समर्थन: भगवान का मंदिर मानकर शरीर को साधना का साधन बनाएं
समीक्षा: आजकल हम अपने शरीर को भोग का साधन मान रहे हैं, जिससे हम पतन की दिशा में बढ़ते जा रहे हैं। यह एक अकल्याण दृष्टिकोण है, जो हमें अनाध्यात्मिक भाव में डाल रहा है। शरीर, आध्यात्मिक साधना का महत्वपूर्ण माध्यम है और इसके माध्यम से ही हम आत्मा का ज्ञान और परमात्मा का साक्षात्कार प्राप्त कर सकते हैं। इसे संसार के अपवित्र भोगों में लिपटना एक प्रमाण है जिससे हमें बचना चाहिए। शरीर को भगवान का मंदिर मानकर "आत्म-संयम" और "अध्यात्म साधना" के माध्यम से हमें श्रेय पथ पर बढ़ना चाहिए। शरीर अनात्म भाव के कारण "साध्य" बना हुआ है, इसलिए हमें इसे विशेष ध्यान देकर साधना में लगाना चाहिए।
श्रेष्ठ प्रयास: शरीर को साधना में लगाने से ही आत्मा को पाया जा सकता है
महत्वपूर्ण बिंदु: शरीर को भगवान का मंदिर मानकर उसे साधना का एक महत्वपूर्ण और महान माध्यम माना जा सकता है। इससे ही आत्मा का ज्ञान और परमात्मा का साक्षात्कार होता है। यह एक चमत्कारी साधन है जिससे हम जीवन में आत्मा को प्राप्त कर सकते हैं और परमात्मा का साक्षात्कार कर सकते हैं। शरीर को अपनी संपत्ति मानकर भोग-विलासों में लगाए रहना अहंकार है, जो हमें बचना चाहिए। वास्तविकता में, शरीर आत्मा की संपत्ति है और इसे उच्च उद्देश्यों के लिए ही लगाना चाहिए ताकि भव-बंधन से मुक्त होकर हम शाश्वत सुख प्राप्त कर सकें।
अद्वितीय उपाय: "अध्यात्मवाद" के माध्यम से मनुष्य को भव-रोगों से मुक्ति
मार्गदर्शन: भौतिकवाद के उन्माद से मानव जाति को उन्मत्त बना रखा है, जिससे वह कल्याण के ज्ञान से रूपरूप हो रही है। आजकल लोगों की मनोभूमियाँ इस सीमा तक दूषित हो गई है कि अमंगल में मंगल दिखने लगा है। मानसिक विकारों, आवेगों, प्रलोभनों और पाप पर नियंत्रण कर सकना उनके लिए कठिन हो गया है। शायद ही कोई ऐसा हो, जो तनिक-सा प्रलोभन से बचा हो या जिसे जरा-सा भय ना होता हो, और इससे कर्तव्य-पथ की दिशा में चला जाता है।
मुक्ति का एकमात्र मार्ग: अध्यात्मवाद के माध्यम से मनुष्य को भव-रोगों से उबारने का एकमात्र मार्ग है।
सुस्ती का निवारण: चित्त की अस्थिरता और जीवन की निरुद्देश्यता ने लोगों को विक्षिप्त बना रखा है। इस अस्थिरता और निरुद्देश्यता के कारण ही व्यक्ति अपने जीवन के लक्ष्य परमानंद को प्राप्त करने में सक्षम नहीं हो पा रहा है। यह भयानक मनोभूमि और पापपूर्ण व्यवहार के बीच कैसे आशा की जा सकती है कि मनुष्य अपने जीवन में आत्मा का प्राप्त कर सकता है। इन सभी विकारों और विपरीतताओं का एकमात्र समाधान है - "अध्यात्मवाद" की उपेक्षा नहीं करना। "संसार" के साथ "आत्मा" का ध्यान रखने से ही हम विकास और मुक्ति की दिशा में अग्रसर हो सकते हैं।
सारांश: आत्म-लाभ ही सर्वश्रेष्ठ लाभ है, इसलिए हमें इसे प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए।
उत्तराधिकारी: शीघ्र ही अध्यात्मवाद के माध्यम से हम सभी भव-रोगों से मुक्त होकर आनंद की ओर अग्रसर हो सकते हैं। "आत्म-लाभ" ही हमें सर्वश्रेष्ठ लाभ प्रदान करता है, जिसे प्राप्त करने के लिए हमें सदा प्रयत्नशील रहना चाहिए। इस से ही हम अपने जीवन को परमानंद से भर सकते हैं और शाश्वत सुख का आनंद ले सकते हैं।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
February 24, 2024यदि आपके घर में पैसों की बरकत नहीं है, तो आप गरुड़...
February 17, 2024लाल किताब के उपायों को अपनाकर आप अपने जीवन में सका...
February 17, 2024संस्कृति स्वाभिमान और वैदिक सत्य की पुनर्प्रतिष्ठा...
February 12, 2024आपकी सेवा भगवान को संतुष्ट करती है
February 7, 2024योगानंद जी कहते हैं कि हमें ईश्वर की खोज में लगे र...
February 7, 2024भक्ति को प्राप्त करने के लिए दिन-रात भक्ति के विषय...
February 6, 2024कथावाचक चित्रलेखा जी से जानते हैं कि अगर जीवन में...
February 3, 2024