'बिना विष्णोः प्रसादेन दारान् पुत्रान् न चाप्नुयात्।
सजन्म च कुलं विप्र तद्विष्णोः परमं पदम्॥'
जिस पर भगवान विष्णु की कृपा होती है, उसी के घर में सदा सुशील, ज्ञानवान और धर्मपरायण पुत्र होते हैं। यह सर्वदा सत्य ही है। आपने पढ़ा या सुना होगा। भगवान ने उन्हीं के यहां अवतार लिया अर्थात जन्म लिया, जिन्होंने वर्षों तक भगवान की पूजा की, भगवत नाम का जाप किया।
इसी प्रकार संसार में उसी दम्पत्ति को श्रेष्ठ पुत्र की प्राप्ति हुई है, जिस पर भगवान की कृपा है। 'भगवान विष्णु की कृपा के बिना कोई भी उत्तम स्त्री, उत्तम पुत्र, उत्तम जन्म, उत्तम कुल और श्री विष्णु के परम धाम को नहीं पा सकता।'
उत्तम पुत्र के लक्षणों को इस तरह व्यक्त किया जा सकता है कि जो निरंतर कर्मशील हो, समझकर विद्याध्ययन करता हो, विद्या का सद् उपयोग करता हो, धार्मिक भावना से युक्त हो, परिवार के कुल धर्म को बढ़ाने वाला होता है, वही उत्तम पुत्र होता है।
शास्त्रों में पुत्र 5 प्रकार के बतलाये हैं-
1. धरोहर रखने वाले : जो जिसकी जिस भाव से धरोहर हड़प लेता है, वह उसी भाव से उसके यहां जन्म लेता है और असह्य दुख देता है। जबकि धरोहर का मालिक सुन्दर और रूपवान तथा गुणी होकर जन्म लेता है।
2. ऋण देने वाला : जिसने पिछले जन्म में ऋण लिया था, वह ऋण चुकाने के लिए जन्म लेता है। ऐसा जातक जीवन भर कमाता है और दूसरों को (अपने पूर्वजों के कर्ज के रूप में) चुकाता रहता है। ऐसा व्यक्ति मरने के बाद भी अपनी संतानों पर कर्ज का दुःख देता है दुख दूर करने हेतु दान करना चाहिए।
3. शत्रुता रखने वाला : पूर्व जन्म का शत्रु बाल्यकाल से शत्रुता का बर्ताव करने लगता है। खेलकूद में भी माता-पिता को मार-मार कर भागता है और बार-बार हंसा करता है। क्रोधी स्वभाव का होता है और सदा शत्रुता के कार्यों में ही लगा रहता है। सब कुछ हथिया कर माता-पिता को पीटता है। उनके मरने पर न श्राद्ध करता है और न ही दान-पुण्य करता है।
4. उपकार तथा सेवा करने वाला : पूर्वजन्म में जिसे उपकार मिला हो वह बचपन से माता-पिता की प्रसन्नता के कार्य करता है। बड़ा होने पर भी उनको सुख पहुंचाने में लगा रहता है। अपनी भाषा और व्यवहार से सदा दूसरों को प्रसन्न करता है तथा माता-पिता की मृत्यु के पश्चात श्राद्ध तथा पिण्ड दानादि करता रहता है। सदा परोपकार और परहित की भावना रखता है।
5. उदासीन : ऐसा बालक उदासीन प्रकृति का होता है। वह न लेता है, न देता है, न रुष्ट होता है, न प्रसन्न होता है, उदासीन रहता है।
प्रायः पूर्वोक्त ऋणानुबंध से ही यहां संबंध हुआ करते हैं। शास्त्र तो कहते हैं कि पुत्र ही नहीं, ऋणानुबंध माता- पिता, पति-पत्नी, बंधु-बांधव, नौकर यहां तक कि वाहन आदि (हाथी-घोड़े आदि) भी अपने-अपने बदला चुकने को जीव से संबंध जोड़ा करते हैं।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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