Published By:धर्म पुराण डेस्क

मंत्र और स्त्रोत में अंतर

मंत्र का सामान्य अर्थ है सलाह। इसी मन्त्र से मंत्री शब्द बनता है मंत्री का अर्थ है सलाह देने वाला और जिस "मंत्र" से किसी देवता की साधना की जाती है, उस मंत्र का अर्थ है- वह शब्द या शब्द समूह जिससे किसी देवता की सिद्धि या अलौकिक शक्ति प्राप्त हो। 

मंत्र में अक्षरों या शब्द समूहों का ऐसा अद्भुत समायोजन किया जाता है कि या तो व्यक्ति में स्वयं ही अलौकिक शक्ति जाती है अथवा कोई देवता सिद्ध हो जाता है। तब वह देवता साधक के समक्ष प्रत्यक्ष प्रकट होकर उसे वरदान देने को बाध्य हो जाता है।

स्त्रोत परमात्मा की या किसी देवता की प्रशंसात्मक कविता या गीत होता है। स्त्रोत के पाठ से भी परमात्मा या वह देवता प्रसन्न होता है, जिस देवता का वह स्त्रोत होता है।

अंतर-मंत्र का मौन जप होता है। किसी भी मंत्र का जप बोलकर नहीं करना चाहिए। मंत्र का जप मन से होना चाहिए। मौन जप का अर्थ है- होंठ और जीभ बिल्कुल हिलनी नहीं चाहिए। जप में भगवान के किसी स्वरूप या उस देवता का ध्यान करते रहना चाहिए।

स्त्रोत का जप न होकर पाठ होता है। स्त्रोत का मन्द स्वर से गान भी किया जा सकता है।

विशेष- स्त्रोत प्रशंसात्मक गीत या कविता है। स्त्रोत किसी देवी-देवता का पूरा चरित्र नहीं होता। जैसे श्री दुर्गा सप्तशती स्त्रोत नहीं; यह भगवती का एक चरित्र है अतः इसका गायन नहीं होगा। इसका धीमे स्वर में पाठ होगा।


 

धर्म जगत

SEE MORE...........