Published By:धर्म पुराण डेस्क

पवित्रता की अवधारणा जाति शुद्धि का तरीका 'सारनी', भीली उत्पत्ति कथाएँ एवं विश्वास…

लोक विश्वासों के अनुसार भील और उसकी उपजातियों में जाति पाति का भेदभाव माना जाता है। 

अगर कोई भिलाला भील की लड़की को अपनी पत्नी बना लेता है तो जाति वाले उसे अपनी जाति से बाहर कर देते हैं। उनके हाथ का भोजन-पानी ग्रहण नहीं करते हैं। ऐसे लोगों को जाति में लेने के लिए ग्राम- देवळाई (जिला-झाबुआ) में बारह ग्राम का पटेल अपने बारह ग्राम के लोगों जो भिलाला-भील की लड़की को ले आता है, उन्हें चोखा कर देता है। 

वह भेंट में रुपये और बकरा लेता है और चावल मँगवाता है। बकरे का भोग लगाकर चावल बनवाता है और लोगों को खिलाता है और उसे चोखा करके जाति में ले लेता है। इसके बाद सबके द्वारा जाति में शामिल किए व्यक्ति को मान्यता प्राप्त होती है

स्रोत: श्री दुकाल सिंह पटेल, देवलाई, जोबट, अलीराजपुर

एक

तीन लड़के बड़ी जाति वाले और दो लड़के धाणकला भील, कुल पाँच लड़कों को उस दिन उपवास करना होता है, जिनको चोखा किया जाता है। उस पति-पत्नी को भी उपवास रखना पड़ता है। इसके बाद पटेल और तड़वी आते हैं। 

उनके द्वारा लड़के वालो से निम्नानुसार सामग्री मांगी जाती है सवा किलो दाल्या (भुने चने), सवा किलो गुड़, पाँच किलो चावल, पाँच नग नारियल, सवा किलो शकर, एक बोतल महुए की शराब। ग्राम के पटेल और तड़वी उन दोनों पति-पत्नी और उपवास रखे हुए पाँचों लड़कों सहित ग्राम के कुछ लोगों के साथ खेड़ादेवी के थानक पर जाते हैं और खेड़ा देवी को पटेल व तड़वी शुद्ध जल से स्नान करवाते हैं। 

कुंकुम का तिलक लगाकर दीपक व अगरबत्ती लगाते हैं। नारियल-शकर-चने का देवी को भोग लगाकर प्रसाद सभी लोगों को वितरण करते हैं। घर की महिलाएं गोबर और मिट्टी के घोल से घर की लिपाई करती है। पटेल और तड़वी घर आकर घर में दारू की धार डालते हैं। इसके बाद दाल-चावल बनाते हैं। 

पहले पांचों उपवास रखे हुए लड़कों को भोजन परोसते हैं। जब भोजन पाँचों को परोस दिया जाता है, तब धाणकला भील के दो लड़के अपनी थाली से थोड़ा-थोड़ा चावल लेकर बड़ी जाति वाले तीनों लड़कों की थाली में रखते हैं। फिर बड़ी जाति वाले तीनों लड़के अपनी थाली में से थोड़ा-थोड़ा चावल लेकर धाणकला भील के दोनों लड़कों की थाली में रखते हैं। पांचों पहले भोजन कर लेते हैं। तब दूसरे लोगों को भोजन कराया जाता है।

खेड़ादेवी पर वितरण करते समय कुछ प्रसाद बचाकर रखते हैं। उस प्रसाद को वर-वधू अपने हाथ से सभी को देते हैं। वर-वधू पटेल और तड़वी के चरण स्पर्श करते हैं। आशीर्वाद में पटेल-तड़वी कहते हैं कि आज से तुमको जाति में मान्य किया जाता है। इस प्रकार सारनी करके उन्हें जाति में लिया जाता है।

स्रोत भी कालू भील, देवधा, बाग, धार

दो

भील जाति में किसी युवती को विवाह के पूर्व गर्भधारण हो जाये और फिर वह अपनी जाति वाले पुरुष से विवाह करे, तो उस जाति के लोग उसकी सारनी करके संतान को पिता की जाति में मान्य कर लेते हैं। सारनी की रीति-दाल्या एक-दो किलो, नारियल एक, गुड़ सवा सेर, दारू दो-तीन मटके, चावल एक क्विंटल, बकरा एक। इसके पश्चात् सम्बन्धी और गाँव के लोग एकत्रित होते हैं। 

पहले पुजारा दारू जमीन पर तरपता है। फिर दलिया-गुड़ तरपता है और इसके बाद सभी को प्रसाद बांटते हैं। बकरे का भोग देकर चावल और सब्जी बनाते हैं। जितने लोग एकत्रित होते हैं, उनको खिलाते हैं। ग्राम का पटेल सारनी के कम से कम पाँच सौ रुपये लेता है।

तीन

स्रोत: श्री भुवान सिंह री, पिपरियापानी, धार

इसी प्रकार कोई भिलाला भील लड़की को ले आता है, तो सारनी करके उसे जाति में ले लेते हैं। उसकी संतान का विवाह भिलालों में हो जाता है। किन्तु कहीं-कहीं इसे मान्यता नहीं मिलती है।

स्रोत श्री भुवान सिंह रीडू, पिपरियापानी, धार

भीली उत्पत्ति कथाएँ एवं विश्वास: पाप और दंड तथा मुक्ति के रास्ते..

अगर भील जाति के पुरुष महिला या लड़के लड़की के द्वारा किसी तरह का पाप हो जाता है जैसे किसी मनुष्य की हत्या, हाथ पैर काट देना, नाक काट देना, कीटनाशक दवा पिलाकर मार देना, पत्नी की हत्या कर देना या बैल-गाय को मार देना तो यह माना जाता है कि उसने पाप किया है। 

उसको पाप से मुक्त करने के लिए भील लोग मिलकर उसे चोखा करने के लिए उसके सिर के बाल, नयनों के बाल, मूंछ आदि मुंडवाते हैं। उसके सिर पर अंगारा रखते हैं। जब वह सजा काटकर आता है, तब वह व्यक्ति गांव के काकड़ के बाहर ही रहता है। 

नर्मदा स्नान करने के बाद ग्राम के काकड़ पर बकरा काटते हैं, नारियल चढ़ाते हैं। फिर घर आते हैं। गांव वालों को मक्का की थूली या चावल बनाकर खिलाते हैं। ऐसे व्यक्ति को किसी देवी देवता के मंदिर में भेजा जाता है या पवित्र नर्मदा नदी में स्नान कराते हैं, नारियल चढ़ाकर प्रसाद बनाते हैं, उसमें भुने हुए चने मिलाकर मछलियों को खिलवाते हैं। 

वहां पर बैठे हुए लंगड़े-लूले लोगों को भी प्रसादी बँटवाते हैं। पाप का भागी व्यक्ति कहता जाता है कि- हे नर्मदा माता! अब मैं ऐसा पाप नहीं करूँगा, मुझे माफ कर दो। किसी को भी ऐसा पाप करने की बुद्धि मत देना ।

स्रोत: कालू जालम, देवधा, कुक्षी, धार


 

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