अपने ही पुत्र के हाथों कैसे मारा गया और फिर जीवित हुआ अर्जुन का गांडीव और सभी अस्त्र कहाँ और क्यों बेअसर हो गये -दिनेश मालवीय अगर हम दुनिया का इतिहास उठाकर देखें तो ऐसा कोई विरला ही योद्धा हुआ हो, जो जीवन में कभी किसी से पराजित नहीं हुआ हो. पाण्डवों में तीसरे नंबर के भाई अर्जुन को द्वापर युग का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर माना जाता है. उनके गुरु द्रोणाचार्य ने उन्हें संसार का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनाने का प्रण किया था. उन्होंने अर्जुन को इस प्रकार प्रशिक्षण दिया कि, धनुर्विद्या में उसे सिर्फ भगवान् परशुराम, द्रोणाचार्य और भीष्म पितामह ही पराजित कर सकते थे. और किसी के बूते की यह बात नहीं थी. कर्ण अवश्य धनुर्विद्या में अर्जुन के आसपास पहुंचता है, लेकिन अर्जुन को परास्त करने में वह सक्षम नहीं था. लेकिन इतने महान धनुर्धर अर्जुन ने जीवन में एक दो बार नहीं बल्कि तीन बार पराजय का मुंह देखा था. हम इस विडियो में आपको बताते बताने जा रहे हैं कि, अर्जुन वह तीन बार कैसे और किससे पराजित हुआ.
एक बार तो उसके पुत्र ने ही उसे पराजित कर मार डाला. इसके बाद वह कैसे फिर जीवित हो गया, यह हम आपको बताएँगे. अर्जुन ने जीवन में सबसे पहले पराजय का मुंह तब देखा जब उसकी भगवान् शंकर से भिड़ंत हुई. यह कथा काफी रोचक है. अर्जुन के पिता देवराज इंद्र ने अर्जुन को सलाह दी कि वह भगवान् शंकर की तपस्या करके उनसे दिव्यास्त्र प्राप्त करे. अर्जुन ने उत्तराखंड के पर्वतों में जाकर देवाधिदेव महादेव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की. उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर शंकरजी ने उस पर कृपा करने का निश्चय किया.लेकिन इसके पहले उन्होंने उसकी परीक्षा ली. जाति, सनातन धर्म का अंग नहीं, सनातन धर्म के मूल ग्रंथों में “जाति” का नाम तक नहीं.. दिनेश मालवीय शंकरजी एक किरात का वेश धारण कर वहां पहुंचे, जहां अर्जुन तपस्या कर रहा था. उन्होंने वहां मूक नाम के दानव को देखा, जो सूअर के रूप में था और अर्जुन को मार देना चाहता था.
अर्जुन ने उस पर तीर चलाना चाहा.. किरात का रूप धरकर आये शंकरजी ने अर्जुन को रोका. शंकरजी ने कहा कि इस सूअर को मैंने पहले ही अपना निशाना बना रखा है, इसलिए तुम उस पर तीर मत चलाओ.. लेकिन अर्जुन ने उनकी बात नहीं मानी और सूअर पर तीर चला दिया. किरात रूपी शंकरजी ने भी उसी समय सूअर पर वाण छोड़ दिया. वे दोनों वाण एक साथ उस सूअर को लगे. वह मर गया. शंकरजी और अर्जुन दोनों सूअर पर अधिकार जताने लगे. इसको लेकर दोनों में द्वंद्व युद्ध हुआ. अर्जुन ने अपना सारा कौशल और शक्ति लगा दी, लेकिन शंकरजी पर उसकी एक नहीं चली. आखिर उसने अपनी पराजय स्वीकार की.
शंकरजी ने उसे अपना असली रूप दिखाया और उसे पाशुपत नाम का अमोघ अस्त्र प्रदान किया. इस प्रकार अर्जुन ने पहली बार शंकरजी के हाथों पराजय का स्वाद चखा. अर्जुन को दूसरी बार पराजय अपने ही पुत्र बभ्रुवाहन के हाथों मिली. उसके साथ युद्ध में तो अर्जुन अपने इस पुत्र के हाथों मारा ही गया. वह अर्जुन की एक पत्नी चित्रांगदा का पुत्र था. वह अर्जुन से पुत्र के जन्म के बाद से ही अपने पुत्र के साथ अपने पिता के राज्य में रहती थी.
