Published By:धर्म पुराण डेस्क

इंटरनेट का लगातार प्रयोग बढ़ाता है- मोटापा

मोटापा-

आजकल नयी पीढ़ी में इंटरनेट का शौक हावी हो गया है जिसके कारण लड़के-लड़कियां इंटरनेट पर अपना बहुत अधिक समय व्यतीत करने लगे हैं। 

नोएडा के मैट्रो हॉस्पीटल्स एण्ड हार्ट इंस्टीट्यूट्स के मुख्य इंटरनेशनल कार्डियोलॉजिस्ट डा० पुरुषोत्तम कुमार का कहना है कि इंटरनेट पर बहुत अधिक समय व्यतीत करना युवा लड़के-लड़कियों में मोटापे का कारण बन सकता है जिसकी परिणति हृदय रोग के रूप में हो सकती है।

डा० कुमार के अनुसार इंटरनेट पर अधिक समय व्यतीत करने वाले लड़के-लड़कियों के अलावा कम सोने वाले या नियमित रूप से अल्कोहल का सेवन करने वाले लड़के- लड़कियों और पुरुष तथा महिलाएँ भी मोटापे का शिकार हो रही हैं। 

उन्होंने बताया कि जो लड़कियां इंटरनेट पर जितना अधिक समय बिताती हैं, उनकी बीएमआई (बॉडी मास इंडेक्स) उतनी ही अधिक बढ़ जाती है। यही नहीं, जो लड़के-लड़कियाँ जितना अधिक अल्कोहल और फास्ट फूड का सेवन करते हैं लेकिन कम समय तक सोते हैं उनमें मोटापे की प्रवृत्ति अधिक होती है। डा० कुमार ने बताया कि युवा लोग इसे अक्सर नजरअंदाज करते हैं।

डा० कुमार के अनुसार देश के शहरी इलाकों में 30 साल से अधिक उम्र के 10 प्रतिशत लोग रक्त धमनियों में रुकावट की बीमारी से ग्रस्त हैं। 

आज रक्त धमनियों में 40-45 प्रतिशत रुकावट वाले लोगों को भी अचानक दिल के दौरे पड़ रहे हैं। उनका कहना है कि युवावस्था या अन्य अवस्थाओं में किसी व्यक्ति को दिल का दौरा पड़ने पर पहले ही घंटे में उसकी मौत हो जाने की आशंका 30 प्रतिशत होती है। 

दिल के दौरे के बाद जीवित बच जाने वाले लोगों के हृदय की मांसपेशियां दौरे के कारण इतनी अधिक क्षतिग्रस्त एवं कमजोर हो जाती हैं कि 35-40 साल के व्यक्ति की स्थिति एवं उनकी शक्ति 60-65 साल के व्यक्ति के समान हो जाती है। 

उनका कहना है कि कम्प्यूटर और इंटरनेट पर लगातार लंबे समय तक काम नहीं करने, भरपूर नींद लेने, वसायुक्त आहार का सेवन कम करने, वजन पर नियंत्रण रखने और धूम्रपान से दूर रहने से दिल के दौरे का खतरा कम होता है, लेकिन ज्यादातर लोग इन बातों पर अमल कम कर पाते हैं। इसलिए ऐसे लोगों की रक्त धमनियों में रुकावट का पता समय से पूर्व लगाया जाना जरूरी है क्योंकि अगर समय पर उनकी रक्त धमनियों में रुकावट का पता नहीं चल पाए तो उन्हें अचानक दिल का दौरा पड़ सकता है। 

किस तरीके का इस्तेमाल किया जाना बेहतर रहेगा फिर निर्णय लिया जाता है कि रोगी की एंजियोप्लास्टी की जानी चाहिए या बाईपास सर्जरी या सिर्फ दवाइयों से ही रोगी का इलाज किया जाये।

डा० कुमार के अनुसार कोरोनरी एंजियोग्राफी वही लोग करवाते हैं। जिन्हें एंजाइना की तकलीफ होती है और वह चल-फिर नहीं पाते, इसके 'अलावा वह कोरोनरी स्क्रीनिंग का सहारा भी ले सकते हैं। 

स्क्रीनिंग से अगर यह पता चल जाए कि रोगी व्यक्ति में 40 से 50 प्रतिशत ही कोलेस्ट्रॉल का जमाव है तब उन्हें योग, ध्यान और व्यायाम की मदद से, जीवनशैली एवं खानपान में बदलाव लाकर, धूम्रपान से परहेज करके कोलेस्ट्रॉल तथा रक्तचाप को नियंत्रण में लाकर उनकी बीमारियों को बढ़ने से रोका जा सकता है तथा उनकी जीवनचर्या को सक्रिय बनाए रखा जा सकता है।

डा० कुमार कहते हैं कि कोरोनरी स्क्रीनिंग फ्यूड डायनामिक फार्मूला पर आधारित है जिसके अनुसार पतले कैथेटर से किसी तरल की थोड़ी मात्रा पूरे दबाव के साथ ही जाए तो वह कैथेटर के दूसरे छोर पर बहुत तेजी से निकलता है। फिर कैथेटर के द्वारा बहुत थोड़ा सा डाई इंजेक्ट किया जाता है लेकिन इससे तस्वीर एंजियोग्राफी की ही बनती है। इस जांच से सभी कोरोनरी धमनियों का पता चल जाता है। 

डा० कुमार के अनुसार स्क्रीनिंग के साथ-साथ रोगी की इकोकार्डियोग्राफी और खून की सभी जांच भी करवा ली जाती है जिससे हृदय तरंगों का पता चल जाता है और खून की जांच से खून में यूरिया, शुगर, गुर्दे का कार्य आदि का पता चल जाता है। इन सभी रिपोर्ट के आधार पर रोगी का उचित इलाज कर उन्हें दिल के दौरे से बचाया जा सकता है।
 

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