हमारी मानसिकता ऐसी हो गई है कि हम अपनी गलतियों को स्वीकार करने में असमर्थ हो जाते हैं, परन्तु दूसरों की गलतियों को दूर करने के लिए हम तत्पर हो जाते हैं। इस प्रकार, हमें अपने स्वयं को सुधारने की आवश्यकता है।
महापुरुषों ने हमें सिखाया है कि हमें स्वयं के प्रति कठोर और दूसरों के प्रति सरल होना चाहिए। यहां, गहरे पूर्वाग्रह के बिना हम स्वयं को स्वीकार करने का आदान-प्रदान कर सकते हैं और अन्य लोगों की सम्मान कर सकते हैं।
ज्ञानी व्यक्ति किसी पूर्वाग्रह से मुक्त होता है और उसे दूसरों पर अपना आधिपत्य जमाने की आवश्यकता नहीं होती है। उसे लोगों को उनकी अस्तित्व के रूप में स्वीकार करने का शिक्षा दी जाती है। इस प्रकार, उसके जीवन में संयम, सत्य और धैर्य का विकास होता है।
आखिरकार, हमें स्वयं में परिवर्तन लाने की जरूरत है और उसे अपने जीवन में अनुभवित करनी चाहिए। जो परिवर्तन हम दूसरों में देखना चाहते हैं, उसे पहले स्वयं के जीवन में लाने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार, हम सच्ची प्रगति कर सकते हैं और अपने जीवन को सफल बना सकते हैं।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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