Published By:दिनेश मालवीय

ब्रह्मास्त्र -- दिनेश मालवीय.. 

ब्रह्मास्त्र -- दिनेश मालवीय.. 

भारत में अनादिकाल से ही शस्त्र और शास्त्र के ज्ञान को समान रूप से महत्व दिया गया है. धर्म को सर्वोपरि मानते हुए शास्त्र के महत्व को समझा गया, वहीं धर्म या शास्त्र की रक्षा के लिए शस्त्र को भी उतना ही महत्व दिया गया. 

ब्रह्मास्त्र मानवता के इतिहास में महाभारत जैसा युद्ध आज तक नहीं हुआ. इसके बाद जो भी युद्ध हुए, वे इसकी तुलना में छोटी-मोटी लड़ाइयाँ थीं. इस महायुद्ध में महाविनाशक शस्त्रों का प्रयोग किया गया. इनकी तुलना आज मिलिट्री सुपर पावर के पास उपलब्ध हथियारों से की जा सकती है. 

आमतौर पर बोलचाल में ब्रह्मास्त्र को ही सबसे बड़ा और अचूक शस्त्र माना जाता रहा है. यह सचमुच बहुत घातक शस्त्र था. लेकिन यह बात कम ही लोग जानते हैं कि इस युद्ध में ब्रह्मास्त्र से भी अधिक भयानक और विनाशक शास्त्रों का प्रयोग किया गया था. 

आइये हम जानते हैं इन शास्त्रों के बारे में. 

1. ब्रह्मशीर- यह खतरनाक शस्त्र था. महाभारत युद्ध में इसका प्रयोग अश्वत्थामा और अर्जुन ने किया था. यह ब्रह्मास्त्र का बहुत विकसित रूप था. यह शत्रु सेना पर उल्काओं की बौछार करता था. इसकी नोक पर ब्रह्मा के चार सिर बने होते थे. इस शस्त्र को प्रकट कर उसका उपयोग करने का ज्ञान ऋषि अग्निवेश, द्रोण, अर्जुन और अश्वत्थामा को ही था. यह शस्त्र बहुत बड़े क्षेत्र को आग की लपटों में लपेट देता था. इससे बहुत भयंकर गर्जन भी होता था, जो शत्रु दल में भय पैदा कर देता था. पहाड़ और पृथ्वी तक काँप जाते थे. जिस जगह इसका प्रयोग किया जाता था वहाँ कई वर्षों तक घास का एक तिनका तक नहीं उगता. वर्षा नहीं होती और हर चीज ज़हरीली हो जाती थी. 

2. ब्रह्माण्ड- इस हथियार का उल्लेख महाभारत युद्ध में किया गया है. इसमें ब्रह्माजी के सभी पाँच सिरों को अपनी नोक पर प्रकट होते थे. इसमें समस्त सौरमंडल को नष्ट करने की शक्ति थी. इसमें इतनी शक्ति थी कि इसके प्रयोग से महासागर अपनी गरमी के कारण उबल जाते और पृथ्वी तथा पहाड़ हवा में तैर सकते थे. 

3. सुदर्शन चक्र- भगवान विष्णु का यह हथियार अमोघ माना जाता है. इसमें 108 दांतेदार किनारे हैं. छोड़े जाने पर यह शत्रु को समाप्त कर भगवान विष्णु के पास वापस आ जाता है. इसे किसी भी दिशा में मन के संकल्प से चलाया जा सकता है. भगवान श्रीकृष्ण ने अपने जीवनकाल में इसका अनेक जगह उपयोग किया. लेकिन भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम ने मानव अवतार की मर्यादा के चलते कभी इसका आह्वान नहीं किया. 

4. पाशुपतास्त्र- हिन्दू माइथोलॉजी के अनुसार पाशुपतास्त्र शिव, काली और आदि परा शक्ति का बहुत अनूठा और विनाशकारी हथियार है. इसे मन, आँखों, शब्दों और धनुष का उपयोग कर चलाया जा सकता था. इसे भगवान शिव ही किसी को प्रदान कर सकते हैं. अर्जुन की तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने यह उसे प्रदान किया था. 

5. नारायणास्त्र- यह भगवान विष्णु का व्यक्तिगत हथियार है. इससे एक साथ बहुत बड़ी संख्या में घातक मिसाइलें छूटती थीं. इसका मुकाबला करने पर इससे निकलने वाली विनाशक बौछारें और अधिक बढ़ जाती थीं. इसके प्रतिरोध का सामना करने का एकमात्र उपाय इसके सामने आत्मसमर्पण करना ही था. 

अपने पिता द्रोणाचार्य की हत्या के बाद क्रुद्ध होकर उनके पुत्र अश्वत्थामा ने यह हथियार पाण्डव सेना पर चलाया था. यह बड़ी चकित करने वाली बात है कि अपने प्रारम प्रिय शिष्य अर्जुन को द्रोणाचार्य ने यह शस्त्र प्रदान नहीं किया, जबकि अपने पुत्र को यह दे दिया. इसी कारण जब अश्वत्थामा ने जब इसे चलाया तो अर्जुन के पास भी इसका उत्तर नहीं था. किसी को यह नहीं पता था कि इसका प्रतिरोध कैसे किया जाए. इसके कारण पूरी पाण्डव सेना और ख़ुद पाण्डवों का विनाश निश्चित होने पर, भगवान श्रीकृष्ण ने इसका उपाय बताया. केवल वह ही इसे जानते थे. उन्होंने अपनी सेना और योद्धाओं से कहा कि सब अपने वाहनों से नीचे उतर कर अपने अस्त्र-शस्त्र जमीन पर रख दें और हाथ जोड़ कर नारायणास्त्र को नमन करें. 

ऐसा करते ही नारायणास्त्र वापस लौट गया और पांडवों को जीवनदान मिला. इसका प्रयोग एक बार ही किया जा सकता था. इस प्रकार, हम देखते हैं कि महाभारत काल में ब्रह्मास्त्र से भी बहुत अधिक घातक हथियार थे और इनमें से अधिकतर का प्रयोग भी किया गया.


 

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