उसके घर जब कभी विवाह होता है, उस वक्त देव पूजन के लिए जिसे देउत घिर्सरी कहते हैं। का चावल उस लड़के और लड़की को नहीं खिलाते हैं। चावल बनाकर देव पूजन करके घी शक्कर के साथ घर के अन्दर ही उस कुटुंब के लोग खाते हैं। बाकि बचे हुए भोजन को जमीन में गाड़ देते हैं।
अगर किसी भिलाले की लड़की भील से विवाह कर लेती है, तो लड़की का पिता उसे वापस अपने घर नहीं आने देता है। उसका हमेशा के लिए परित्याग हो जाता है। उसकी मृत्यु हो जाने पर अंत्येष्टि में उसे लकड़ी देने तक नहीं जाता है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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