मानव जीवन का रहस्य और उसका उद्दीपन ब्रह्म में है, जो हमारे अंतर्तम में निवास करता है और हमें नष्ट नहीं होने देता। ब्रह्म एक आंतरिक ज्योति है, एक छिपा हुआ साक्षी, जो हमेशा बना रहता है और जन्म-जन्मांतरों में अनश्वर है।
आत्मा और जीवन का चक्कर:
ब्रह्म मनुष्य के आत्मा का मूल तत्त्व है, जो एक आत्मिक व्यक्ति की असीम पहचान है। जीवन की प्रक्रिया इस आत्मा के परिवर्तन का हिस्सा है, जो जन्म-जन्मान्तर में उन्नति करता रहता है। जब आत्मा का ब्रह्म के साथ पूर्ण एकत्व स्थापित होता है, तब वह उस आत्मिक अवस्था में पहुंच जाता है, जो उसकी भवितव्यता है।
जन्म-मरण का चक्कर:
जीवन का यह अनवादी चक्कर आत्मा को जन्म और मृत्यु के फेर में पड़ा रहता है। यह संसारिक चक्कर समायोजित करने का प्रयास करता है, लेकिन ब्रह्म के साथ संबंध स्थापित करने से ही यह चक्कर समाप्त होता है।
आत्मा का उद्दीपन:
आत्मा ब्रह्म में अद्वितीयता में प्राप्त होती है जब उसे अपने असली स्वरूप का अनुभव होता है। जब तक ऐसी अवस्था नहीं आती, तब तक जीवन जन्म और मृत्यु के चक्कर में फंसा रहता है।
इस उद्दीपक ब्रह्म और आत्मा के बीच के अद्वितीय संबंध को व्यक्त करता है, जिससे जीवन का उद्दीपन और उद्दीपन का उद्दीपन हो सकता है। इसे आत्मिक सफलता की ओर पहुंचाने का माध्यम माना जाता है, जिससे मानव जीवन का अध्ययन और उन्नति हो सकता है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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