आत्मा ईश्वर का अंश है या अंग? आत्मा और परमात्मा में क्या अंतर है? P अतुल विनोद : आत्मा और जीव में क्या अंतर है? ATUL VINOD परमात्मा विश्वात्मा है सर्वव्यापी है| उस परमात्मा कि उपस्थिति मात्र से परा एक अपरा प्रकृति पैदा हो जाती हैं| वो करता नहीं हो जाता है|
अद्रश्य परा(पुरुष) स्थायी है, अचल है, समय के बाहर है,अवनाशी है| द्रश्य अपरा(प्रकृति) बदलती रहती है, स्थूल है, विनाशी है| आत्मा “परा” का अंश है(स्थायी है, अचल है, समय के बाहर है, अवनाशी है) “अपरा” (प्रकृति, शरीर, स्थूल) से जुड़कर आत्मा की उपस्थिति में एक माया रुपी आत्मा पैदा होती है जो वास्तव में जीव है लेकिन उसे हम चलायमान आत्मा कहते हैं ये मूल आत्मा नहीं उस आत्मा के कारण पैदा हुए मन बुद्धि चित्त और अहंकार का समुच्य है| इसी को जीव कहते हैं इसी को जीवात्मा कहते हैं| ये जीवात्मा या जीव बदलने वाली “अपरा” “प्रकृति” की तरह चलायमान है| अपरा भी ईश्वर की ही स्थिति है लेकिन इस संसार को चलाने के लिए ईश्वर ने उसे परिवर्तनशील बनाया है|
“परा” (पुरुष) खुद ईश्वर है और “अपरा,प्रकृति” उसका भौतिक रूप| इश्वर के उपर परमेश्वर है| “परा” यानि पुरुष, ब्रम्ह और “अपरा” यानि प्रकृति, जगत जीव-आत्मा परा (ब्रम्ह,ईश्वर,पुरुष) का सीधा अंश है वो परिवर्तनशील अपरा ”प्रकृति”, जगत का अंश नहीं है| जीव-आत्मा में प्रकृति का अंश नहीं है| जीव-आत्मा अपरा प्रकृति से जुडकर बंधन में मालूम पड़ती है इसीलिए वो चलायमान भी आभासित होती है| ईस्वर को ही ब्रम्ह भी कहा जाता है| सर्वव्यापी आत्मा जब ईश्वर के अपरा (प्रकृति) से जुड़ जाती है तो जीव कहलाती है जब शरीर और तमाम तरह की उर्जाओं से मुक्त हो जाती है तो “ब्रम्ह” कहलाती है| सर्वत्र एक ही आत्मा है| जिनसे समुद्र उस पानी के चलते जिनसे अनेक जीव उत्पन्न हो जाते हैं ऐसे ही उस एक आत्मा की मौजूदगी के कारण संसार में अनेक जीव अस्तित्व में आते हैं| ब्रम्ह और प्रकृति “समग्र ईश्वर” के अंग हैं|
“समग्र ब्रह्म” को ही परमात्मा, परम शिव, सर्वोच्च सत्ता कहा जाता है| “जीव” ब्रम्ह/ईश्वर का “अंश” है लेकिन आत्मा समग्र ब्रह्म, परम शिव, सर्वोच्च सत्ता का “अंग” है| “अंग” कभी “अंश” नहीं होता वो पूर्ण ही होता है| जब आप बुराई और दोषो से मुक्त हो जाते हो तो शरीर और शरीर की अंशी प्रकृति, संसार के लिए अच्छे बन जाते हो जब आप शरीर से भी उपर उठ जाते हो तो आत्मा और आत्मा के अंशी, ईश्वर के लिए अच्छे बन जाते हो| संसार के लिए अच्चा बनने से शरीर का भला होता है भोग मिलते हैं| भगवान के लिए अच्चा बनने से मोक्ष मिलता है| चूंकि सभी शरीर परमात्मा की अपरा प्रकृति के अंश हैं इसीलिए बाकी शरीरों का भी भला करो सभी आत्माएं परमात्मा की परा प्रकृति की अंश हैं इसीलिए बाकी आत्माओं का भी भला करो| ख़ास बात ये है कि जीव या जीवात्मा इश्वर का अंश होते हुए भी खुदको उससे दूर मह्सूस करती है और शरीर का अंश ना होते हुए भी उससे नज़दीकी फील करती है|
आप जिसके अंश हो उससे जुडो और जो आपका वाहन मात्र है उससे थोडा हटो| शरीर के साथ जुडाव कितना ही महसूस हो लेकिन शरीर कभी अपना हुआ ही नहीं वो जाएगा ही| नष्ट होगा ही | ईश्वर से कितनी ही दूरी लगे लेकिन इश्वर दूर हो ही नहीं सकते क्यूंकि उसी के तो अंश हो तो आत्मा रूप उसी के अंग हो उससे हटकर जाओगे कहाँ? सबसे छोटा है परमाणु, परमाणु ईश्वर की अपरा प्रकृति का अंश है| लेकिन परमाणु में उसकी परा शक्ति भी मौजूद है यानि उसमे आत्मिक कण भी है| परमाणु में होते हैं इलेक्ट्रान, प्रोटोन, न्युट्रान ये तीनो नाभि के चक्कर लगाते हैं|
इलेक्ट्रान, प्रोटोन, न्युट्रान बने होते हैं क्वार्क से| क्वार्क भी 6 प्रकार का होता है| क्वार्क को जोडकर इलेक्ट्रान, प्रोटोन, न्युट्रान बनाने वाली शक्ति ही ईश्वर की परा शक्ति है| यही अलौकिक शक्ति परमाणु के नाभिक के चारों और इलेक्ट्रान, प्रोटोन, न्युट्रान को गति करवाती है| इसलिए परमाणु सृष्टि का सबसे छोटा पिंड है जिसमे ईश्वर की परा प्रकृति का अंश आत्मा और अपरा प्रकृति का अंश क्वार्क मौजूद होता है| पुरुष और प्रकृति के मेल से बनता है परमाणु और परमाणु ही सभी तरह के पिंड का निर्माण करता है| कण कण में भगवान का भी यही अर्थ है|
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मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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