 Published By:धर्म पुराण डेस्क
 Published By:धर्म पुराण डेस्क
					 
					
                    
गौतम धर्मसूत्र के अनुसार वेद धर्म का मूल है। "जो धर्मज्ञ हैं, जो वेदों को जानते हैं, उनका मत ही धर्म-प्रमाण है, ऐसा आपस्तम्ब का कथन है। "ऐसा ही कथन वसिष्ठ धर्मसूत्र का भी है।
"मनुस्मृति के अनुसार धर्म के उपादान पाँच हैं- सम्पूर्ण वेद, वेदज्ञों की परम्परा एवं व्यवहार, साधुओं का आचार तथा आत्मतुष्टि।”
ऐसी ही बात याज्ञवल्क्यस्मृति में भी पायी जाती है- वेद, स्मृति (परम्परा से चला आया हुआ ज्ञान ), सदाचार (भद्र लोगों के आचार व्यवहार), जो अपने को प्रिय (अच्छा) लगे तथा उचित संकल्प से उत्पन्न अभिकांक्षा या इच्छा; ये ही परम्परा से चले आये हुए धर्मोपादान हैं।"
उपर्युक्त प्रमाणों से स्पष्ट है कि धर्म के मूल उपादान हैं वेद, स्मृतियाँ तथा परम्परा से चला आया हुआ शिष्टाचार(सदाचार)।
वेदों में स्पष्ट रूप से धर्म-विषयक विधियाँ नहीं प्राप्त होती, किन्तु उनमें प्रासंगिक निर्देश अवश्य पाये जाते हैं और कालांतर के धर्मशास्त्र-सम्बन्धी प्रकरणों की ओर संकेत भी मिलता है।
वेदों में लगभग पचास ऐसे स्थल है जहाँ विवाह, विवाह-प्रकार, पुत्र-प्रकार, गोद-लेना, सम्पत्ति-बंटवारा, रिवथलाभ (वसीयत), श्राद्ध, स्त्रीधन जैसी विधियों पर प्रकाश पड़ता है।
"वेदों की ऋचाओं से यह स्पष्ट होता है कि भ्रातृ हीन कन्या को वर मिलना कठिन था। कालांतर में धर्मसूत्रों एवं याज्ञवल्क्य स्मृति में भ्रातृ विहीन कन्या के विवाह के विषय में जो चर्चा हुई है, वह वेदों की परम्परा से गुथी हुई है।"
विवाह के विषय में ऋग्वेद की 10.85 वाली ऋचा आज तक गायी जाती है और विवाह-विवि में प्रमुख स्थान रखती है।
धर्मसूत्रों एवं मनुस्मृति में वर्णित ब्रह्म विवाह-विधि की झलक वैदिक समय में भी मिल जाती है।
"वैदिक काल में आसुर विवाह अज्ञात नहीं था।" गान्धवं विवाह की भी चर्चा वेद में मिलती है। औरस पुत्र की महत्ता की भी चर्चा आयी है।
ऋग्वेद में लिखा है- अनीरस पुत्र, चाहे वह बहुत ही सुन्दर क्यों न हो, नहीं ग्रहण करना चाहिए, उसके विषय में सोचना भी नहीं चाहिए।
"तैत्तिरीय संहिता में तीन ऋणों के सिद्धांत का प्रतिपादन किया गया है। धर्मसूत्रों में वर्णित क्षेत्रज पुत्र की चर्चा प्राचीनतम वैदिक साहित्य में भी हुई है।"
तैत्तिरीय संहिता में आया है कि पिता अपने जीवनकाल में ही अपनी संपत्ति का बंटवारा अपने पुत्रों में कर सकता है। इसी संहिता में यह भी आया है कि पिता ने अपने ज्येष्ठ पुत्र को सब कुछ दे दिया।
"ऋग्वेद ने विद्यार्थी जीवन (ब्रह्मचर्य) की प्रशंसा की है, शतपथ ब्राह्मण ने ब्रह्मचारी के कर्तव्यों की चर्चा की है, यथा मदिरापान से दूर रहना तथा संध्याकाल में अग्नि में समिधा डालना। तैत्तिरीय संहिता में आया है कि जब इन्द्र ने पतियों को कुलों (भेड़ियों) के (खाने के लिए दे दिया, तो प्रजापति ने उसके लिए प्रायश्चित्त की व्यवस्था की।
"शतपथ ब्राह्मण ने राजा तथा विद्वान ब्राह्मणों को पवित्र अनुशासन पालन करने वाले। (धृतव्रत) कहा है।
ऐतरेय ब्राह्मण का कथन है कि जब राजा या कोई अन्य योग्य गुणी अतिथि आता है तो लोग बैल या गो-संबंधी उपहार देते हैं। " शतपथ ब्राह्मण ने वेदाध्ययन को यज्ञ माना है और तैत्तिरीयारण्यक ने उन पाँच यज्ञों का वर्णन किया है, जिसकी चर्चा मनुस्मृति में भली प्रकार हुई है।" ऋग्वेद में गाय, घोड़ा, सोने तथा परिधानों के दान की प्रशंसा की गयी है।
ऋग्वेद ने उस मनुष्य की भर्त्सना की है, जो केवल अपना ही स्वार्थ देखता है।" ऋग्वेद में 'प्रपा' की चर्चा हुई है, यथा- 'तू मरुभूमि में प्रपा के सदृश है।" जैमिनी के व्याख्याता शबर तथा याज्ञवल्क्य के व्याख्याता विश्वरूप ने 'प्रपा' (वह स्थान जहाँ यात्रियों को जल मिलता है) के लिए व्यवस्था बतलायी है।
उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि कालान्तर में धर्मसूत्रों एवं धर्मशास्त्रों में जो विधियाँ बतलायी गयीं, उनका मूल वैदिक साहित्य में अक्षुण्ण रूप में पाया जाता है।
धर्म शास्त्रों ने वेद को जो धर्म का मूल कहा है, वह उचित ही है। किन्तु यह सत्य है कि वेद धर्म-सम्बन्धी निबन्ध नहीं है, वहाँ तो धर्म-सम्बन्धी बातें प्रसंगवश आती गई है। वास्तव में धर्मशास्त्र-सम्बन्धी विषयों के यथातथ्य एवं नियमनिष्ठ विवेचन के लिए हमें स्मृतियों की ओर ही झुकना पड़ता है।
 
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
February 24, 2024 
                                यदि आपके घर में पैसों की बरकत नहीं है, तो आप गरुड़...
February 17, 2024 
                                लाल किताब के उपायों को अपनाकर आप अपने जीवन में सका...
February 17, 2024 
                                संस्कृति स्वाभिमान और वैदिक सत्य की पुनर्प्रतिष्ठा...
February 12, 2024 
                                आपकी सेवा भगवान को संतुष्ट करती है
February 7, 2024 
                                योगानंद जी कहते हैं कि हमें ईश्वर की खोज में लगे र...
February 7, 2024 
                                भक्ति को प्राप्त करने के लिए दिन-रात भक्ति के विषय...
February 6, 2024 
                                कथावाचक चित्रलेखा जी से जानते हैं कि अगर जीवन में...
February 3, 2024 
                                
                                 
                                
                                 
                                
                                 
                                
                                 
                                
                                