Published By:धर्म पुराण डेस्क

क्या आप जानते हैं की शादी/विवाह(मैरिज) के लिए कौन से देवता की पूजा करनी चाहिए.. 

समय पर अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने की इच्छा के कारण माता-पिता व भावी वर-वधू भी चाहते है कि अनुकुल समय पर ही विवाह(मैरिज) हो जायें| 

कुण्डली में विवाह(मैरिज) विलम्ब से होने के योग होने पर विवाह(मैरिज) की बात बार-बार प्रयास करने पर भी कहीं बनती नहीं है| इस प्रकार की स्थिति होने पर शीघ्र विवाह(मैरिज) के युक्ति करने हितकारी रहते है| युक्ति करने से शीघ्र विवाह(मैरिज) के मार्ग बनते है| तथा विवाह(मैरिज) के मार्ग की बाधाएं दूर होती है|

हमारे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण संस्कार है विवाह(मैरिज)। सामान्यत: सभी लोगों का विवाह(मैरिज) हो जाता है, कुछ लोगों का जल्दी विवाह(मैरिज) होता है तो कुछ लोगों की शादी में विलंब होता है। 

यदि किसी अविवाहित लड़के या लड़की की सभी परिस्थितियां बहुत अच्छी हैं और फिर भी विवाह(मैरिज) नहीं हो पा रहा है तो ऐसा संभव है कि उनकी कुंडली में कोई ग्रह बाधा हो।

मानव जीवन में विवाह(मैरिज) बहुत बड़ी विशेषता मानी गई है। विवाह(मैरिज) का वास्तविक अर्थ है- दो आत्माओं का आत्मिक मिलन। एक हृदय चाहता है कि वह दूसरे हृदय से सम्पर्क स्थापित करें, आपस में दोनों का आत्मिक प्रेम हो और हृदय मधुर कल्पना से ओतप्रोत हो।

जब दोनों एक सूत्र में बंध जाते हैं, तब उसे समाज ‘विवाह(मैरिज)’ का नाम देता है। विवाह(मैरिज) एक पवित्र रिश्ता है।

ज्योतिषीय दृष्टि से जब विवाह(मैरिज) योग बनते हैं, तब विवाह(मैरिज) टलने से विवाह(मैरिज) में बहुत देरी हो जाती है। वे विवाह(मैरिज) को लेकर अत्यंत चिंतित हो जाते हैं। वैसे विवाह(मैरिज) में देरी होने का एक कारण बच्चों का मांगलिक होना भी होता है। 

इनके विवाह(मैरिज) के योग 27, 29, 31, 33, 35 व 37वें वर्ष में बनते हैं। जिन युवक-युवतियों के विवाह(मैरिज) में विलंब हो जाता है, तो उनके ग्रहों की दशा ज्ञात कर, विवाह(मैरिज) के योग कब बनते हैं, जान सकते हैं।

जिस वर्ष शनि और गुरु दोनों सप्तम भाव या लग्न को देखते हों, तब विवाह (मैरिज) के योग बनते हैं। सप्तमेश की महादशा-अंतर्दशा या शुक्र-गुरु की महादशा-अंतर्दशा में विवाह(मैरिज) का प्रबल योग बनता है। सप्तम भाव में स्थित ग्रह या सप्तमेश के साथ बैठे ग्रह की महादशा-अंतर्दशा में विवाह(मैरिज) संभव है। 

अविवाहित  युवाओं की कुंडली गुरु ग्रह से संबंधित बाधा हो तो भी विवाह (मैरिज) में विलंब होता है। गुरु ग्रह को शादी का कारक ग्रह माना जाता है। इसके अलावा जिन लोगों की कुंडली मंगली होती है उनका विवाह(मैरिज) या तो जल्दी हो जाता है या काफी विलंब से होता है। 

यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में गुरु ग्रह अशुभ स्थिति में है तो उसे बृहस्पति ग्रह को मनाने के लिए ज्योतिषीय युक्ति  करने चाहिए।

युक्ति करते समय ध्यान में रखने योग्य बातें (Precautions while doing Jyotish remedies)..

1| किसी भी युक्ति को करते समय, व्यक्ति के मन में यही विचार होना चाहिए, कि वह जो भी युक्ति कर रहा है, वह ईश्वरीय कृपा से अवश्य ही शुभ फल देगा|

2| सभी युक्ति  पूर्णत: सात्विक है तथा इनसे किसी के अहित करने का विचार नहीं है|

3| युक्ति करते समय युक्ति पर होने वाले व्ययों को लेकर चिंतित नहीं होना चाहिए|

4| युक्ति  से संबंधित गोपनीयता रखना हितकारी होता है|

5| यह मान कर चलना चाहिए, कि श्रद्धा व विश्वास से सभी कामनाएं पूर्ण होती है

बृहस्पति को देवताओं का गुरु माना जाता है इनकी पूजा से विवाह के मार्ग में आ रही सभी अड़चनें स्वत: ही समाप्त हो जाती हैं। इनकी पूजा के लिए गुरुवार का विशेष महत्व है। 

गुरुवार को बृहस्पति देव को प्रसन्न करने के लिए पीले रंग की वस्तुएं चढ़ानी चाहिए। पीले रंग की वस्तुएं जैसे हल्दी, पीला फल, पीले रंग का वस्त्र, पीले फूल, केला, चने की दाल आदि इसी तरह की वस्तुएं गुरु ग्रह को चढ़ाना चाहिए।

साथ ही शीघ्र विवाह की इच्छा रखने वाले युवाओं को गुरुवार के दिन व्रत रखना चाहिए। इस व्रत में खाने में पीले रंग का खाना ही खाएं, जैसे चने की दाल, पीले फल, केले खाने चाहिए। इस दिन व्रत करने वाले को पीले रंग के वस्त्र ही पहनने चाहिए। हालांकि इस व्रत के कई कठोर नियम भी हैं। 

ऊँ ग्रां ग्रीं ग्रों स: मंत्र का पांच माला प्रति गुरुवार जाप करें। गुरु ग्रह की पूजा के अतिरिक्त शिव-पार्वती का पूजन करने से भी विवाह की मनोकामना पूर्ण हो जाती हैं। इसके लिए प्रतिदिन शिवलिंग पर कच्चा दूध, बिल्व पत्र, अक्षत, कुमकुम आदि चढ़ाकर विधिवत पूजन करें।


 

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