Published By:धर्म पुराण डेस्क

इम्प्लांट तकनीक दांतों की

डैचर का गिर जाना दुःस्वप्न की तरह है. खासतौर पर उनके लिये जो या तो कामकाजी हों या लोगों में ज्यादा उठते-बैठते हैं. ऐसे लोगों के लिए वरदान बनकर आया है- डेंटल इम्प्लांट, यह डेंचर का एक आधुनिक विकल्प है. ये एक तरह के कृत्रिम दांत होते हैं जो जबड़े की हड्डी से जुड़े रहते हैं. 

टाइटेनियम या वाइटेलियन धातु के बने ये दांत जो जबड़े की हड्डी से आसानी से जुड़ जाते हैं. इस जुड़ने की विधि को आसियोइंटीग्रेशन कहते हैं. ये चबाने- काटने में असली दांतों की तरह काम करते हैं. प्रत्येक रोगी को इम्प्लांट नहीं लगाये जा सकते हैं, क्योंकि इम्प्लांट की अच्छी पकड़ के लिए हड्डी व मसूड़ों का मजबूत होना बहुत जरूरी है.

मानव शरीर में इम्प्लांट तीन प्रकार से हड्डी के द्वारा (ट्रास आसियस), हड्डी में (एंडोआसियस), हड्डी के ऊपर (सब पेरिआस्टियल) होते हैं. सबसे ज्यादा प्रचलित हड्डी में एंडोआसियस इम्प्लांट है. इस विधि में एक टाइटेनियम का स्क्रू हड्डी में फिक्स कर दिया जाता है. इस विधि में भी सर्जिकल विधि एवं नये दांत लगाने की विधि से गुजरना पड़ता है. इसमें ऑपरेशन के कुछ दिन पश्चात् ही रोगी काम पर जा सकता है. 

पहले ऑपरेशन में जबड़े की हड्डी को खोल दिया जाता है और छोटा- सा छेद करके इम्प्लांट को वहां रख देते हैं और मसूड़े से उसे ढंक देते हैं. इम्प्लांट का आकार ऐसा हो कि वह जबड़े में फिट हो सके. इसके बाद कुछ समय के लिये इसे ऐसे ही छोड़ देते हैं ताकि इम्प्लांट हड्डी में सेट हो सके. 

दूसरा ऑपरेशन 3-6 महीने के बाद करते हैं जब जख्म पूरा भर जाता है. उसमें इम्प्लांट का ऊपरी हिस्सा थोड़ा-सा खोल देते हैं और उस इम्प्लांट के खुले हिस्से में पोस्ट को फिट कर देते हैं, कुछ हफ्तों में जब जख्म भर जाता है। तो उसके ऊपर नये दांत फिट कर देते हैं. कुछ लोग जख्म भरने के दौरान थोड़ी असुविधा महसूस करते हैं, पर ये परेशानी उतनी ही होती है, जितनी दांत निकालने के बाद होती है. 

अगर इम्प्लांट लगाने के बाद रक्तस्राव हो या संक्रमण हो जाये तो इम्प्लांट को या तो बदलना पड़ता है या हटाना पड़ता है. इस तकनीक से दांत लगाने में 9 माह तक का समय लग जाता है जिसमें रेगुलर परीक्षण की आवश्यकता होती है. इम्प्लांट लगाने के बाद दांतों की उचित देखभाल करनी होती है.

हम लोग दांत निकलने के बाद जो नकली दांत बनवा लेते हैं, वह अस्थायी होते हैं. उनके बात करने में या खाने में निकलने का डर बना रहता है. किसी से बात करने में थोड़ी-सी कठिनाई होती है. जबकि इम्प्लांट में ऐसी कोई परेशानी नहीं आती है. रोगी ठीक से बात कर सकता है व भोजन चबा सकता है.

-डॉ. आर. एस. सेंगर


 

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