Published By:धर्म पुराण डेस्क

माता-पिता के झगड़े में बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं।

कितनी अजीब बात है कि इस तरह के मामले दिनोदिन बढ़ते जा रहे हैं। अधिकांश घरों में होने वाले माता-पिता के झगड़े में बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। इस समय इनके सुप्त दिनाग में जो बैठ जाता है वह ताउम्र निकलना मुश्किल होता है और इसका खामियाजा भी उन्हें ही भुगतना पड़ता है।

पैरेंटिंग- 

झगड़ा माता-पिता का, मुसीबत बच्चों की..

मन में बैठ जाता है डर-

जिन घरों में माता-पिता के बीच कलह और मारपीट होती रहती है वहां का माहौल काफी खौफनाक हो जाता है और बच्चे दबे-सहमे से रहने लगते हैं। ये बच्चे सदैव खुद को असुरक्षित और असहाय महसूस करते हैं। न तो इनका पढ़ने-लिखने में ठीक से मन लगता है और न ही खेलकूद में कई बार तो इनका मानसिक और शारीरिक विकास भी बाधित हो जाता है और ये आगे चलकर फियर साइकोसिस का शिकार बन जाते हैं।

सीखते हैं विध्वंस का पाठ-

ये बच्चे माता-पिता के व्यवहार को देखकर वही सीखते हैं कि ऊंचे स्वर में अनर्गल बोलकर, सामान फेककर, गाली-गलौज से या मारपीट से अपना रौब जमाया जा सकता है। सृजनात्मकता के भाव से परस्पर विचार-विमर्श करके मामला सुलझाने के स्थान पर विध्वस से सुलझाने का पाठ बच्चे अनजाने ही पढ़ लेते है।

स्वास्थ्य पर पड़ता है बुरा असर-

मनोविज्ञानियों के शोध के मुताबिक झगड़ालू मां-बाप के बच्चों का भावनात्मक स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित होता है। उनमें गलत संस्कार तो पनपते ही है साथ ही एंग्जायटी, डिप्रेशन, बेचैनी और हाइपरटेंशन की समस्या भी हो सकती हैं। सिचुएशन ज्यादा गंभीर हो, तो ऐसे बच्चे नशेड़ी और अपराधी भी बन सकते हैं। इनमें पागलपन करता या असंवेदनशीलता जैसी मानसिक समस्याएं भी पनप सकती हैं। या फिर ऐसे बच्चे बड़े होकर बेहद कमजोर विलपॉवर वाले, डब्बू, डरपोक एवं गुमसुम स्वभाव के इंसान भी बन सकते हैं। ऐसे में इस बात की बहुत कम संभावना होती है कि ये बच्चे बड़े होकर अपने सामाजिक या व्यक्तिगत कर्तव्य ठीक से निभा पाएंगे।

शिखर चंद जैन


 

धर्म जगत

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