इस संसार में कोई भी मनुष्य प्राणी जन्म लेता है उसे सुख और दु:ख दोनों एक साथ भोगना ही पड़ेगा। मनुष्य को यह भी नहीं सोचना चाहिए कि मुझे दु:ख क्यों मिल रहा है। अगर हमारे कर्म अच्छे हो तो हमारे भाग्य में कितना भी दु:ख क्यों ना लिखा हो ईश्वर का जप करते सुखी जीवन यापन कर सकते हैं|
यह सही है कि जीवन में सुख और दुःख भाग्य से भी मिलते हैं और कर्म से भी। भाग्य और कर्म दोनों का योगदान हमारे जीवन को निर्माण करते हैं और इसलिए दोनों का महत्व है। आध्यात्मिक ज्ञान के अनुसार, भाग्य की एक भाग इस संसार में अपने पिछले जन्म के कर्मों से निर्धारित होता है।
कर्म एक व्यक्ति के चरित्र और कृतित्व को प्रभावित करते हैं। अच्छे कर्मों के परिणामस्वरूप व्यक्ति को सुख, समृद्धि, और शांति मिलती है। विकारी कर्मों के कारण व्यक्ति को दुख और क्लेश का सामना करना पड़ता है।
आध्यात्मिक दृष्टिकोन से, ईश्वर ने हमें स्वतंत्र चेतना दी है और हम अपने कर्मों के जिम्मेदार हैं। अच्छे कर्म करने से हम अपने जीवन को सुखी और सफल बना सकते हैं। अच्छे कर्म का अर्थ यह नहीं है कि हमें कठिनाइयों से बचा रहना है, बल्कि यह है कि हम दुःख के सामने भी साहस से खड़े होकर समाधान ढूंढें और उसका सामना करें।
भाग्य भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि भाग्य ने हमें अनेक संदेशों के माध्यम से अनुभव कराता है। इसे ग्रहों, भविष्य के नियम, और पूर्व जन्म के कर्मों से जोड़ा जा सकता है। हालांकि, भाग्य के प्रभाव को कर्म से भी परिवर्तित किया जा सकता है। अच्छे कर्म करने से भाग्य में सुधार हो सकता है और दुख को कम किया जा सकता है।
इसलिए, एक व्यक्ति को सुखी जीवन यापन करने के लिए भाग्य और कर्म दोनों को साथ में मिलाना महत्वपूर्ण है। अच्छे कर्म करने से हम अपने भाग्य को सुधार सकते हैं और सुखी जीवन जी सकते हैं। इसलिए, अच्छे कर्म करने का प्रयास करें और भाग्य के साथ सामर्थ्य का सामना करें।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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