Published By:धर्म पुराण डेस्क

अहंकार पतन का कारण

व्यक्ति को जब अहंकार हो जाता है तो वह उसी के बल पर सब कुछ प्राप्त करना चाहता है, लेकिन संत या सदपुरुष युक्ति या प्रार्थना के माध्यम से, और इसके बाद भी उसे कुछ नहीं मिलता है तो। वह कर्म विधान समझकर अपने को अलग कर लेता है, स्वयं से समझौता कर लेता है. 

राजा बलि को शुक्राचार्य ने आदेश दिया कि संत ब्राह्मणों, देवताओं को सताओ, वेद-पुराणों का अपमान करो. बलि ने आदेश प्राप्त कर देवराज इंद्र पर भी विजय प्राप्त कर ली, जितनी भी देव योनियां थीं, सभी को अपने वश में कर लिया. 

देवता दयालु होते हैं जबकि राक्षस कठोर और निष्ठुर. राजा बलि ने अपने जीवन में बाहुबल से सब कुछ प्राप्त किया लेकिन भगवान ने वामन रूप धारण कर क्षण भर में सब कुछ ले लिया. राजा बलि को वन जाना पड़ा.

जब तक दैत्यों का अत्याचार चरम पर नहीं पहुंच जाता तब तक भगवान अवतार नहीं लेते. उनके अवतार लेने पर सभी समस्याओं का समाधान हो जाता है. 

आज मनुष्य की प्रवृत्ति ऐसी हो गयी है कि वह अपने दुःख को दस लोगों के सामने रोयेगा, लेकिन भगवान के सामने नहीं, वही मनुष्य का सबसे बड़ा दोष है. प्रभु अनभिज्ञ नहीं हैं. वह अखंड, अद्वैत, अगोचर ब्रह्म सबका ध्यान रखता है, उससे कुछ छुपाया नहीं जा सकता.

राजा बलि के कारण ही समुद्र मंथन की घटना हुई. देवताओं और दैत्यों के बीच युद्ध का कारण भी राजा बलि ही थे. जब अमृत समुद्र मंथन से निकला तो राजा बलि ने कलश छीन लिया. जब एक पक्ष कमजोर हो तो दूसरा पक्ष अपने बल पर हावी हो जाता है. 

बलि ने देवताओं को अपने बल से परास्त कर दिया लेकिन अंततः विजय देवताओं को मिली, क्योंकि उनके साथ साक्षात् भगवान थे. जिसके ऊपर भगवान की कृपा हो जाती है, उसके लिए संसार का कोई भी कार्य दुष्कर नहीं होता. यदि मनुष्य अडिग आस्था और विश्वास से भगवान का आश्रय लेता है तो भगवान अपने भक्त को कभी निराश नहीं करते.


 

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