 Published By:दिनेश मालवीय
 Published By:दिनेश मालवीय
					 
					
                    
हमारे बुजुर्गों ने कहा है कि किसीके भी पारिवारिक झगड़ें में या तो बीच में पड़ना ही नहीं चाहिए. यदि पड़ना ही पड़े तो किसी एक का पक्ष नहीं लेना चाहिए. मान लीजिये कि पति-पति या पिता-पुत्र के बीच झगड़ा हो रहा है और आपको किसी कारण से बीच में पड़ना पड़े, तो किसी एक का पक्ष न लें. आप यदि एक का पक्ष लेंगे, तो दूसरा आपका शत्रु हो जाएगा. उसके साथ आपका सम्बन्ध खटाई में पड़ जायगा.
ऐसा कोई घर-परिवार नहीं होता, जिसमें लड़ाई-झगड़े नहीं होते हों. जहाँ चार बर्तन होते हैं, वे खड़कते ही हैं. इनके कारण भी अनेक बार बहुत बड़े नहीं होते. लिहाजा ये झगडे जल्दी ही ख़त्म भी हो जाते हैं. खासकर पति-पत्नी के बीच तो खटपट चलती ही रहती है. कहा जाता है कि जिन पति-पत्नी में झगडा नहीं होता, उनमें प्यार ही नहीं होता. इसलिए अपने आपको इनसे दूर रखने में ही भलाई है.
जब कोई झगड़ा होता है, तो झूठे-सच्चे आरोप लगते ही हैं. कौन झूठ बोल रहा है और कौन सच बोल रहा है, इसका आपको पता ही नहीं होती. लिहाजा किसीका भी पक्ष लेना उचित नहीं है. हो सकता है, आप जिसका पक्ष ले रहे हों, वह गलत हो और जिसके विपक्ष में बोल रहे हों वह सही हो. इसके अलावा, अधिकतर मामलों में इस प्रकार के झगडे स्थायी नहीं होते. थोड़े समय बाद लड़ने वाले एक हो जाते है, और यदि आपने बीच में पड़कर किसीका पक्ष लिया हो तो आप बुरे बन जाते हैं. नीति के महान ज्ञाता शुक्राचार्य ने कहा है, कि ऐसी स्थित में बहुत चतुराई से ख़ुद को अलग रखना चाहिए.
या फिर ऐसी बात करनी चाहिये, जो दोनों के पक्ष में हो. किसी एक का पक्ष न लें. इसी प्रकार, कानूनी या अदालती लड़ाई में या थाना-पुलिस की नौबत आ जाए, तो भी पूरी जानकारी के बिना गवाही देना समझदारी नहीं है. आपको पता ही नहीं होता, कि कौन सही है और कौन गलत. और अगर हो भी तो आपको यथासंभव किसीके भी पक्ष में गवाही देने से बचना चाहिए. इससे बहुत परेशानियों से बचा जा सकता है.
कोई कह सकता है कि हमेशा सच के पक्ष में बोलना चाहिए. यह बात अपनी जगह सही है, लेकिन पारिवारिक और आपसी झगड़ों में यह बात लागू नहीं होती. दोस्तों के मामले में भी यह बात उतनी ही प्रासंगिक है. दोस्त कभी-कभी इस तरह लड़ते हैं, कि लगता है, अब इनकी दोस्ती हमेशा के लिए टूट गयी. लेकिन अधिकतर मामलों में ऐसा नहीं होता. देर-सबेर वे फिर से एक हो जाते हैं. कहते हैं, कि लड़ाई के बाद दोस्ती और पक्की हो जाती है.
उस लड़ाई में अगर आपने दोनों में से किसी का पक्ष लिया हो तो आप उसके दुश्मन हो जाते हैं. यह भी हो सकता है कि दोनों दोस्त आपके खिलाफ हो जाएँ. यहाँ तक कि वे लड़ाई बढाने के लिए आपको ही जिम्मेदार ठहरा सकते हैं. इसीलिए पुराने समय से ही यह कहावत चली आ रही है, कि अनावश्यक किसीकी साई-गवाही में नहीं पड़ना चाहिए.
 
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