क्या आप जानते हैं कि, हनुमानजी के भक्त को शनिदेव क्यों कष्ट नहीं देते, शनिदेव पर तेल क्यों चढ़ाया जाता है, कलियुग के लिये हनुमानजी और शनिदेव के बीच क्या संधि हुयी, आज हम आपके सामने दो देवताओं के बीच एक बड़ी महत्वपूर्ण संधि की बात लेकर उपस्थति हुए हैं.
आपने देखा ही होगा कि शनिवार के दिन पवनपुत्र हनुमानजी के मंदिरों में भक्तों की बहुत भीड़ होती है. वैसे तो हनुमानजी की पूजा-अर्चना रोजाना ही की जाती है, लेकिन शनिवार को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. शनिवार को हनुमानजी की विशेष पूजा-अर्चना के लिए महत्वपूर्ण माने जाने के पीछे पुराणों में एक कथा आती है. इसके पीछे शनिदेव और हनुमानजी की कलियुग के लिए की गयी एक संधि है.
हनुमानजी के चरित्र के इतने पहलू हैं कि जीवन भर भी उनका वर्णन किया जाए तो कम है. उनके अन्य गुणों के साथ ही एक विशेष गुण यह है कि वह स्वभाव से बहुत भोले और दया के सागर हैं. आखिर रूद्र के अवतार जो ठहरे. वह असीम बलवान होने के बावजूद अकारण किसी से लड़ना-भिड़ना नहीं चाहते. लेकिन कोई लड़ने पर आमादा हो ही जाए या किसी का भला करने के लिए यदि उसका किसी अत्याचारी का मानमर्दन करना भी पड़े, तो वह इसमें वह पीछे नहीं हटते.
कथा के अनुसार शनिदेव के साथ ऐसा ही हुआ था. एक बार जब सूर्यास्त होने को था, तब हनुमानजी राम-सेतु के पास अपने आराध्य देव भगवान श्रीराम के ध्यान में मग्न थे. उसी समय सूर्यपुत्र शनिदेव समुद्र के तट पर टहल रहे थे. उन्हें अपनी ताकत और पराक्रम पर बहुत घमंड था. वह सोचने लगे की उनसे बलवान सृष्टि में कोई है ही नहीं. उनके मन में ऐसा भाव आया कि कोई तो ऐसा मिले जिससे भिड़कर वह दो-दो हाथ कर सकें. आखिर मेरी ताकत का कोई तो उपयोग होना चाहिए.
शनि महाराज ऐसा विचार कर ही रहे थे कि अचानक उनकी दृष्टि ध्यानमग्न बैठे हुए हनुमानजी पर पड़ी. शनिदेव ने उन्हें पराजित करने का फैसला किया. वह उनके पास पहुंच कर बहुत उदंडता से बोले कि- है बंदर! मैं सूर्यपुत्र शनि तुमसे युद्ध करना चाहता हूँ. तुम सावधान हो जाओ, हनुमानजी ने विनम्रता से कहा कि हे शनिदेव! मैं वृद्ध हो गया हूँ और अपने प्रभु का ध्यान कर रहा हूँ. आप कृपया मेरे ध्यान में विग्न मत डालिए और चले जाइए.
लेकिन घमंड में चूर कोई व्यक्ति विनती को कहाँ मानता है ! शनिदेव बोले- “ मैं कहीं जाकर लौटना नहीं जानता. जहाँ जाता हूँ, वहाँ अपनी बल शालिता सिद्ध करके ही रहता हूँ. हनुमान जी ने बार-बार शनिदेव से प्रार्थना की और उनके भजन में बाधा न डालने का अनुरोध किया. उन्होंने कहा कि आप कहाँ इस बूढ़े से युद्ध करने की ठान रहे हैं. किसी और वीर की तलाश कर लीजिये.”
अहंकार से भरे शनिदेव बोले- “तुम्हें कायरता शोभा नहीं देती. तुम्हारी दशा देखकर मेरे मन में करुणा का भाव तो आ रहा है, लेकिन मैं तुमसे युद्ध अवश्य करूँगा. इतना ही नहीं, उन्होंने हनुमानजी का हाथ पकड़ लिया और युद्ध के लिए ललकारने लगे. हनुमानजी ने झटककर अपना हाथ छुड़ा लिया. शनि फिर उनका हाथ पकड़कर युद्ध के लिए खीचने लगे. हनुमानजी ने कहा-‘ आप नहीं मानेंगे’. हनुमानजी ने धीरे से ऐसा कहते हुए अपनी पूंछ बढ़ाकर शनिदेव को उसमें लपेटना शुरू कर दिया. देखते ही देखते शनि महाराज आकंठ उसमें बंध गये.
उनका अहंकार और ताकत किसी काम नहीं आयी. वह असहाय और निरुपाय होकर पीड़ा से छटपटाने लगे. इसी बीच हनुमानजी की राम-सेतु की परिक्रमा का समय हो गया. हनुमानजी उठे और दौड़ते हुए सेतु की प्रदक्षिणा करने लगे. शनिदेव पूरी ताकत लगाकर भी बंधन को शिथिल नहीं कर सके. हनुमानजी अपनी पूँछ को रास्ते में पड़े एक शलाखंड पर पटकते भी जा रहे थे. शनिदेव की दशा बहुत दयनीय हो गयी. उनके शरीर से रक्त बहने लगा. उनकी पीड़ा असहनीय हो गयी. हनुमानजी थे की परिक्रमा किए जा रहे थे और बीच-बीच में पूँछ के फटके भी लगा रहे थे.
शनिदेव कातर होकर हनुमानजी से कृपा करने की प्रार्थना करने लगे. वह बोले-“ करुणामय भक्तराज! मुझ पर कृपा कीजिए. मुझे प्राणदान दीजिये.” दया के वशीभूत होकर हनुमानजी ने कहा-“ यदि तुम मेरे भक्तों की राशि पर कभी न जाने का वचन दो, तो मैं तुम्हें छोड़ सकता हूँ. यदि तुमने ऐसा किया तो मैं तुम्हें कठोरतम दंड दूंगा”. शनिदेव ने वचन दिया कि “है कपवर! मैं निश्चय ही कभी आपके भक्त की राशि पर कभी नहीं जाऊंगा. हनुमानजी ने शनिदेव को छोड़ दिया. शनिदेव अपना शरीर सम्भालते हुए अपने घावों का मर्दन लगे. उन्होंने हनुमानजी को सादर प्रणाम किया और अपनी चोट से होने वाली पीड़ा को मिटाने के लिए उनसे तेल मांगने लगे. हनुमानजी ने उन्हें तेल दान कर उनके कष्ट को दूर किया. इसलिए आज भी शनिदेव को संतुष्ट करने के लिए भक्तगण उन्हें तेल चढ़ाते हैं.
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
February 24, 2024यदि आपके घर में पैसों की बरकत नहीं है, तो आप गरुड़...
February 17, 2024लाल किताब के उपायों को अपनाकर आप अपने जीवन में सका...
February 17, 2024संस्कृति स्वाभिमान और वैदिक सत्य की पुनर्प्रतिष्ठा...
February 12, 2024आपकी सेवा भगवान को संतुष्ट करती है
February 7, 2024योगानंद जी कहते हैं कि हमें ईश्वर की खोज में लगे र...
February 7, 2024भक्ति को प्राप्त करने के लिए दिन-रात भक्ति के विषय...
February 6, 2024कथावाचक चित्रलेखा जी से जानते हैं कि अगर जीवन में...
February 3, 2024