जैसे भोजनालय भोजन करने का स्थान होता है, ऐसे ही यह शरीर सुख-दुःख भोगने का स्थान (भोगायतन) है। सुख-दुःख भोगने वाला शरीर नहीं होता, प्रत्युत शरीर से सम्बन्ध जोड़ने वाले हम स्वयं होते हैं। भोगने का स्थान अलग होता है और भोगने वाला अलग होता है।
शरीर तो ऊपर का चोला है। हम कैसा ही कपड़ा पहनें, कपड़ा अलग होता है, हम अलग होते हैं। जैसे हम अनेक कपड़े बदलने पर भी एक ही रहते हैं, अनेक नहीं हो जाते, ऐसे ही अनेक योनियों में अनेक शरीर धारण करने पर भी हम स्वयं एक ही (वही-के-वही) रहते हैं। जैसे पुराने कपड़े उतारने पर हम मर नहीं जाते और नये कपड़े पहनने पर हम पैदा नहीं हो जाते, ऐसे ही पुराने शरीर छोड़ने पर हम मर नहीं जाते और नया शरीर धारण करने पर हम पैदा नहीं हो जाते ।
तात्पर्य है कि शरीर जन्मता-मरता है, हम नहीं जन्मते-मरते। अगर हम मर जाएँ तो फिर पाप-पुण्य का फल कौन भोगेगा ? अन्य योनियों में और स्वर्ग-नरकादि लोकों में कौन जाएगा ? बंधन किसका होगा ? मुक्त कौन होगा? हमारा जीवन इस शरीर के अधीन नहीं है। हमारी आयु बहुत लंबी-अनादि और अनंत है। महासर्ग और महाप्रलय हो जाये तो भी हम जन्मते-मरते नहीं, प्रत्युत ज्यों-के-त्यों रहते हैं— 'सर्वेऽपि नोपजायते प्रलये न व्यथन्ति च' (गीता 14\2)।
जीवन का अनमोल अध्याय है, जिसमें हमारा शरीर और आत्मा का सम्बन्ध अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह सत्य है कि हमारे शरीर के साथ-साथ जीवन में कई परिवर्तन आते हैं, लेकिन हमारा आत्मा हमें हमेशा वही बने रहता है।
आत्मा: सत्ता का साक्षात्कार
आत्मा एक अद्वितीय सत्ता है जो हमारे सबसे आंतरिक स्वरूप को प्रतिष्ठित करती है। इसका अर्थ है कि हमारा आत्मा सत्य है, अच्युत है, अविनाशी है और सबसे महत्वपूर्ण रूप से अद्वितीय है। हमारा आत्मा नित्य, निरंतर, और असंग रहता है। यह शरीर के परिवर्तनों से प्रभावित नहीं होता और हमें यह सत्ता कभी नहीं छोड़ती।
शरीर और आत्मा: दो अलग दुनियाएं
शरीर और आत्मा दो अलग-अलग दुनियाओं का हिस्सा हैं। शरीर वास्तव में हमारे भोग करने का स्थान है, जबकि हमारी आत्मा यह नहीं है। शरीर कई तरह के परिवर्तनों का सामना करता है, लेकिन हमारी आत्मा हमें वही बने रहती है।
मृत्यु के बाद भी आत्मा का अनंत स्वरूप
मृत्यु के बाद भी हमारी आत्मा शरीर को छोड़ने के बाद अन्य शरीरों में प्रवेश करती है, और हमारा जीवन कभी नहीं रुकता। हम सबके बीच अनंत जीवन का हिस्सा हैं, और हमारी आत्मा नित्य मुक्त होती है। हम ना जन्मते हैं, और न मरते हैं, हम नित्य ही बने रहते हैं।
शरीर और आत्मा: अद्वितीय और अनन्त
इस अद्वितीय और अनंत आत्मा का अध्ययन करके हम अपने जीवन को गहराई से समझ सकते हैं और शरीर के परिवर्तनों में नहीं उलझते हैं। हमारा आत्मा हमें हमेशा स्वतंत्र और अद्वितीय रूप में बनी रहती है, और हमें इस अद्वितीयता को समझना चाहिए। इसके माध्यम से हम जीवन के सुख और दुःख को सही दृष्टिकोण से देख सकते हैं और अद्वितीय आत्मा की अनंत सत्ता का आनंद उठा सकते हैं।
आत्मा: सबका अद्वितीय स्वरूप
इस प्रकार, शरीर और आत्मा का सम्बन्ध अद्वितीय होता है और हमारी आत्मा का स्वरूप हमें हमेशा याद रखना चाहिए। हम शरीर के परिवर्तनों में फंसने की बजाय हमारे अद्वितीय आत्मा की महत्वपूर्णता को समझें और अपने जीवन को और भी सार्थक बनाएं।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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