Published By:धर्म पुराण डेस्क

मेनिनजाइटिस के इलाज में देरी ले सकती है जान

वैक्सीनेशन और सावधानी-

स्कूल और कॉलेज जाने वाले बच्चे इस संक्रमण को अपने साथियों से भी पा सकते हैं। ऐसे में सबसे पहली जरूरत है वैक्सीनेशन को लेकर सावधानी रखने की। वैक्सीन कई प्रकार के मेनिनजाइटिस से बचाव कर सकता है। यह 11-13 वर्ष की आयु और फिर 16 साल की उम्र में बूस्टर डोज के रूप में लगता है। इसे लेकर अपने डॉक्टर से सलाह अवश्य लें। 

यदि किसी वजह से आपके बच्चे का कोई एक वैक्सीन छूट गया हो तो डॉक्टर से उसका विकल्प पूछें। इसी तरह वैक्सीन के साइड डाक्ट्स को लेकर भी जानकारी लें क्योंकि कई बार इसके साइड इफेक्ट्स परेशान करने वाले हो सकते हैं। यह भी ध्यान में रखें कि यदि आपका बच्चा किसी प्रकार के मेनिनजाइटिस से जूझ रहा है तो आप उसे दूसरे बच्चों से दूर रखें। खासकर बैक्टीरियल मेनिनजाइटिस होने पर। इसके अलावा हाइजीन को लेकर भी उसे सतर्क रहना सिखाएं।

डायग्नोज और इलाज अधिकांशत: डॉक्टर बच्चे में लक्षणों की पुष्टि के लिए सामान्य फिजिकल जांच के अलावा लंबर पंक्चर या स्पाइनल टैप की सलाह दे सकते हैं। मेनिनजाइटिस की जांच के संदर्भ में यह एक महत्वपूर्ण कदम होता है। इसके अलावा लेबोरेटरी में जांचों के जरिए मेनिनजाइटिस के प्रकार को पहचाना जा सकता है। 

कई बार लक्षण इतने तीव्र भी हो सकते हैं कि डॉक्टर जांचो की रिपोर्ट आने से पहले ही उपचार प्रारम्भ कर सकते हैं। वायरल मेनिनजाइटिस के अधिकतर मामलों में दवाइयों के बिना भी समस्या ठीक हो सकती है। लेकिन बैक्टीरियल मेनिनजाइटिस के मामलों में हॉस्पिटल में रहने की भी जरूरत पड़ सकती है। इस स्थिति में यदि त्वरित इलाज न किया जाए तो दिमाग को क्षति पहुंचने का खतरा हो सकता है। संक्रमण खत्म होने तक एंटीबायोटिक्स के डोज लेने की जरूरत हो सकती है।

वह बीमारी जरा सी चूक करने पर जानलेवा भी हो सकती है। इसके प्रकार के हिसाब से सही इलाज को अपनाना आवश्यक होता है। लक्षणों के आधार पर सतर्कता रखकर काफी हद तक समस्या को नियंत्रित रखा जा सकता है।

 मेनिनजाइटिस से तात्पर्य-

यह एक रेयर संक्रमण है जो मैनिजेस नामक उन नाजुक मेम्ब्रेन्स को प्रभावित करता है जो दिमाग और स्पाइनल कॉर्ड को कवर करती है। सभी इसके शिकार बन सकते हैं। यह 16-25: वर्ष की उम्र में टीन एजर और वयस्कों पर हमला कर सकता है।  मेनिनजाइटिस एक से अधिक प्रकार का हो सकता है और इसी लिहाज से इसका इलाज भी तय किया जाता है। इसके मुख्य प्रकारों में बैक्टीरियल, वायरल और फंगल प्रकार शामिल हैं, जिनमें से बैक्टीरियल सबसे गंभीर और जानलेवा भी हो सकता है।

लक्षणों पर रखें ध्यान-

वायरल मेनिनजाइटिस आमतौर पर बिना किसी खास इलाज के भी ठीक हो सकता है लेकिन बैक्टीरियल मेनिनजाइटिस को लेकर खास सावधानी बरतनी आवश्यक होती है क्योंकि यह पीड़ित व्यक्ति के नजदीकी सम्पर्क में आने से भी फैल सकता है।  मेनिनजाइटिस दिमाग के अलावा कान, साइनस या गले में भी फैल सकता है। इसलिए जरूरी है कि इसके लक्षणों को लेकर सतर्कता रखी जाए, ताकि समय पर इलाज लेकर पीड़ित की जान जोखिम में पड़ने से बच सकें।

इसके प्रमुख लक्षणों में शामिल हैं- 

> गर्दन में अकड़न,

> तेज बुखार, 

> कन्फ्यूजन,

> तेज सिरदर्द,

> नॉशिया या उल्टी होना तेज रोशनी से समस्या होना,

> उनींदापन, 

> दौरे पड़ना,

> रैशेज होना, आदि

कई बार फ्लू की तरह या कान व साइनस के संक्रमण जैसे लक्षण भी सामने आ सकते हैं। इसलिए सतर्क रहिए। बैक्टीरियल मेनिनजाइटिस उसन के संदर्भ में एक्शन जल्दी सामने आते हैं, जबकि वायरल मेनिनजाइटिस के लक्षण थोड़े कम समय में उभरते हैं।


 

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