पृथ्वी जब पानी में नहीं डूबी थी, उस समय बगला भुवानी, निलछां भुवानी, लंका भुवानी, लिमड़ा भुवानी, बागली भुवानी, होल्या माता आदि सभी माताएँ समुद्र में रहती थी। इनका एक राजा था, जिसका नाम गेहलो राजा था। ये सभी उस राजा की रानियाँ थीं।
जब समुद्र का पानी बढ़ने लगा, तब इन्होंने विचार किया कि अब पृथ्वी डूब जाएगी और सभी मनुष्य मर जायेंगे। फिर अपनी पूजा कौन करेगा? यह सोचकर समुद्र से उड़कर भुवानियाँ राजा सहित गुजरात के पावागढ़ पहाड़ पर आ गई और वहीं अपने रहने का स्थान बना लिया। किसी जानकार ने एक व्यक्ति को पहले ही बता दिया था कि एक दिन ऐसा आयेगा, जब पृथ्वी पानी में डूब जाएगी। उस आदमी ने सोचा कि क्यों न अपने लड़के और लड़की को किसी प्रकार डूबने से बचा लूँ ? उसने यह विचार कर सेवला नामक सुता से पटिए का साँकल वाला एक पिंजरा बनवा लिया।
जानकार बताए अनुसार जब वास्तव में समुद्र का पानी पृथ्वी पर चढ़ने लगा, उस व्यक्ति ने अपने लड़के-लड़की की पिंजरे में बिठा दिया और उसमें एक मुर्गा भी उनके साथ रख दिया। उसने सोचा कि भीली उत्पत्ति कथाएँ एवं विश्वास : महाप्रलय के बाद जीवन
बड़े-बूढ़े व्यक्ति ऐसा कहते हैं कि पहले एक बार पृथ्वी पानी में डूब गई थी। पृथ्वी जब पानी में नहीं डूबी थी, उस समय बगला भुवानी, निलछां भुवानी, लंका भुवानी, लिमड़ा भुवानी, बागली भुवानी, होल्या माता आदि सभी माताएँ समुद्र में रहती थी। इनका एक राजा था, जिसका नाम गेहलो राजा था। ये सभी उस राजा की रानियाँ थीं। जब समुद्र का पानी बढ़ने लगा, तब इन्होंने विचार किया कि अब पृथ्वी डूब जायेगी और सभी मनुष्य मर जायेंगे। फिर अपनी पूजा कौन करेगा?
यह सोचकर समुद्र से उड़कर भुवानियाँ राजा सहित गुजरात के पावागढ़ पहाड़ पर आ गई और वहीं अपने रहने का स्थान बना लिया। किसी जानकार ने एक व्यक्ति को पहले ही बता दिया था कि एक दिन ऐसा आयेगा, जब पृथ्वी पानी में डूब जायेगी। उस आदमी ने सोचा कि क्यों न अपने लड़के और लड़की को किसी प्रकार डूबने से बचा लूँ ?
उसने यह विचार कर सेवला नामक सुता से पटिए का साँकल वाला एक पिंजरा बनवा लिया। जानकार बताए अनुसार जब वास्तव में समुद्र का पानी पृथ्वी पर चढ़ने लगा, उस व्यक्ति ने अपने लड़के-लड़की की पिंजरे में बिठा दिया औ उसमें एक मुर्गा भी उनके साथ रख दिया। उसने सोचा कि पानी उतरने के बाद जब वह मुर्गा बांग देगा, तो आसपास या कुछ दूरी पे कोई होगा तो सुनकर पिंजरे के पास आयेगा।
उसने पिंजरे में बच्चों के खाने के लिए साढ़े तीन दिन का भोजन भी रख दिया था। पिंजरा पानी में तैरता हुआ बढ़ता गया। जब वृक्ष डूबे तो एक कागली (माद कौआ) उड़कर उस पिंजरे के ऊपर बैठ गई। साढ़े तीन दिन के बाद जब पानी कम हुआ तो पिंजरा जमीन पर टिक गया और एक जगह जाकर रुक गया।
समुद्र का पानी बढ़ रहा था, तब एक बड़ा माछा भी पानी के साथ बढ़ता हुआ पिंजरे के पास आ गया। वह माछा अधमरा सा था। जब जमीन से पानी उतरा तो भगवान देखने आए कि कोई जीवित बचा या नहीं ? भगवान को दूर से देखकर पिंजरे पर बैठी कागली बोलने लगी।
पिंजरे के भीतर से मुर्गे ने भी बाँग दी। आवाज सुनकर भगवान वहाँ आए और पिंजरा देखा और बोले- भीतर कौन है ? दरवाजा खोलो। लड़के ने दरवाजा खोला और दोनों भाई-बहन बाहर निकले, मुर्गा भी उनके साथ बाहर निकल आया।
भगवान ने विचार किया कि अब मनुष्य तो कोई भी नहीं बचा है। धरती पर मनुष्यों की उत्पत्ति कैसे बढ़ेगी ? इसलिए उन्होंने लड़के का मुँह पूर्व दिशा की ओर तथा लड़की का मुँह पश्चिम दिशा की ओर करके कहा कि आज से तुम दोनों पति-पत्नी हो गए हो। तुम संतान पैदा कर धरती पर वापस मनुष्यों को बढ़ाओ।
भगवान को स्वीकार कर दोनों ने संतान उत्पत्ति प्रारम्भ की। अधमरा माछा कुछ दूरी पर पड़ा था। उसे देखकर वे दोनों माछे के पास गए। माछे ने उनसे कहा दुनिया माछों को खाती थी, तुम भी मुझे खाओ। वे बोले- तुम जीवित हो, हम तुम्हें नहीं खायेंगे।
मरे हुए होते उनकी यह बात सुनकर उस माछे ने आशीर्वाद दिया कि जिस तरह माछों की औलाद बढ़ती है, उस प्रकार तुम्हारी औलादें भी बढ़े। पति-पत्नी बने भाई बहन ने दुनिया में जैसे पहले काम-धन्धे होते देखे थे, उसी अनुसार अपनी संतान को भी सिखाया।
पृथ्वी पर मनुष्यों की संख्या बढ़ती गई। आगे चलकर फिर भील-भिलाला आदि जातियाँ काम-धन्धे के अनुसार बनती गई। इस प्रकार आज जो मनुष्य हैं, वे सभी एक भाई व बहन की संतान हैं।
स्रोत: केसर सिंह निगवाल
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