 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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हमारा शरीर भी एक यन्त्र है, एक मशीन है और ऐसी बढ़िया व लाजवाब मशीन है कि इस जैसी मशीन बड़े से बड़ा वैज्ञानिक भी आज तक बना नहीं सका। शरीर का एक-एक अंग बेमिसाल है, अदभुत है और उसका कोई बदल (Replacemant) मिलना अभी तक तो असम्भव ही है पर अफ़सोस ! हम इसकी कद्र नहीं करते।
दुनिया की किसी भी अच्छी से अच्छी मशीन की नकल की जा सकती है, हू बहू वैसी ही बनाई जा सकती है बल्कि उससे भी अच्छी बनाई जा सकती है पर हमारे शरीर जैसी पूरी मशीन तो क्या इसका एक स्पेयर पार्ट ही बनाना असम्भव है।
उस दयालु जगत रचयिता ईश्वर ने हमें ऐसी मशीन बना कर दी है कि इसे हम जैसे चाहें, जितना चाहें और जब तक चाहें प्रयोग करते रह सकते है हमारा शरीर भूखा हो, प्यासा हो, थका हुआ हो तब भी इसे घसीटते रहते हैं भले ही इसका परिणाम जो भी हो।
हमारी लापरवाहियां, ग़लतियां और यदि खड़तल भाषा में कहा जाए तो खरमस्तियां एक हद तक प्रकृति दरगुज़र करती रहती है, सहयोग करती रहती है और हमारी गाड़ी धकाती रहती है।
इसके मुकाबले मनुष्य की बनाई हुई अच्छी से अच्छी मशीन का कोई तार हटा दें, कोई पुर्जा खराब कर दें या कोई भी नुक्स कर दें फिर देखें कि वह मशीन काम करती है या नहीं?
जरा बैटरी भी डाउन या डिस्चार्ज हो जाए तो बढ़िया लकदक इंपोर्टेड कार भी धक्का परेड किये बिना स्टार्ट नहीं हो सकती और हम है कि हमारी गाड़ी को घसीटे ही जाते है। इसकी कोई कद्र नहीं करते।
 
 
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