Published By:अतुल विनोद

क्या भोग और योग ... संसार और अध्यात्म एक साथ चल सकते हैं?.... अतुल विनोद

Materialism and Spiritualism   क्या भोग और योग ... संसार और अध्यात्म एक साथ चल सकते हैं?  ATUL VINOD    "अद्यात्म को लेकर अनेक अन्धविश्वास हैं| 

संसार और अध्यात्म की यात्रा एक साथ हो सकती है| लेकिन अध्यात्म के मार्ग पर वो सूत्र और सिद्धांत बेमानी हो जाते हैं जो संसार के मार्ग पर बहुत मान्य हैं|   What Is The Difference Between A Spiritual And A Materialistic Person?   भौतिकवादी व्यक्ति केवल अपना पेट पालता है।  आनंद, शांति, प्रेम के लिए - उसे भीख मांगनी पड़ती है। एक आध्यात्मिक व्यक्ति खुद सब कुछ कमाता है - प्यार, शांति, आनंद। वो केवल अपने भोजन के लिए भीख माँगता है, और यदि चाहे तो वो भी कमा सकता है। संसार में सम्बन्ध बहुत काम के हैं उनके बिना गुजारा नहीं, अध्यात्म में सम्बन्ध सिर्फ कर्तव्य हैं| संसार में कई तरह के प्रतिबन्ध हैं, आचरण है, व्यवहार है| रीति नीति है, लोकाचार है, आदर्श हैं, समाज है, परिवार है, सिस्टम है, कस्टम, जाति है, कुल है, मान्यताएं हैं, संस्कृति है| अध्यात्म इन पर आंख मूँद कर बंधता नहीं | 

संसार में हमने कई तरह के बंधन पाल लिए हैं इज्जत और शोहरत के लिए कई तरह के लबादे ओढ़ लिए हैं| अच्छा दिखने के लिए नकली सुंदर प्रसाधन हैं, तो सम्बन्धों को निभाने के लिए आडम्बर और झूठ का सहारा है| ख़ास तरह के कास्टयूम हैं, ऊंच-नीच है, सलीखा है, छोटा बड़ा है| धर्म के नाम पर प्रचलित अनेक कुरीतियाँ हैं| कुल की झूठी मर्यादाएं हैं| ऐसी मान्यताएं हैं कि कुल की रक्षा के लिए सब कुछ कुर्बान कर दो, लड़की ने दूसरी जाति में शादी कर ली तो मार दो उसे| अध्यात्म में न तो कोई कृत्रिम रीति है न ही पाखण्ड, न ही ऐसी नीतियाँ जो सिर्फ अहंकार को बढ़ावा देती हैं यहाँ सिर्फ मानवीयता है, सहजता है सरलता है| 

इसमें झिझक नहीं है, आनंद के लिए नाचने में भी नहीं है| झूठी गंभीरता और शान-ओ-शौकत का आडंबर नही है| यहाँ मर्यादा की जगह प्रेम है| जहां प्रेम हैं वहां सब कुछ अपने आप ही मानवीय हो जाता है| यहाँ ऊँच-नीच नहीं है सब बराबर हैं| यहाँ सम्बन्ध का आधार जात-पात नहीं है| इसमें बस प्रेम और सद्भावपूर्ण मन ही सम्मान के लिए पर्याप्त है| यहाँ अमीर के लिए ही कुर्सी नही है यहाँ हर प्राणी के लिए बराबर सम्मान है| अध्यात्म में बाहरी अमीरी को नहीं ज्ञान और विज्ञान की अमीरी को देखा जाता है| इसमें अज्ञानी को भी हेय नज़र से नही देखा जाता | यहाँ परिवार की आन बान शान ही सब कुछ नहीं| यहाँ ईश्वर की आन-बान-शान ही सब कुछ है|

   संसार में काम-धाम, करियर, बिजनेस सबसे बड़ा पुरुषार्थ है| मानव भूल जाता है कि उसके करने से नहीं मिल रहा इसमें उपर वाले की कृपा और अनुग्रह भी है| अध्यात्म में करियर और बिजनेस सिर्फ टूल है लाइफ की व्यवस्थाओं के लिए| अध्यात्म काम-धाम को पुरुषार्थ नहीं मानता वो आत्मसाक्षात्कार को पुरुषार्थ मानता है| संसार में नाम और दाम कमाना ही सब कुछ है| अध्यात्म कहता है ये सब तो एक दिन छोड़ ही देना है| तुम नाम-दाम कमाओ कोई हर्ज़ नहीं, लेकिन तुम्हारा लक्ष्य है सत्य तक पहुचना| वही तुम्हारा असली कर्तव्य और पुरुषार्थ है| 

संसार कहता है मोह में बंधो, घर परिवार, कार और यार से इतना बंध जाओ की वाहन में स्क्रेच भी आ जाए तो टक्कर देने वाले की भी जान ले लो|   परिवार से भी एक न एक दिन किसी से बिछड़ना ही है, तुम्हे भी जाना है, फिर क्यूँ किसी के जाने पर टूट रहे हो|   अध्यात्म कहता है सामान छूट जाए, अपना दुनिया छोड़कर चला जाये, तब भी सम भाव में रहो| इतना दुखी मत हो जाओ कि आत्मकल्याण का मार्ग ही छोड़ दो| तुम भी तो सब कुछ छोड़ जाओगे| कभी कोई तुम्हे छोड़ देता है कभी तुम सबको छोड़ देते हो| क्रम बदलता है बस| 

अध्यात्म कहता है बिना कारण शोक में मत डूबे रहो| धरती पर आये हो तो बिना कारण भी हँसो| रोते-खीजते और गिडगिडाते ही मत रहो| मान सम्मान भी चला जाये तो क्या, चिंता मत करो संसार में मान बने न बने उसके सामने इज्ज़त कमाओ|   गलतियाँ हो भी जाए तो क्या मानव ही तो हो| दूसरों के बारे में इतना मत सोचो, अच्छा करो लेकिन उसके बदले लोग तुम्हे अच्छा ही कहें मत परवाह करो| संसार हर परिवर्तनशील वस्तु से जुड़ने को कहता है| जो भी दिखाई देता है बदल ही जाता है| अध्यात्म कहता है परिवर्तशील को समझो उसके साथ जिओ, लेकिन जुड़ो उससे जो परिवर्तित नहीं होता |  

सब कुछ बदल जाएगा छूट जायेगा लेकिन नहीं बदलोगे "तुम"| क्यूंकि तुम शरीर नही हो, तुम आत्मा हो| और नहीं बदलेगा वो ब्रम्ह जिसके तुम हिस्से हो| उसी से परमानेंट जुडो उसी से गहरा नाता जोड़ो| उससे जुडो जो सत्य है सनातन है| सिर्फ संसार के साथ अध्यात्म नहीं चल सकता लेकिन सिर्फ अध्यात्म के साथ संसार चल सकता है| सिर्फ भोग के साथ योग नहीं चल सकता लेकिन सिर्फ योग के साथ भोग चल सकता| अध्यात्म और योग, संसार और भोग के विरोधी नही| अध्यात्म योग संसार से दूर नहीं करता बल्कि संसार में जीने के साथ मोक्ष का रास्ता भी दिखाता है| योग भोग को मोक्ष से जोड़ने का नाम है| कृष्ण सबसे बड़ा उदाहरण हैं जो इस तरह जीते हैं जिससे भोग भी हो जाये| और जन्म का उद्देश्य भी पूरा हो जाए| इसी को सम्पूर्ण योग कहते हैं|  

 

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