 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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पुष्कर को तीर्थों का मुख माना जाता है। जिस प्रकार प्रयाग को "तीर्थराज" कहा जाता है, उसी प्रकार से इस तीर्थ को "पुष्कर राज" कहा जाता है। पुष्कर की गणना पंचतीर्थों व पंच सरोवरों में की जाती है। पुष्कर सरोवर तीन हैं -
• ज्येष्ठ (प्रधान) पुष्कर।
• मध्य (बूढ़ा) पुष्कर।
• कनिष्क पुष्कर।
ज्येष्ठ पुष्कर के देवता ब्रह्माजी, मध्य पुष्कर के देवता भगवान विष्णु और कनिष्क पुष्कर के देवता रुद्र हैं। पुष्कर का मुख्य मन्दिर ब्रह्माजी का मंदिर है। जो कि पुष्कर सरोवर से थोड़ी ही दूरी पर स्थित है। मंदिर में चतुर्मुख ब्रह्मा जी की दाहिनी ओर सावित्री एवं बायीं ओर गायत्री का मंदिर है। पास में ही एक और सनकादि की मूर्तियाँ हैं, तो एक छोटे से मंदिर में नारद जी की मूर्ति। एक मंदिर में हाथी पर बैठे कुबेर तथा नारद की मूर्तियाँ हैं।
ब्रह्मवैवर्त पुराण में उल्लेखित है कि अपने मानस पुत्र नारद द्वारा सृष्टि कर्म करने से इनकार किए जाने पर ब्रह्मा ने उन्हें रोषपूर्वक शाप दे दिया कि- "तुमने मेरी आज्ञा की अवहेलना की है, अतः मेरे शाप से तुम्हारा ज्ञान नष्ट हो जाएगा और तुम गन्धर्व योनि को प्राप्त करके कामिनियों के वशीभूत हो जाओगे।"
तब नारद ने भी दुखी पिता ब्रह्मा को शाप दिया- "तात! आपने बिना किसी कारण के सोचे-विचारे मुझे शाप दिया है। अतः मैं भी आपको श्राप देता हूँ कि तीन कल्पों तक लोक में आपकी पूजा नहीं होगी और आपके मंत्र, श्लोक कवच आदि का लोप हो जाएगा।" तभी से ब्रह्मा जी की पूजा नहीं होती है। मात्र पुष्कर क्षेत्र में ही वर्ष में एक बार उनकी पूजा–अर्चना होती है।
पूरे भारत में केवल एक यही ब्रह्मा का मंदिर है। इस मन्दिर का निर्माण ग्वालियर के महाजन गोकुल प्राक् ने अजमेर में करवाया था। ब्रह्मा मन्दिर की लाट लाल रंग की है तथा इसमें ब्रह्मा के वाहन हंस की आकृतियाँ हैं। चतुर्मुखी ब्रह्मा देवी गायत्री तथा सावित्री यहाँ मूर्ति रूप में विद्यमान हैं। हिन्दुओं के लिए पुष्कर एक पवित्र तीर्थ व महान पवित्र स्थल है।
वर्तमान समय में इसकी देखरेख की व्यवस्था सरकार ने संभाल रखी है। अतः तीर्थ स्थल की स्वच्छता बनाए रखने में भी काफी मदद मिली है। यात्रियों की आवास व्यवस्था का विशेष ध्यान रखा जाता है। हर तीर्थयात्री, जो यहां आता है, यहाँ की पवित्रता और सौंदर्य की मन में एक याद संजोए जाता है।
 
 
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