Published By:कमल किशोर दुबे

बुद्ध  है अन्तस  हमारा, बुद्ध  ही भगवान है   

गीत:-

बुद्ध  है अन्तस  हमारा, बुद्ध  ही भगवान है।

चित्त हर पल शुद्ध तो वह, चित्त  प्रज्ञावान है।।

शुद्ध मन में बुद्ध बसते, बुद्ध  चेतन  विश्व है।

शक्तिमय है आत्मबल वह, शुद्ध जो व्यक्तित्व है।।

स्वाभिमानी हो मनुज पर धैर्य अनुशीलन करे,

जो स्वयं को शुद्ध कर पाए वही गुणवान है।।

चित्त हर पल शुद्ध तो वह, चित्त प्रज्ञावान है।।

स्वार्थ पर पाएँ विजय तो, दिव्य मानस बुद्ध है।

धैर्य-धारक, कर्मनिष्ठा- युक्त मानव शुद्ध है।।

यह जगत मिथ्या मगर है जीव अविनाशी सदा,

जो मनुज यह मर्म समझे, पा सके निर्वाण है।।

चित्त हर पल शुद्ध तो वह, चित्त प्रज्ञावान है।।

व्यक्ति प्रज्ञा शील जो, मन पर रखे संयम सदा।

है मनुज सेवा महत, निःस्वार्थ हो ये सर्वदा।।

आत्मदीपक ज्योति से ही घोर तम भी छँट सके, 

ढूँढ़ पाओ तब उसे, अन्तस बसा भगवान है।।

चित्त हर पल शुद्ध तो वह, चित्त प्रज्ञावान है।।

जब कहीं हिंसा प्रबल हो,तब अहिंसा क्या करे?

श्रेष्ठ है यह मार्ग लेकिन, प्राण- रक्षा तब करे।।

धर्म रक्षा, प्राण रक्षा से सदा ही श्रेष्ठतम,

प्राण रक्षा कर सके वह, धर्म है, ईमान है।।

चित्त हर पल शुद्ध तो वह, चित्त प्रज्ञावान है।।

जब 'कमल' बदलाव जीवन का सफलतम है नियम। 

क्यों नहीं हो धर्म का भी ये ज़रूरी अधिनियम।।

लोभ, लालच, वासना के त्याग से जीवन सुखद,

आचरण में सत्य, समता, श्रेष्ठ वह इंसान है।

चित्त हर पल शुद्ध तो वह, चित्त प्रज्ञावान है।।

                                                                 कमल किशोर दुबे


 

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