Published By:धर्म पुराण डेस्क

अनुशासन की कला..

दृढ़ता और अनुशासन के द्वारा असंभव भी संभव हो जाता है। मानव जाति की प्रगति का यही कारण है।

यदि इस विश्व में जन्मे सबसे प्रसिद्ध एवं सर्वश्रेष्ठ व्यक्तियों को देखा जाए - सबसे प्रभावशाली नेता, महान विचारक, सर्वोत्तम दार्शनिक तथा अन्वेषक, तो संभवतः आप उन सब के जीवन में एक मूलतत्त्व पाएंगे - अनुशासन। उन सब ने अत्यधिक अनुशासन का जीवन जिया। 

अनुशासन वह कला है जिसके द्वारा आप अपने निर्धारित पथ पर चलते हैं, अपने बनाए गए योजनाओं का पालन करते हैं तथा अपने मन को नियंत्रण में रखते हैं। यह एक कौशल है।

बहुधा लोग मुझसे कहते हैं कि वे कुछ करना चाहते हैं - वजन कम करना चाहते हैं, धूम्रपान या शराब त्यागना चाहते हैं, मेहनत से पढ़ाई करना चाहते हैं, ध्यान करना चाहते हैं, एक बेहतर नौकरी ढूंढना चाहते हैं आदि। यह सुनकर मैं मन ही मन हँसने लगता हूँ। मैं केवल एक ही बात सुनता हूँ - “मैं चाहता हूं”। इसमें कोई संदेह नहीं कि आप कुछ चाहते हैं। 

यह तो अच्छी एवं सरल बात है। यह कोई विशेष विषय नहीं। एक कुत्ता स्नेह चाहता है, अधिकतर व्यक्ति धन चाहते हैं, सभी सम्मान चाहते हैं, कुछ स्नेह चाहते हैं, कुछ मैत्री तथा कुछ व्यक्ति सब कुछ चाहते हैं। यदि आप वास्तव में अपनी इच्छाओं की पूर्ति करना चाहते हैं तो आप को उसके अनुसार कार्य करना होगा। 

यदि आप उन इच्छाओं के लिए परिश्रम नहीं करते हैं तो आप की इच्छाएं केवल सपने बन कर ही रह जाएंगी और उनकी पूर्ति लगभग असंभव है। किंतु यदि आप अपने मन को कर्म के मार्ग में लगाएं तो हर प्रकार के सपनों की पूर्ति संभव है।

विडंबना यह है कि अनुशासन आप को मुक्त करता है। यह आप को स्वतंत्रता प्रदान करता है - कुछ भी करने की स्वतंत्रता, कुछ भी प्राप्त करने की स्वतंत्रता, कुछ भी बन जाने की स्वतंत्रता। जो व्यक्ति अनुशासित रूप से जीते हैं उन्हें स्वत: ही विद्या, ज्ञान एवं सफलता प्राप्त होती है। 

आइंस्टीन ने कहा - “ऐसा नहीं है कि मैं अधिक बुद्धिमान हूँ। मैं केवल समस्याओं का हल ढूंढने के विषय में और समय बिताता हूँ।” अनुशासन के लिए विश्वास भरी दृढ़ता की आवश्यकता है। आप को पसंद हो या ना हो उसकी चिंता करे बिना यदि आप अपने चुने हुए मार्ग पर चलते रहें तो वह वास्तव में अनुशासन है। 

यदि आप सकारात्मक होकर अपने मार्ग को पसंद करने की विधि जान लें तो अनुशासित रूप से जीना सहज हो जाता है। 

मान लें आप अपना वजन कम करना चाहते हैं, परंतु आप को व्यायाम से घृणा है और मिठाइयां आप को बहुत प्रिय है। आप को यह समझना है कि व्यायाम में रुचि होना आवश्यक नहीं। उस विषय में सोचे बिना आप को अपने पथ पर आगे बढ़ते जाना है। 

चेतन मन एक हठी बालक के समान होता है। हो सकता है वह अपने माता-पिता की उपस्थिति में उद्दंड एवं अवज्ञाकारी हो जाए। किंतु जब वही बालक अपने मित्र के घर जाता है तो उसका व्यवहार सभ्य हो जाता है। उसे पता है कि वहाँ कोई भी उसका हठीला व्यवहार नहीं सहेगा। आप के मन का आचरण भी कुछ ऐसा ही है - यदि आप उसकी अवज्ञा को सहना बंद कर दें तो वह अपने आप सही राह पर आ जाता है। मन को अनुशासित करना आप की अपनी व्यक्तिगत समस्या है और केवल आप स्वयं ही उस को सुलझा सकते हैं।

आप सुबह उठते हैं, तैयार हो कर काम पर जाते हैं और वहाँ अपना पूरा दिन बिताते हैं। चाहे आप को पसंद हो या ना हो, आप में काम करने की प्रेरणा हो या ना हो आप फिर भी काम करते हैं क्योंकि आप को यह पता है कि काम करना आवश्यक है। आप के मन को संभवत: यह पसंद नहीं है परंतु एक हद से अधिक वह शिकायत नहीं करता। 

वह जानता है कि आप उसे कोई विकल्प नहीं दे रहे हैं। यही जीवन के हर पहलू पर लागू होता है। यदि आप कुछ करना चाहते हैं, तो आप को अपने चुने हुए मार्ग पर आगे बढ़ते जाना होगा। अनुशासन के साथ आगे बढ़ते हुए जब आप को अनुकूल परिणाम प्राप्त होने लगते हैं तो आप और अधिक प्रेरित एवं उत्साह हो जाते हैं।

चाहे आप जितना भी नकारात्मक हों और आप को सफलता की संभावना अत्यंत कम प्रतीत हो फिर भी यदि आप अनुशासन का पालन करें तो आप को अवश्य सफलता प्राप्त होगी। निस्संदेह!

मुझे अरस्तु के शब्द याद आते हैं - “मानव अपनी परिस्थिति को बेहतर बनाने के लिए उत्सुक है, परन्तु स्वयं को बेहतर बनाने के लिए तैयार नहीं है।”

आप को जब भी आलस महसूस हो अथवा आप के मन में जब भी अपने भविष्य को उज्जवल बनाने की इच्छा आए, तो आप को इस विषय में चिंतन करना चाहिए कि उसे सिद्ध करने हेतु आप को क्या करना होगा। फिर आप को डट कर निश्चित रूप से आगे बढ़ना चाहिए। 

आप की वर्तमान परिस्थिति आप के कर्मों, इच्छाओं, भावनाओं, मान्यताओं और मिथ्या धारणाओं का ही परिणाम है। स्वयं को परिवर्तित करने के लिए आप को या तो इन सब में परिवर्तन लाना होगा अथवा आप इन सबकी जड़ अर्थात अपने मन अपने विचारों को बदल सकते हैं।

सफलता के समान अनुशासन भी एक प्रबल लत है।

हाँ और मैं यह अवश्य कहना चाहूँगा कि अनुशासन से मेरा अर्थ केवल आत्म अनुशासन है। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि आप दूसरों को अनुशासित करने लगें।

उठें और आगे बढ़ें! अपने कर्म पर और अपने चुने हुए मार्ग पर ध्यान दें। अपनी पसंद को अपने कार्यों के मार्ग में ना आने दें। दिवास्वप्न देखना और शिकायत करना बंद करें। यदि आप अपने भाग्य का निर्माण नहीं कर सकते, तो कोई भी आप के लिए यह कार्य नहीं कर सकता।

शांति।

स्वामी


 

धर्म जगत

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