Published By:धर्म पुराण डेस्क

आत्म-शक्ति की दृढ़ता एवं सबलता सब जगह सफलता देती है। 

आत्मविश्वास के बिना मनुष्य में स्वावलम्बन की प्रवृत्ति ही नहीं उठती और स्वावलम्बन के बिना वह अपने को उठाने में असमर्थ होता है। 

महत्वाकांक्षी व्यक्ति को आत्म-सत्ता में सर्वाधिक विश्वास करना चाहिए। उसमें यह विश्वास होना चाहिए कि उसका जीवन निरर्थक नहीं है; उसमें कुछ विशेष शक्तियां हैं तभी ईश्वर ने उसको मानव शरीर दिया है, वह तुच्छ होता तो मनुष्य का शरीर न पाकर खटमल या झींगुर का शरीर पाता। 

यदि आंख से देखने पर अपना शरीर मनुष्य जैसा दिखलाई पड़ता है तो निश्चित रूप से विश्वास कर लेना चाहिए कि हम भी वही हो सकते हैं जो कि कोई अन्य मनुष्य शरीरधारी हो चुका है और उसके साथ ही अपनी क्षणभंगुरता पर नहीं, बल्कि अपनी ईशता पर विश्वास करना चाहिए। यह विश्वास आत्म-स्फूर्ति देता है, मनुष्य के सोए हुए बल को जगाता है।

सुप्रसिद्ध रूसी लेखक गोर्की ने एक बार अपने देश के किसानों के सामने भाषण देते हुए कहा था कि याद रखो कि तुम पृथ्वी के सबसे आवश्यक प्राणी हो।' कोई कारण नहीं कि कोई व्यक्ति अपने को अनावश्यक समझे। जब तक वह स्वयं अपने को आवश्यक न मानेगा, तब तक दूसरे उसको कैसे आवश्यक मानेंगे। अतएव, अपने साथ विश्वासघात न करना चाहिए; अपनी मनुष्यता को पहचानना चाहिए। 

महाकवि शेक्सपियर ने लिखा है कि सबसे बड़ी बात यह है कि अपने साथ सच्चे बनो'। अपने साथ सच्चे बनने का सर्वोत्तम उपाय यह है कि मनुष्य अपने को धोखे में न रखे, अपने मनुष्यत्व और मनुष्य- सुलभ शक्तियों में विश्वास रखें| इस बात पर विश्वास करे कि वह शव की तरह इस भव-सागर में बहने के लिए नहीं फेंका गया है; वह जीवित प्राणी है। अतएव सजीव एवं शक्तिमान बनकर इस भवसागर को तैरकर पार करना उसका धर्म है।
 

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