श्री समर्थ स्वामी ने अपने उपदेशों में बताया है कि उज्ज्वल व्यक्ति वह है जो अपने जीवन को सच्चाई, न्याय, और सेवा के माध्यम से समृद्धि की ओर बढ़ाता है। इस अध्याय में उन्होंने उज्जम व्यक्ति के विशेष लक्षणों का वर्णन किया है, जो लोगों को उन्हें आदर्श मानकर उनसे सीखने के लिए प्रेरित करते हैं।
निर्विकल्प सोचना: उज्जम व्यक्ति हमेशा सोच-समझकर ही किसी पर कार्रवाई करता है और उसे निर्विकल्प सोचने की आदत होती है। वह बिना जल्दबाजी और बिना किसी भ्रांति के निर्णय लेता है।
मर्यादा में रहना: उज्जम व्यक्ति शिष्टाचार और मर्यादा में रहकर अपने आचार-विचार में परिपूर्णता की ओर बढ़ता है। उसे यह बात हमेशा याद रहती है कि समाज की सुरक्षा और समृद्धि में धर्मनिष्ठता का महत्वपूर्ण योगदान होता है।
संगठन का समर्थन करना: उज्जम व्यक्ति समाज के संगठन और एकता के पक्ष में होता है। उसे यह बात समझ में आती है कि एक सशक्त समुदाय केवल उसके सदस्यों के सहयोग और संबंधों से ही संभव होता है।
क्रोध और आलस्य का नियंत्रण: उज्जम व्यक्ति अपने क्रोध और आलस्य को सावधानीपूर्वक नियंत्रित करता है। उसे यह बात हमेशा याद रहती है कि ये दोनों आध्यात्मिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं।
सत्य और न्याय के पक्ष में होना: उज्जम व्यक्ति सत्य और न्याय के प्रति पूरी तरह समर्पित होता है। उसे यह महत्वपूर्ण लगता है कि वह दूसरों के साथ ईमानदारी से और न्याय से व्यवहार करे।
अपने कुल और वंश का मान रखना: उज्जम व्यक्ति अपने कुल और वंश के प्रति समर्पित रहता है। उसे यह बात हमेशा याद रहती है कि एक उच्च आदर्श जीवन से ही समाज में सुधार संभव है।
गुरु का समर्थन करना: उज्जम व्यक्ति एक योग्य गुरु का समर्थन करता है और उसके मार्गदर्शन में सत्य और न्याय के मार्ग पर चलता है। गुरु के आदर्शों को अपनाना उसके लिए महत्वपूर्ण होता है।
इन लक्षणों के माध्यम से समर्थ स्वामी ने हमें यह सिखाया है कि अगर हम इन गुणों को अपनाएं तो हम समृद्धि, शांति, और सामाजिक समृद्धि की दिशा में अग्रसर हो सकते हैं।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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