प्रसव पूर्व रोग निदान सुविधा उपलब्ध होने से कई प्रकार की विकृतियों का समय रहते पता लगाना संभव है।
प्रजनन आनुवंशिकी के क्षेत्र में यह एक बहुत बड़ी प्रगति है। वे विकृतियां जो आम तौर पर पाई जाती हैं और जिनके लिए प्रसव पूर्व रोगनिदान उपलब्ध है उनमें शामिल हैं- डाउन सिंड्रोम, थैलेसीमिया, न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट आदि।
भ्रूण की जांच-
इससे माता-पिता को पहले से ही यह जानने का अवसर मिल जाता है कि भ्रूण की स्थिति कैसी है। यदि वह संसार में लाने लायक नहीं है और किसी ऐसी बीमारी से पीड़ित है जिसका इलाज ही संभव न हो तो उसे गर्भपात के माध्यम से हटा लिया जाए। कई मामलों में भ्रूण की बीमारी की चिकित्सा समय रहते शुरु की जा सकती है।
क्यों होती है आनुवंशिक विकृति-
कई तरह की आनुवांशिक विकृतियां एलएसडी एंजाइमों की कमी की वजह से होती हैं। फिलहाल करीब 45 विकृतियां एलएसडी की श्रेणी में आती हैं। इनमें से केवल 6 बीमारियों के लिए इलाज उपलब्ध है। इन विकृतियों ठीक करने में होने वाला खर्च बहुत अधिक होता है जो कि आम आदमी की पहुंच के बाहर है।
प्रसव पूर्व जांच से इन स्थितियों का पहले ही पता लग जाता है और गर्भपात किया जा सकता है। इस तरह डॉक्टर और माता-पिता एक ऐसे बच्चे के जन्म के लिए तैयार हो जाते हैं जिसे इलाज से ठीक किया जा सकता है। उदाहरण के लिए 6 किस्म के एलएसडी का समय पर पता लग जाए तो बच्चा सामान्य जैसी ही जिंदगी जी सकता है।
आनुवांशिक विकृति का जन्म से पहले ही पता लगाना बेहद जरूरी है। क्योंकि यदि बच्चे में कोई ऐसी खराबी है जिससे बाद में परिवार और समाज दोनों पर आर्थिक और भावनात्मक बोझ पड़ता हो तो उसे जन्म लेने से पहले ही गर्भपात के जरिए निकाल दिया जाता है। प्रसव पूर्व रोग निदान का प्रमुख लक्ष्य यह होता है कि मानसिक रूप से अविकसित या विकलांग बच्चों के जन्म को रोकना।
दुर्लभ बीमारी का आर्थिक बोझ-
हर बीमारी का अपना अलग बोझ होता है, किंतु एक दुर्लभ बीमारी अतिरिक्त बाध्यताओं के साथ आती है। हमारे देश में वैसे भी लोगों के बीच जागरूकता की कमी है और कारगर इलाज आसानी से उपलब्ध नहीं है। लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर (एलएसडी) इन्हीं दुर्लभ विकृतियों में से हैं जिनमें से कुछ का ही इलाज हो सकता है लेकिन खर्च इतना अधिक है कि व्यावहारिक रूप से संभव नहीं होता।
भारत में अधिकतर प्रचलित एलएसडी की जांच एंजाइम का अनुमान लगाकर की जा सकती है और अधिकतर के लिए मॉलिक्यूलर टेस्टिंग उपलब्ध है। भावी माता पिता अब अपने अजन्मे बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर अधिक जागरूक हो गए हैं और इस तरह की जांचों पर भरोसा करने लगे। इसलिए असाध्य या दुर्लभ रोग से पीड़ित बच्चे को जन्म देने से पहले ही उसकी जांच करना ज्यादा उचित कदम होगा क्योंकि इलाज से बेहतर है। रोकथाम करना।
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