Published By:दिनेश मालवीय

पिछले लेख से निरंतर, महाभारत के अनुसार तीर्थों का क्रम और महत्त्व (भाग 2) -दिनेश मालवीय

वसुधारा तीर्थ के बारे में बताने के बाद ऋषि पुलस्त्य ने कहा, कि इसके बाद व्यक्ति को भद्र्तुंग तीर्थ जाकर वहां स्नान करना चाहिए. वहाँ सिद्धसेवित रेणुकातीर्थ है, जिसमें स्नान करके व्यक्ति चंद्रमा के समान निर्मल होता है.  इसके बाद पवित्र आचरण का पालन करते हुए पंचनदतीर्थ जाना चाहिए. वहाँ से भीमा के उत्तम स्थान की यात्रा करते हुए योनितीर्थ में स्नान करना चाहिए. ऐसा करने से उसके अंग की कान्ति तपाये हुए सुवर्ण कुंडल के समान हो जाती है. उसे सहस्त्र गोदान का फल मिलता है.

तदनंतर त्रिभुवनविख्यात श्रीकुंड में जाकर ब्रह्माजी को नमस्कार करने से एक हज़ार गायों के दान का फल मिलता है. इसके बाद विमलतीर्थ की यात्रा करनी चाहिए. वहाँ आज भी सोने और चाँदी के रंग की मछलियाँ दिखाई देती हैं. उसमें स्नान करने से मनुष्य शीघ्र ही इन्द्रलोक को प्राप्त होता है. वह सभी पापों से मुक्त होकर वाजपेयी यज्ञ का फल प्राप्त कर लेता है.

काश्मीर में ही नागराज तक्षक का वितस्ता नाम का प्रसिद्ध भवन है, जो सब पापों का नाश करने वाला है. वहां स्नान करने से मनुष्य वाजपेयी यज्ञ का फल प्राप्त करता है. वहाँ से त्रिभुवनविख्यात वडवातीर्थ को जाना चाहिए. वहाँ पश्चिम संध्या के समय विधिपूर्वक स्नान और आचमन करके अग्निदेव को यथाशक्ति चरु निवेदित करना चाहिए. वहाँ पितरों के लिए दिया हुआ दान अक्षय होता है. वहाँ देवता, ऋषि, पितर, गन्धर्व, अप्सरा, गुह्यक, किन्नर, यक्ष, विद्याधर, मनुष्य, राक्षस, दैत्य, रूद्र और ब्रह्मा- इन सभी ने नियमपूर्वक सहस्त्र वर्षों के लिए उत्तम दीक्षा ग्रहण करके भगवान् विष्णु की प्रसन्नता के लिए चरु की सात-सात आहुतियाँ देकर भगवान् को प्रसन्न किया था. प्रसन्न होकर भगवान् ने उन्हें अष्टगुण और सिद्धियाँ प्रदान कीं.

इसके बाद मणिमानतीर्थ जाना चाहिए, जहाँ एक रात निवास करने से अग्निष्टोम यज्ञ का फल प्राप्त होता है.  वहां से देविकातीर्थ की यात्रा करनी चाहिए, जहाँ से ब्राह्मणों की उत्पत्ति सुनी जाती है. वहाँ भगवान् शिव का स्थान है, जिसकी तीनों लोगों में प्रसिद्धि है. देविका में स्नान करने भगान महेश्वर का पूजन और यथाशक्ति चरु निवेदन करने से सभी कामनाओं की सिद्धि होती है.

वहाँ भगवान् शंकर का देवसेवित कामतीर्थ है. उसमें स्नान करने से मनुष्य को सभी वांछित सिद्धियाँ प्राप्त कर लेता है. वहाँ यजन, याजन तथा वेदों का स्वाध्याय करके अथवा वहाँ की बालू, पुष्प और जल का स्पर्श करके मृत्यु को प्राप्त हुआ व्यक्ति शोक से पार हो जता है. वहाँ पाँच योजन लम्बी और आधा योजन चौड़ी पवित्र वेदिका है, जिसका देवता  और ऋषि-मुनि भीई सेवन करते हैं. वहाँ से क्रमशः “दीर्घसत्र” नामक तीर्थ में जाना चाहिए. वहाँ ब्रह्मा आदि देवता, सिद्ध और महर्षि रहते हैं. वे नियमपूर्वक व्रत का पालन करते हुए दीक्षा लेकर दीर्घसत्र उपासना करते हैं. इस यात्रा से व्यक्ति को राजसूय और अश्वमेध याग्योंका फल मिलता है.

वहाँ से विनशनतीर्थ की यात्रा करनी चाहिए, जहाँ मेरुपृष्ठ पर रहने वाली सरस्वती अदृश्य भाव से बहती है. वहाँ चमसोभ्देदमें स्नान करने से अग्निष्टोमयज्ञ का फल मिलता है. शिवोदभ्देद में स्नान करने से मनुष्य हज़ार गोदान का फल पाता है. नागोदभ्देदतीर्थ में स्नान करने से उसे नागलोक की प्राप्ति होती है.  इसके बाद शाश्यान नामक तीर्थ बहुत दुर्लभ है, जहाँ जाकर स्नान का बहुत महत्त्व है. वहाँ सरस्वती नदी में प्रतिवर्ष कार्तिकी पूर्णिमा को शश (खरगोश) के रूप में छीपे हुए पुष्करतीर्थ देखे जाते हैं. वहाँ स्नान करने से मनुष्य चंद्रमा के समान प्रकाशित हो जाता है.  

वहाँ से कुमारकोटितीर्थ जाकर वहाँ नियमपूर्वक स्नान करके पितरों और देवताओं का पूजन करना चाहिए. इससे व्यक्ति दस हज़ार गोदान का फल मिलता है. उसके कुल का उद्धार होता है. इसके बाद रूद्रकोटितीर्थ जाना चाहए. वहाँ एक करोड़ मुनि बड़े हर्ष से भगवान रूद्र के दर्शन की अभिलाषा से आये थे.  वे पहले दर्शन के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे थे. भगवान शिव ने योग का आश्रय लेकर उन मुनियों के शोक की शान्ति के लिए करोड़ों शिवलिंगों की श्रृष्टि कर दी, जो उन सभी मुनियों के सामने उपस्थित हो गये. महादेव ने उन्हने वर दिया, कि तुम्हारे धर्म की उत्तरोत्तर वृद्धि होती रहेगी.

इसके पश्चात सरस्वतीसंगमतीर्थ का सेवन कर ब्रह्माजी और अन्य देवताओं की उपासना करनी चाहिए. वहाँ चैत्र शुक्ल चतुर्दशी को जाने का विशेष महत्त्व है. वहाँ स्नान करने से प्रचुर सुवर्ण राशि प्राप्त होती है और मनुष्य पापमुक्त हो जाता है.

 " लेख की अगली कड़ी में कुरुक्षेत्र की सीमा में स्थित तीर्थों की जानकारी दी जाएगी "

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