ऐसे होंगे पति पत्नी के रिश्ते यदि ज्योतिष में होगा यह योग|
पति-पत्नी की कुंडली के ग्रह कैसे दांपत्य जीवन को सुख में बनाते हैं?
शादी से पहले कुंडली मिलान क्यों जरूरी है कौन से योग दांपत्य जीवन को स्वर्ग बना सकते हैं?
सुमधुर दाम्पत्य संबंधों के लिये तथा सुखमय दाम्पत्य जीवन के लिये पति-पत्नी में प्रेम भावना की अनिवार्यता को नकारा नहीं जा सकता। इस दाम्पत्य-प्रेम का विचार ज्योतिष शास्त्र में सप्तम भाव तथा शुक्र से किया जाता है। सप्तम भाव पति या पत्नी का प्रतिनिधि माना गया है, तथा शुक्र रतिक्रिया का प्रतिनिधी ग्रह है।
इसलिये जिन दंपतियों की कुंडलियों में सप्तम भाव, सप्तमेश एवं शुक्र पर शुभ प्रभाव हो उन में अटूट प्रेम पाया जाता है। इस प्रकार के बनने वाले योग निम्न प्रकार से बनते हैं :
जिन की कुंडली में सप्तमेश केन्द्र, त्रिकोण या लाभ स्थान में हो तथा उस पर शुक्र की दृष्टि हो उन दम्पत्तियों में परस्पर अत्यंत स्नेह करता है।
सप्तमेश एवं शुक्र शुभ ग्रहों के साथ त्रिक स्थानों से भिन्न स्थानों में हों तथा उन पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो इस योग के प्रभावश पति-पत्नी में अटूट प्रेम रहता है।
सप्तमेश एवं शुक्र दोनों उच्च राशि या स्वराशि में हों तथा इन दोनों पर पाप ग्रहों का प्रभाव न हो तो दाम्पत्य संबंध प्रेममय रहते हैं।
सप्तमेश बलवान होकर लग्न या सप्तम स्थान में हो तथा चतुर्थेश एवं शुक्र साथ-साथ हो तो पति-पत्नी में अत्यंत प्रेम रहता है।
सप्तमेश एवं शुक्र एक दूसरे की राशि में केंद्र या त्रिकोण में बैठे हों तथा इन पर द्वितीयेश या चतुर्थेश की दृष्टि हो दाम्पत्य जीवन प्रेममय रहता है।
- लग्न या चन्द्रमा के सप्तम स्थान अपने स्वामी एवं शुभ ग्रह से दृष्ट या युक्त हों तो पति-पत्नी के संबंध प्रेममय रहते हैं।
लग्न में बृहस्पति तथा सप्तम स्थान में शुक्र होने पर पति-पत्नी में मित्रता एवं अटूट प्रेम रहता है।
दाम्पत्य सुख की प्राप्ति..
सुखमय दाम्पत्य जीवन के लिए अच्छे स्वास्थ्य, स्वभाव तथा धन का होना आवश्यक है। जो पुरुष अल्पायु रोगी, नपुंसक, चरित्रहीन, व्यभिचारी, दरिद्री संन्यासी न हो तथा जो स्त्री रोगिणी, व्यभिचारिणी, कुल्टा, वन्ध्या एवं भाग्यहीन न हो ऐसे स्त्री-पुरुषों का दाम्पत्य जीवन सुखमय रह सकता है।
यदि वर एवं वधू की कुंडलियां उक्त योगों की कसौटी पर खरी उतरें तथा उनकी कुंडलियों में दाम्पत्य प्रेम का योग हो तो निःसंदेह उनका दांपत्य जीवन सुखी रहता है। जन्म कुण्डलियों में इस प्रकार की स्थिति अवश्य आती है।
हालांकि पहले ही अपेक्षा आज का व्यक्ति इस मामले में ज्यादा गंभीर और जागरूक हो गया है। वह अपनी कन्या पुत्र का विवाह करने से पहले कुण्डली में इन सभी योगों की चर्चा अवश्य कर लेता है। क्योंकि जीवन में दाम्पत्य सुख का होना उतना ही महत्व रखता है जिस प्रकार जिंदा रखने हेतु भोजन महत्व रखता है।
नीचे कुंडली में बनने वाले कुछ योगों की चर्चा करेंगे जो दाम्पत्य जीवन की स्थिति को दर्शाते हैं :
सप्तमेश एवं शुक्र शुभ ग्रहों से दृष्ट या युक्त हों अथवा उनमें से कोई एक शुभ ग्रहों के बीच में हो तो दांपत्य जीवन सुखमय रहता है। शुक्र अपनी उच्च राशि, स्वराशि या गोपुर आदि अंशों में हो तो दाम्पत्य सुख में बाधा नहीं आती।
"लग्न एवं सप्तम स्थान में शुभ ग्रह हों तथा उन पर पाप ग्रहों का प्रभाव न हो तो दाम्पत्य सुख अच्छा मिलता है।
अगर किसी जातक की कुण्डली में कारकांश तथा श्वास इन दोनों में से सप्तम भाव पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो दाम्पत्य जीवन आनंददायक हो जाता है। सुख-शांति तथा सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
अगर किसी जातक की कुंडली में सप्तम भाव का स्वामी बलवान हो तथा सप्तम भाव पर गुरु की दृष्टि हो तो दांपत्य संबंध अत्यंत ही मधुर होते हैं। किसी भी प्रकार का कोई क्लेश उत्पन्न नहीं होता है। वासना सूखे की भी अच्छी प्राप्ति होती है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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