हुआ यूं था कि युधिष्ठिर ने अश्वमेध यज्ञ करने का निश्चय किया. इसके लिए उन्हें सभी देशों के राजाओं को अपने अधीन करना था. उन्होंने उत्तर दिशा के राजाओं को अपने अधीन करने के लिए अर्जुन को भेजा. मणिपुर में अर्जुन का पुत्र बभ्रुवाहन राज कर रहा था.बभ्रुवाहन को जब पता चला कि उसके पिता आये हैं, तो वह बहुत सारा धन लेकर उसे अर्पित करने नगर की सीमा पर पहुंचा. अर्जुन ने उससे कहा कि क्या तुम क्षत्रिय धर्म को भूल गये हो. इस तरह बिना लड़ाई किये तुम समर्पण कर रहे हो, जो क्षत्रिय धर्म के विरुद्ध है. क्या भक्त की भावना से भगवान साक्षात प्रकट होते हैं, जानिए भगवान लड्डूगोपाल के प्रकट होने का रहस्य.. दिनेश मालवीय अर्जुन की एक और पत्नी नागकन्या उलूपी यह बात सुन रही थी. उसने बभ्रुवाहन से क्षात्र धर्म निभाते हुए युद्ध करने को कहा.
बभ्रुवाहन ने अर्जुन से युद्ध किया. दोनों के बीच बहुत भयंकर युद्ध हुआ. इसमें बभ्रुवाहन मूर्छित हो गया और अर्जुन की मृत्यु हो गयी. अर्जुन के मारे जाने की खबर सुनकर उसकी पत्नी चित्रांगदा वहां जाकर विलाप करने लगी. इस अवसर पर अर्जुन की दूसरी पत्नी नागकन्या उलूपी भी वहीं थी. उसने नागलोक से संजीवनी का स्मरण कर उसे प्राप्त किया और अर्जुन को फिर से जीवित कर दिया. इस प्रकार अर्जुन को जीवन में दूसरी पराजय अपने ही पुत्र के हाथों मिली. अर्जुन की तीसरी पराजय तो बहुत अनपेक्षित और संसार को शिक्षा देने वाली थी. द्वारकापुरी में जब यादव आपस में लड़-मर रहे थे, तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को वहां बुलाकर कहा कि द्वारका की स्त्रियों को अपने साथ इन्द्रप्रस्थ ले जाओ, ताकि उनकी सुरक्षा हो सके. अर्जुन इन स्त्रियों को लेकर जा रहां था कि रास्ते में कुछ लुटेरों ने अर्जुन पर हमला कर स्त्रियों का अपहरण करने का प्रयास किया. अर्जुन ने स्त्रियों की रक्षा के लिए धनुष उठाया तो पाया कि उनका बाहुबल समाप्त हो गया है. वह सारी धनुर्विद्या भूल गया है. उसके वाणों का भील लुटेरों पर कोई असर नहीं हुआ.
वह पराजित होकर कुछ ही स्त्रियों को इंद्रप्रस्थ ले जा पाया. इस तरह अर्जुन ने तीसरी और अंतिम बार पराजय का मुंह देखा. यह प्रसंग संसार के लिए बहुत शिक्षाप्रद है. अर्जुन जब अपनी शक्ति खो जाने का कारण महर्षि व्यास से पूछते हैं, तो व्यास जी बताते हैं कि अर्जुन अब संसार में नया युग प्रारंभ हो चुका है. तुम्हारा कर्तव्य पूरा हो चुका है. तुम्हें जो अस्त्र मिले थे, उनका उद्देश्य पूरा हो चुका है. अब इसीलिए ये अस्त्र लुटेरों के साथ लड़ाई में तुम्हारे काम नहीं आये. इस विषय पर एक लोक कहावत आज तक प्रचलित है कि - समय बड़ा बलवान है, वीर नहीं बलवान भीलन लूटीं गोपियाँ, वही अर्जुन वही बान कामयाबी के लिए अपनी आलोचना पचाना सीखिये -दिनेश मालवीय
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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