 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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गणेश के जन्म के संबंध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं, लेकिन 'शिवपुराण' में गणेश के जन्म के संबंध में जो कथा लिखी गई है, वही जनसाधारण में सबसे अधिक प्रचलित है।
कहा जाता है कि एक बार जया और विजया, जो पार्वती की सखियाँ थीं, उन्होंने पार्वती से कहा, 'जिस प्रकार नंदी, भृंगी आदि शिवजी के गण हैं और वे उन्हीं की आज्ञा का पालन करते हैं उसी प्रकार आपका भी एक गण होना चाहिए, जो आपकी आज्ञा का पालन करे।'
एक दिन पार्वती गुफा के द्वार की रक्षा के लिए नंदी को वहां पर बैठाकर स्वयं स्नान करने के लिए चली गई। अभी वह स्नान कर ही रही थीं कि वहाँ शिवजी आए और सीधे गुफा के अंदर चले गए। शिवजी ने नंदी की कोई परवाह नहीं की।
शिवजी का इस प्रकार गुफा के अंदर आना पार्वती को अच्छा नहीं लगा, अतः उन्होंने उसी क्षण यह निर्णय लिया कि वे अपने गण की रचना करेंगी, जो मात्र उन्हीं की आज्ञा का पालन करेगा। पार्वती ने तुरंत चंदन के लेप से एक छोटे बच्चे की आकृति तैयार करके उसमें प्राण डाल दिए और उसको आशीर्वाद देते हुए कहा, 'तुम आज से मेरे पुत्र हो। आज से इस महल की सुरक्षा का कर्तव्य तुम्हारा है। मेरी आज्ञा के बिना तुम किसी को भी महल के अंदर नहीं आने दोगे, फिर चाहे वे तुम्हारे पिता ही क्यों न हों!'
पार्वती ने अपने पुत्र का नाम 'गणेश' रखा और उसके हाथ में डंडा देकर मुख्य द्वार की सुरक्षा का उत्तरदायित्व सौंपकर स्वयं स्नान करने चली गई।
बालक गणेश हाथ में डंडा लेकर द्वार पर ही बैठे रहे। थोड़ी ही देर में वहाँ शिवजी आए और अंदर जाने लगे। गणेश अपने पिता को नहीं पहचानते थे, इसलिए उन्होंने डंडे को द्वार के बीच अड़ाकर शिवजी को वहीं पर रोक दिया और बोले, 'मैं आपको अंदर जाने की आज्ञा नहीं दे सकता, क्योंकि मेरी माताजी अंदर स्नान कर रही हैं। इसलिए आप कुछ देर यहीं पर आराम कीजिए। मैं अंदर जाकर अपनी माताजी से आज्ञा लेकर आता हूँ। 'गणेश के मुख से इस प्रकार की बातें सुनकर शिवजी क्रोधित होकर बोले, 'अरे मूर्ख बालक ! क्या तुम्हें ज्ञात नहीं है कि मैं पार्वती का पति शिव हूँ? तुम मुझे मेरे ही घर में आने से कैसे रोक सकते हो ?'
शिव और गणेश में काफी देर तक बहस चली, लेकिन फिर भी गणेश ने उन्हें अंदर नहीं जाने दिया। बात बढ़ जाने पर शिव के अन्य गण भी वहाँ पर आकर बोले, 'देखो गणेश, तुम भी हमारे ही समान पार्वती और शिव के गण हो। इसलिए हमने तुम्हें कुछ भी नहीं कहा। यदि तुम अपने प्राणों की रक्षा करना चाहते हो तो शिवजी को अंदर जाने दो, अन्यथा तुम्हें अपने प्राणों से हाथ धोने पड़ेंगे।'
शिव के गणों को देखकर भी गणेश ने हिम्मत नहीं हारी और बराबर उनसे तर्क-वितर्क करते रहे। यह जानते हुए भी कि गणेश पार्वती के गण हैं, शिव ने दूसरे देवताओं का आवाहन किया और देवताओं सहित अपने गणों को आदेश दिया कि वे गणेश पर आक्रमण करके उसका अभिमान नष्ट कर दें।
देवताओं तथा शिव के गणों ने गणेश के साथ भीषण युद्ध किया; लेकिन गणेश ने हिम्मत नहीं हारी। सभी देवता और शिव के गण गणेश के अद्भुत पराक्रम को देखकर आश्चर्यचकित रह गए। गणेश ने नुकीले तीरों तथा दूसरे शस्त्रों का शिव की सेना पर ऐसा प्रयोग किया, जिससे वह घबराकर गणेश का सामना न कर सकी और इधर-उधर भाग खड़ी हुई।
अकेले गणेश शिव गणों और देवताओं पर भारी पड़ रहे थे। यह देखकर शिव अपने को रोक नहीं पाए और स्वयं युद्ध भूमि में कूद पड़े। भयंकर युद्ध हुआ; किंतु गणेश को युद्ध में हराना किसी भी देवता के लिए संभव नहीं था। गणेश की शक्ति और पराक्रम को देखकर शिव भी चकित थे। जब गणेश को हराने का और कोई उपाय शिव को नहीं सूझा तो उन्होंने अपने दिव्य त्रिशूल को उठाया और गणेश के सिर को धड़ से अलग कर दिया।
गणेश की मृत्यु की सूचना जब पार्वती को मिली तो वे अपने क्रोध को रोक न सकी। उन्होंने क्रोध में आकर दिव्य शक्तियों का आवाहन किया तथा संपूर्ण ब्रह्मांड को नष्ट करने की आज्ञा दे दी। पार्वती के क्रोध के कारण अपने चारों ओर विनाश-लीला को देखकर सभी देवता एवं देवगण भय से कांपने लगे और इस विनाश-लीला से बचने का उपाय सोचने लगे।
नारदजी के परामर्श पर सभी देवता पार्वती के पास गए और क्षमा मांग कर उनसे विनाश-लीला को रोकने की प्रार्थना करने लगे। लेकिन पार्वती का क्रोध आसानी से रुकने वाला नहीं था। उन्होंने देवताओं को स्पष्ट रूप से कह दिया कि 'यह विनाश-लीला केवल गणेश को जीवनदान मिलने के उपरांत ही रुक सकती है। जब मेरा पुत्र गणेश पुनः जीवित होगा और समस्त देवगणों में उसे सर्वोच्च स्थान मिलेगा, तब मैं विनाश-लीला को रोक दूँगी।'
जब शिवजी को इस बात का पता चला तो उन्होंने सभी देवताओं को उत्तर दिशा में भेज दिया और आज्ञा दी कि उन्हें सबसे पहले जो भी जीवित प्राणी मिले, उसका सिर काटकर तुरंत ले आए, जिससे उस सिर को गणेश के धड़ से जोड़कर उसे पुनर्जीवित किया जा सके।'
थोड़ी ही देर में देवतागण एक ऐसे हाथी का सिर काटकर ले आए, जिसका केवल एक ही दाँत था। हाथी के उस सिर को गणेश के धड़ पर रखकर सभी देवताओं ने वैदिक मंत्रों का उच्चारण किया और उस पर पवित्र जल छिड़क दिया। कुछ ही देर बाद गणेश ने आँखें खोलीं और पुनः जीवित हो गए। गणेश इस प्रकार लग रहे थे, मानो गहरी नींद से सोकर उठे हों। उन्हें जीवित देखकर पार्वती अत्यंत प्रसन्न हुई।
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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