सनातन धर्म में वेदों और उपनिषदों के साथ ही पुराणों का बहुत महत्त्व है. धर्म के गूढ़ रहस्यों और सूक्ष्म तत्वों को आम लोगों को समझाने के लिए रचित पुराणों प्रतीकों, रूपकों और कथाओं के माध्यम से धर्म का संदेश दिया गया है. कुल 18 पुराण मान्य हैं. यहाँ हम ब्रह्मपुराण का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है.
1. ब्रह्म पुराण
यह पुराण साकार ब्रह्म की उपासना का प्रतिपादन करता है. इसमें “ब्रह्म” को सबसे बड़ा और ऊँचा माना गया है. इसकी रचना के समय कर्मकाण्ड बहुत बढ़ जाने से समाज में बहुत-सी विकृतियाँ व्याप्त हो गयी थीं. इस पुराण में इस विषय में विस्तार से जानकारी दी गयी है. ब्रह्म पुराण के अनुसार इस जगत का जीवनदाता और कर्ता-धर्ता सूर्य है. इसलिए इस पुराण में सबसे पहले सूर्यदेव की उपासना की गयी है. इसमें सूर्य वंश का वर्णन बहुत विस्तार से किया गया है. इसका मुख्य विषय सूर्यदेव की उपासना ही है. ब्रह्म पुराण में 246 अध्याय हैं और इसके श्लोकों की संख्या करीब 14 हज़ार है. इसकी कथा लोमहर्षण सूतजी और शौनक ऋषियों के संवाद के जरिये वर्णित की गयी है.
इसमें ‘सूर्य वंश’ के बाद ‘चन्द्र वंश’ का वर्णन किया गया है. श्रीकृष्ण के अलौकिक चरित्र को विशेष रूप से दर्शाया गया है. इसमें जम्बू द्वीप और अन्य द्वीपों का विवरण दिया गया है. भारतवर्ष के वर्णन में यहाँ के प्रमुख तीर्थस्थलों का विवरण भी दिया गया है. इस पुराण में ‘शिव-पार्वती’ आख्यान भी है. इसमें वराह, नृसिंह और वामन अवतारों का वर्णन भी मिलता है. उड़ीसा के कोणार्क में सूर्यदेव का प्रमुख मंदिर है, जिसका वर्णन भी इसी पुराण में मिलता है. इसमें कहा गया है कि जो व्यक्ति भूमि पर माथा टेककर सूर्यदेव को नमस्कार करता है, उसे सभी पापों से छुटकारा मिल जाता है.
ब्रह्म पुराण में सृष्टि के सभी लोकों और भारत का भी वर्णन है. इसमें कलियुग का भी विस्तार से वर्णन किया गया है. इस पुराण में दी गयी कथाएं दूसरे पुराणों की कथाओं से कुछ अलग हैं. इसमें परम्परागत तीर्थों के अलावा कुछ ऐसे तीर्थों का वर्णन भी है, जिनका स्थान खोजना बहुत मुश्किल है. जैसे कपोत तीर्थ, पिशाच तीर्थ, क्षुधा तीर्थ, चक्र तीर्थ, गणिका संगम तीर्थ, अहल्या संगमेन्द्र तीर्थ, रेवती संगम तीर्थ, राम तीर्थ, पुत्र तीर्थ, खड्ग तीर्थ, आनंद तीर्थ, कपिला संगम तीर्थ आदि. इन सभी का सम्बन्ध गौतन ऋषि से है. इन तीर्थों से जुडी अनेक कथाएँ भी हैं.
ब्रह्म पुराण में ‘योग’ के लिए चित्त की एकाग्रता पर बहुत बल दिया गया है. इसके अनुसार, सिर्फ पद्मासन लगाकर बैठ जाने से योग नहीं होता. जब योगी का मन किसी कर्म में आसक्त नहीं होता, तभी सच्चा योग होता है और उसे सच्चा आनंद प्राप्त होता है. इसमें आत्मज्ञान का महत्त्व बताते हुए काम, क्रोध, लोभ, मोह , भय और स्वप्न जैसे दोषों को त्यागने का उपदेश दिया गया है. इसके अनुसार, ‘ज्ञानयोग’ कर्मयोग और सांख्य योग से बढ़कर है.
इस पुराण में भगवान् विष्णु के नृसिंह अवतार के अलावा दत्तात्रेय, परशुराम और श्रीराम के अवतारों की कथा भी दी गयी है. भविष्य में होने वाले कल्कि अवतार का भी उल्लेख इसमें मिलता है. इसके अलावा, इस पुराण में श्राद्ध, पितृकल्प, विद्या-अविद्या आदि का वर्णन भी है. इसमें गौमती नदी की महिमा का बहुत वर्णन किया गया है. इसमें तीर्थों के साथ रोचक कथाएं भी हैं, जिनमें कपोत-व्याध आख्यान, अंजना-केसरी और हनुमान का आख्यान, दधीचि आख्यान, सरमा-पाणी आख्यान, नागमाता कद्रू और गरुण माता विनता की कथा प्रमुख रूप से शामिल हैं.
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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