हमारे धार्मिक रीति-रिवाजों में नारियल भेंट करना एक प्रमुख परंपरा है आखिर ऐसा क्यों होता है क्यों हम शिष्टाचार में अन्य फलों को छोड़कर नारियल ही भेंट करते हैं.
नारियल को हर शुभ काम में उपयोग क्यों किया जाता है नारियल का महत्व हमारे पुराणों में प्रथाओं में परंपराओं में देखने को मिलता है।
नारियल भेंट देने का रहस्य-
धार्मिक और सांस्कृतिक शिष्टाचार में अन्य फलों को छोड़कर नारियल ही क्यों भेंट किया जाता है? देवी-देवताओं, विशिष्ट व्यक्तियों तथा मान्य अतिथियों को मांगलिक एवं शुभ अवसरों पर नारियल भेंट करने की प्रथा प्राचीन काल से ही प्रचलित है. इसका प्रचलन किसी विशेष अभिप्राय से ही हुआ होगा, इस अभिप्राय को नारियल के स्वरूप और गुणों में खोजा जा सकता है.
नारियल अन्य सभी फलों से अलग हटकर है. अधिकांश फल रंग-बिरंगे और देखने में सुंदर होते हैं. प्रायः उनका छिलका कोमल होता है लेकिन नारियल का छिलका अत्यधिक कठोर होता है, मनुष्य का व्यक्तित्व भी नारियल के ही समान है.
सांसारिक कठिनाइयों और परेशानियों के कारण वह ऊपर से कठोर और कर्कश होता है फिर भी वह भीतर से बहुत कुछ कोमल एवं मधुर बना रहता है, लेकिन जो लोग मीठी-मीठी बातें करने वाले होते हैं, वे भीतर से कठोर, छली होते हैं बेर के फल की तरह.
नारियल भेंट देने का यही रहस्य है कि ऊपर से भले ही कठोर बने रहो लेकिन भीतर से सदैव नारियल के मर्म (गरी) की तरह मृदुल और मधुर बने रहना.
नारियल के भीतर जो गरी का गोला होता है वह जीवन के मधुर मर्म का प्रतीक होता है, जिसका अर्पण हमें अभीष्ट होता है. इसलिए कभी खोखला नारियल भेंट नहीं किया जाता, सगे-संबंधियों को प्रायः यह गरी का गोला ही भेंट किया जाता है. ये संबंध इतने मधुर होते हैं कि इनके साथ हम अपने कर्कश आवरण को उतारकर रख देते हैं, मानो हम अपने अंतःकरण के मृदुल मर्म को ही भेंट करते हैं.
नारियल का मर्म भाग (गरी) मृदुल और मधुर होने के साथ-साथ सफेद भी होता है। जो सतोगुण का प्रतीक है. सात्विकता से ही सरलता आती है. अंत:करण की मृदुता और मधुरता का संरक्षण भी सात्विकता के द्वारा ही किया जा सकता है. भेंट का नारियल अंत:करण की सात्विकता का आदर्श भी प्रस्तुत करता है. इस प्रकार जीवन के अनेक मांगलिक भावों का सूचक होने के नाते नारियल भेंट किया जाता है.
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