Published By:धर्म पुराण डेस्क

धनुरासन:-

जमीन की ओर मुंह रखकर लेट जाएं, घुटनों को पीछे की ओर मोड़कर टखनों के पास से पैरों को हाथों से पकड़ लें, सिर और छाती को भी जितना संभव हो ऊपर तानें, इस प्रकार शरीर धनुषाकार बन जाता है।
छाती को फैलाएं, हाथों के सहारे शरीर को फैलाएं, धीरे-धीरे सांस लें, सारा शरीर पेट के बल टिकाए रहें।
लाभ- जिन्हें आंतों में वायु की रुकावट की शिकायत रहती है, उनके लिए धनुरासन एक वरदान है। यह मेरुदंड को लचीला बनाता है तथा पुरानी कब्ज, अपच, लिवर की शिथिलता आदि में बहुत लाभकारी है ।
अत्यधिक चर्बी तथा कुबड़ापन, पैर तथा पैरों के गठिया रोग के लिए लाभदायक है। स्लिप डिस्क को भी सुधारता है।
सावधानी- पेप्टिक अल्सर, हर्निया और आंतों की टी.बी. के रोगी नहीं करें। थायराइड वालों को भी नहीं करना चाहिए।
भ्रामरी प्राणायाम:-

(भौरे के समान गले से एक लय में आवाज निकालना।) पहले रीढ़ सीधी रखकर किसी भी सुख पूर्ण आसन में बैठ जाएं, दोनों नासिका खुली रखें, सांस अंदर ले, थोड़ा रोकें, अब दोनों हाथों के अंगूठों से कानों के पास के छोटे हिस्सों को दबाएं ताकि बाहर की आवाज कानों में न जाए.
मुंह बंद करें व अंदर दांत न मिलाएं और अब भौरे की तरह गुनगुनाते हुए नाक से सांस बाहर निकालें।
अपना ध्यान गुनगुनाहट पर एक जैसी आवाज में केंद्रित करें, यह एक प्राणायाम हुआ। इसी प्रकार पांच राउंड रोज सुबह-शाम करें। यह सोचकर नहीं करें, तनाव हो सकता है।
लाभ- बुद्धि तेज करने, गुस्सा समाप्त करने, याददाश्त तेज करने, दिमागी क्षमता बढ़ाने, थायराइड ठीक रखने, दिल की चाल को उम्र के हिसाब से ठीक रखने के लिए उपयोगी है।
बच्चे, बड़े, वृद्ध स्त्री-पुरुष सभी के डिप्रेशन खत्म करने, सुंदर, स्वस्थ, जवान रहने के लिए भ्रामरी प्राणायाम सुबह-शाम 5 मिनट अवश्य करें। रक्तचाप के रोगी व गाने वालों को इससे बहुत लाभ होगा।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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