चित्रकूट देश की विविध संस्कृति का पालन-पोषण करने वाला है, जो न केवल सभी धर्मों की समानता को दर्शाता है, बल्कि वैदिक धर्म, शैव, शक्ति और वैष्णव परंपराओं की तीन धाराओं का ध्वजवाहक है, यह दुनिया का एकमात्र पवित्र स्थान है जहां सभी देवी-देवताओं को इतना सम्मान मिलता है।
चित्रकूट में आज गोवर्धन दिवस पर यादव/अहीर समुदाय से लोग सूर्योदय से दोपहर तक इस प्रकार टोलियों में आते हैं और देवारी नृत्य करते हुए कामदगिरि की परिक्रमा करते हैं।#JansamparkMP pic.twitter.com/g2bPim7SbH
— जनसम्पर्क कार्यालय सतना (@PRO_Satna) November 5, 2021
कृष्ण की भक्ति
दीपावली के दूसरे दिन बुंदेलखंड के गांवों के युवा यहां गोवर्धन पूजा के साथ आते हैं. पवित्र आकाशगंगा में स्नान करने के बाद, वे मंदिरों में जाते हैं और मौन में उपवास करते हैं और गायों को खिलाने का संकल्प लेते हैं। वैसे तो यह पूजा अहीर (यादव) जाति की मानी जाती है, लेकिन यह पूजा अब सभी जातियों में पशुपालन के कारण आम हो गई है।
भवानीपुर चित्रकूट उत्तर प्रदेश के कुछ खास दिवालिया (दीवारिया) जो जो डांडिया खेल इस तरह से खेला जाता है। जरूर देखें pic.twitter.com/wWJ3GbmW7y
— C P Sargam Journalist (@CPSargamJourna1) November 5, 2021
चित्रकूट में आज गोवर्धन दिवस पर यादव/अहीर समुदाय से लोग सूर्योदय से दोपहर तक इस प्रकार टोलियों में आते हैं और देवारी नृत्य करते हुए कामदगिरि की परिक्रमा करते हैं।
मौनिया व्रत क्या है
गो पालन करने वालो को ग्वाला कहते हैं। मौनिया व्रत की परंपरा कृष्ण से जुड़ी है। इसमें गाय को मौन होकर मोरपंख की सहायता से चराया जाता है। भोजन कराते समय वह नंगे पांव रहता है। केवल गौ सेवा की जाती है, कोई अतिरिक्त कार्य नहीं किया जाता है।
कापालिकों की साधना
चित्रकूट क्षेत्र में महाराजा अत्रि और उनके पहले पुत्र दत्रात्रेय भगवान शंकरजी के ही प्रतिरूप थे। उन्हें शैव धर्म में प्रथम आचार्य माना जाता है। स्वामी मछिंद्रनाथ से लेकर योगी गोरखनाथ आदि इस परंपरा के संत हैं। दिवाली में कापालिक अनुसूया आश्रम से लेकर स्फटिक शिला के महाश्मशान तक हजारों की संख्या में लोग साधना करते नजर आते हैं|
चित्रकूट में शक्ति की पूजा क्यों की जाती है?
पौराणिक कथा है कि राजा दक्ष की बेटी सती का हवन कुंड से लेकर मृत शरीर लेकर जब महादेव पूरे ब्रम्हांड पर भ्रमण कर रहे थे, तो श्रीहरि विष्णु ने उन्हें काटने के लिए सुदर्शन चक्र को रवाना किया । चक्र से काटे गए अंग जहां गिरे तभी पाषाण में परिवर्तित हो गए। ये 51 शक्तिपीठ बने। भारत मे 34, नेपाल, पाकिस्तान, बंग्लादेश में अन्य शक्तिपीठ हैं। चित्रकूट में उनका दायां वक्ष (स्तन) गिरा था। आज भी यह परिक्रमा मार्ग पर चक्र तीर्थ पर सुदर्शन चक्र के साथ विद्यमान है। शक्ति आराधना के इस स्थल पर माँ मोक्षदा की पूजा आराधना होती है। वैसे माँ सीता जी ने यहाँ पर माँ दुर्गा व श्री राम ने वनदेवी की आराधना की थी।
बिहार के सोनपुर मेले के बाद देश के सबसे बड़े गधे मेले के रूप में चित्रकूट के नयागांव क्षेत्र में मेला चलता है. हालांकि इसका कोई लिखित इतिहास नहीं है, लेकिन स्थानीय आयोजकों का कहना है कि यह सैकड़ों साल पुराना है। 7 साल पहले यहां एक गधा 3 लाख रुपए में बेचा गया था।
देश भर से आते हैं नागवंशीय
चित्रकूट के जंगलों औषधीय पौधों से भरे पड़े हैं। सदियों से दीपावली की रात में यहां पर नागवंशीय जड़ियों को अभिमंत्रित कर उनका उपयोग करने के लिए आते रहे हैं।
दीपदान का महत्व
मंदाकिनी नदी में स्नान ध्यान करके दीपदान के लिए लाखों की संख्या में यहां लोग आते हैं। कहा जाता है कि ऐसा करने से सर्वसुखों की प्राप्ति होती है। दीपदान के बाद कामतानाथ की परिक्रमा की जाती है, जो यहां से करीब 7 किलोमीटर दूर बताया जा रहा है।
Incredible. Mesmerising. Divine.
— Alakh Alok Srivastava (@advocate_alakh) November 1, 2021
This moment can’t be accurately expressed in words.
Mandakini River Aarti at Ramghat, #Chitrakoot🙏🏻🙏🏻
Proud to be an Indian.
Proud to be a Hindu.
My sincere thanks to @myogiadityanath Ji for this magnificent arrangement🙏🏻#IncredibleIndia pic.twitter.com/zdiWH6hoGD
एमपी और यूपी से शामिल
दो प्रदेश की सीमा से लगे होने की वजह से चित्रकूट मेले में मध्यप्रदेश के पन्ना, सीधी, सिंगरौली, रीवा, सतना एवं उत्तरप्रदेश के करवी, बांधा, इलाहाबाद, कानपुर से यहां भक्तों का आना होता है। जानकारों के अनुसार इन स्थानों पर मेले को लेकर खास मान्यता है। जिससे दोनों ही सटे प्रदेशों के लोग यहां एकत्रित होते हैं।
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