 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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गीता में पुनर्जन्म को लेकर क्या कहा गया है? गीता और पुनर्जन्म, पुनर्जन्म क्या है? पुनर्जन्म क्यों होता है? गीता में रीइनकारनेशन के बारे में क्या कहा है? भगवत गीता और पुनर्जन्म.
वैदिक धर्मशास्त्र का सार और मध्यमणि स्वरूप
श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीभगवान् ने बारंबार पुनर्जन्म, उससे मोक्ष तथा अवतारवाद के सिद्धांत की घोषणा स्पष्ट अक्षरों में की है। सूत्र रूप में यहाँ उसमें से कुछ दिया जाता है
(1) जन्मांतर- जन्म लिये हुए व्यक्ति की मृत्यु तथा मृत व्यक्ति का जन्म निश्चित है।
'जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च ।'
'देहाभिमानी जीव का जैसे इस एक स्थूलदेह में शैशव, यौवन और वार्धक्य होता है- 'देहिनोऽस्मिन् इत्यादि, 'मनुष्य जैसे जीर्ण वस्त्र त्याग करके नवीन वस्त्र ग्रहण करता है। देहान्तर की प्राप्ति भी वैसे ही होती है- 'वासांसि जीर्णानि' इत्यादि। 'हम लोगों को बहुत से जन्म हो चुके हैं 'बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि' इत्यादि।
(2) परलोक-'मृत्यु के समय जो कुछ चिंतन करता हुआ मनुष्य देह त्याग करता है, परलोक भी तदनुसार ही प्राप्त होता है।' 'मृत्यु के समय सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुण जिसकी उस समय वृद्धि होगी, उसी के अनुसार यथाक्रम उत्तम ऊर्ध्वलोक, कर्मा सक्त मनुष्यलोक अथवा पशु-पक्षी आदि की निम्न योनि में जन्म होता है।' 'देवताओं की पूजा करनेवाले अनित्य देवताओं को, पितरों की पूजा करने वाले पितरों को, भूतों के उपासक भूतों को और मेरे उपासक अक्षय आनन्दस्वरूप मुझको प्राप्त होते हैं।' 'द्वेष कारी, क्रूर, नराधम, अशुभ कर्मा लोगों को जन्म-मृत्यु-पथ में आसुरी अर्थात् व्याघ्र-सर्प आदि और कृमि-कीटादि योनियों में अनवरत मैं डालता हूँ।'
'वेदोक्त क्रिया परायण लोग यज्ञ द्वारा निष्पाप होकर स्वर्ग में जाते हैं। विपुल भोग के पश्चात् पुण्य-क्षीण होने पर पुनः मर्त्यलोक में पवित्र और धनवान या योगी के कुल में जन्म-ग्रहण करते हैं।'
(3) मुक्ति–'अनेक जन्म की योग-साधना से सिद्ध, निष्पाप, ज्ञानवान् पुरुष मुझको अर्थात मेरी पराभक्ति को प्राप्त होते हैं।' शुक्ल और कृष्ण दो गति हैं, एक से संसार में लौटना नहीं होता, दूसरे से लौटना पड़ता है'। 'दैवी और आसुरी सम्पत्ति में प्रथम मोक्ष का होता है और दूसरी संसार-बन्धन का होता है।' मनीषी लोग कर्मजन्य फलका त्याग करके जन्मबंध से मुक्त होकर अनामय मोक्ष पद को प्राप्त होते हैं।'
(4) अवतार– 'मैं जन्म रहित होकर भी साधु वृन्द की रक्षा और पापी लोगों का विनाश करने के लिये अपनी माया के द्वारा धर्म की संस्थापनाके लिये युग-युग में अवतीर्ण होता हूँ।'
नीरजा कांत चौधरी
 
 
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