यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा शास्त्रं तस्य करोति किम्।
लोचनाभ्यां विहीनस्य दर्पणः किं करिष्यति।।
- चाणक्य नीति जिस व्यक्ति के पास बुद्धि न हो ऐसे बुद्धिहीन मूर्ख का वेद शास्त्र क्या भला कर सकते हैं जैसे अंधे व्यक्ति के लिए दर्पण का कोई उपयोग नहीं।
विमर्श: आचार्य चाणक्य ने क्या सटीक बात कही है। यूँ तो बल कई प्रकार के होते हैं पर 'बुद्धिबल' सबसे बड़ा होता है।
'बुद्धिर्यस्य बलं तस्य निर्बुद्धेश्च कुतो बलम्' (चाणक्य) के अनुसार जिसके पास बुद्धि है उसी के पास बल है, बुद्धिहीन के पास बल कहाँ ?
"बोध नात बुद्धि" के अनुसार जो किसी भी पदार्थ या विषय का बोध कराये उसे बुद्धि कहते हैं। अब अपने लिए क्या भला है क्या बुरा, यह बोध कराना बुद्धि का काम है। जिसके पास ऐसा बोध करने की योग्यता न हो वह बुद्धिहीन है।
अपने शरीर, स्वास्थ्य और जीवन के लिए क्या करना अच्छा है और क्या करना बुरा - यह न समझने वाला व्यक्ति बुद्धिहीन या मूर्ख है और जो बुरा-भला समझता है फिर भी जानबूझकर बुरे काम करके अपने शरीर और स्वास्थ्य को हानि पहुँचाता है ऐसा व्यक्ति मूर्ख ही नहीं बल्कि प्रज्ञापराधी भी है क्योंकि जानबूझकर कुकर्म करना प्रज्ञापराध है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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