Published By:अतुल विनोद

ईश्वर को सिर्फ याद करें, शिकायतें और मांगे ना रखें..... अतुल विनोद 

ईश्वर को सिर्फ याद करें, शिकायतें और मांगे ना रखें..... अतुल विनोद 

परमात्मा से या तो हम मांगे करते हैं या फिर शिकायते...

हम जब भी ईश्वर को याद करेंगे उसके सामने कोई ना कोई डिमांड जरूर रखेंगे। शिकायतों का तो कोई अंत ही नहीं है। इतनी शिकायतें हैं कहा नहीं जा सकता। सारी शिकायतें किससे हैं परमात्मा से। सारी जिम्मेदारी उसकी है हम अपनी जिंदगी की जिम्मेदारी खुद नहीं लेना चाहते। इसलिए शिकायतें करते हैं। शिकायतें करना जिंदगी की सबसे बड़ी कमजोरी है।

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यदि हम भी शिकायतें करने के आदी हैं तो हमें सचेत हो जाना चाहिए| क्योंकि हमारी शिकायतें हमारी लाइफ को ठीक नहीं कर सकती| बल्कि शिकायतों की वजह से लाइफ और व्यस्त हो सकती है| इस संसार में दूसरा कोई नहीं जिससे आप शिकायतें कर सके क्योंकि लाइफ में आपको जो भी मिलता है वो आपके ही कर्मों के कारण मिलता है| इसलिए हर हाल में अपने ऊपर भरोसा रखें और शिकायतों से जहां तक हो सके दूरी बनाए|

बी रिस्पांसिबल 

हम अपने हर हाल के जिम्मेदार खुद हैं| यह बात हमें समझनी होगी| यदि हम अपने कर्म भावनाएं और विचारों से हटकर कुछ झेल रहे हैं तो यकीन मानिए परमात्मा उस दुख के बदले हजार गुना ज्यादा सुख देगा| 

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प्रकृति आपके साथ बिना आपके कर्म फल के कुछ गलत करती है तो उसका भुगतान भी वो करती है| उसका हर्जाना भी देती है| यदि आपकी लाइफ में कोइंसिडेंटली कुछ गलत हो गया है जिसके जिम्मेदार आप नहीं है तो आप भगवान पर भरोसा रखिए, उसके कानून पर भरोसा रखिए वो उसकी भरपाई करेगा और कई गुना ज्यादा करेगा|

ईश्वर हमारी समस्या का समाधान नहीं है

ईश्वर हमारे बदले हमारा काम नहीं करेगा| हमारा काम हमें खुद करना है इस दुनिया में हमारे पास “फ्री विल” है “स्वतंत्र इच्छा शक्ति” जिसके जरिए हम अपने जीवन का रास्ता स्वयं तय कर सकते हैं| परमात्मा को जिम्मेदारी देने, समर्पण करने के बावजूद भी कदम तो उठाने ही पढ़ते हैं| यदि हम कदम नहीं उठाते, हम निष्क्रिय बने रहते हैं तब भी हमें प्रकृति द्वारा मजबूर किया जाएगा|

हमारे सामने यदि विपरीत परिस्थिति है तो हमें उससे लड़ना ही होगा| यदि हमारे साथ कोई अन्याय हुआ है तो उस अन्याय का प्रतिकार करना ही होगा| नहीं करेंगे ईश्वर के भरोसे बैठे रहेंगे तो अपना ही नुकसान करेंगे| अपनी जिंदगी में अपने कर्मों की रिस्पांसिबिलिटी लीजिए|


अपने सामने आई परिस्थिति का मुकाबला करने के लिए उठ खड़े हों| उस परिस्थिति के खिलाफ मोर्चा खोल दीजिए| समय रहते विपरीत परिस्थिति का मुकाबला करें| समय रहते अपने अंदर या बाहर के नेगेटिव सरकमस्टेंसस के खिलाफ रजिस्टेंस विकसित करें|

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हमें अपना कर्म करना ही पड़ता है| बड़ा से बड़ा साधक, संत महात्मा अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं सकता| कोई भी अपने कर्म फल को भोगे बिना इस दुनिया से निकल नहीं सकता| यदि वो कर्म के भोग, विपरीत परिस्थितियों का सामना किए बगैर आत्महत्या का रास्ता चूज़ करता है तो उसे फिर अगले जन्म में वैसी ही परिस्थिति और भी ज्यादा कठिनाई के साथ भोगनी पड़ेगी|

यदि आपको मैदान में धकेला गया है तो आपको मैदान में लड़ना ही पड़ेगा| यदि आपको रेस में उतारा गया है तो आपको दौड़ना ही पड़ेगा| यदि आपको कुश्ती करने के लिए धकेला गया है तो आपको कुश्ती करनी ही होगी| आपको जिस भी मैदान में उतारा गया है उस मैदान के नियम के अनुसार खेलना पड़ेगा|

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यह आपकी स्वयं की च्वाइश है, भले ही आपने इस जन्म में अपनी कॉन्शसनेस के साथ उसका निर्णय नहीं किया| लेकिन आपने कभी न कभी उस परिस्थिति में उतरने का फैसला किया था| इसलिए आपको उस मैदान में उतारा गया| यह आपका ही फैसला होता है| ईश्वर से बात करते रहे लेकिन शिकायतों की पोटली खोलकर नहीं|

ईश्वर से संपर्क और संबंध रखें लेकिन अपनी डिमांड के लिए नहीं| ईश्वर के सामने उपस्थित हो जाएँ| बिना किसी पूर्वाग्रह के, बिना किसी मांग और शिकायतें लिए| ईश्वर तो आपके साथ ही है| ईश्वर आपके अंदर ही है| यदि आप लड़ने का फैसला करते हैं ईश्वर आपकी सहायता करता है|

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अतुल विनोद 
7223027059

 

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