एक आधुनिक व्यक्ति की निराशा-आशा, हार-जीत और संघर्ष-विजय का यह वृत्तान्त देखिये, कितना प्रेरक है। यह आदमी तीस वर्षों तक निराशा से युद्ध करता रहा और अंत में उसने निराशा को परास्त कर ही दिया। बार-बार हार पर भी हिम्मत न हारी और अंत में विजय प्राप्त की।
सन् 1831 में उस व्यक्ति को व्यापार में बड़ी हानि हुई। हाथ का संचित सारा रुपया जाता रहा। उसने सोचा था, व्यापार के क्षेत्र में मैं सबसे ऊँचा उठ सकूँगा; पर उसे इस नुकसान से ज्ञात हुआ कि व्यापार का क्षेत्र उसके लिये नहीं था| फिर भी वह परास्त नहीं हुआ। उसने मन-ही-मन कहा, 'बाहरी कठिनाइयाँ तो बदलती रहती हैं। मनुष्य की सच्ची कठिनाइयाँ तो आन्तरिक हैं। वे मुझमें नहीं है। मैं अब नये क्षेत्र में उन्नति का प्रयत्न करूँगा।'
निर्बल तथा निराश मन सदा कायरता की अभद्र कल्पनाएँ किया करता है। पर यह व्यक्ति सदा से आशावादी था। वह मन से साहसी और शूरवीर था। वह मन में दृढ़ता से विश्वास किये हुए था कि मैं अपने चारों ओर की विपत्तियों को मनोबल से परास्त करके ही रहूँगा। अतएव उसने कठिनाइयों से सदा लड़ने का रास्ता चुना।
अब उसने अपने देश- अमेरिका की लेजिस्लेचर में चुनाव लड़ा। खूब तैयारियां कीं। राजनीतिक दांव-पेंच काम में लिये। जनता की खूब सेवा की। सबको अपने पक्ष में करने के लिये सच्चाई और ईमानदारी के सब साधन अपनाये। उसे सफलता की पूरी आशा थी- लेकिन हाय ! लेजिस्लेचर के चुनाव में उसकी हार हुई।
1832 का वर्ष उसके लिये व्यर्थ गया ! वह फिर सोचने लगा, 'शायद मैंने गलती की है ? क्यों न एक बार फिर व्यापार ही करूँ?' उसने फिर व्यापार प्रारम्भ किया।
सन् 1833 में उसे व्यापार में फिर भयंकर नुकसान हुआ। अब क्या करे ? कौन-सा क्षेत्र ठीक रहेगा उसके लिये ? उसने 1834 में फिर नये उत्साह से, नयी तैयारी से लेजिस्लेचर का चुनाव लड़ा।
सन् 1835 में भाग्य ने एक ठोकर और मारी। यह उसके व्यक्तिगत जीवन से सम्बन्धित थी। इस वर्ष उसकी प्रिय पत्नी की मृत्यु हो गयी ! साधारण आदमी शायद इस मानसिक आघात से पागल हो जाता; पर उसका गुप्त साहस और कार्यक्षमता बढ़ती जा रही थी। वह हिम्मत बांधे हुए था।
कठिनाइयों से लड़ते-लड़ते सन् 1836 में वह स्नायु-रोग से पीड़ित हो गया। उसने फिर स्पीकर के चुनाव में लड़ने का प्रयत्न किया। लेकिन आपत्तियां एक के बाद एक उस पर बिजलियों की तरह टूटती ही रहीं।
सन् 1838 में स्पीकर के चुनाव में हार ! जीवन फिर बहुत वर्षों तक कठिनाइयों से लड़ने में व्यतीत होता रहा।
सन् 1843 में लैंड-अफसर की नियुक्ति में हार ! भयंकर मानसिक आघात ! विधि का क्रूर चक्र !! मौत के कुटिल पंजे अब उसे दबोचने के लिये बाहर निकल आये। फिर भी उसका उत्साह और शौर्य चलता रहा। उसने हिम्मत नहीं हारी।
अब उसके मनोबल और विरोधी परिस्थितियों में युद्ध चल रहा था। उसकी पराजय और भी हुई- कांग्रेस के चुनाव में हार- 1846। फिर भी वह कठिनाइयों से लड़ने को तत्पर।
दोबारा चुनाव में हार-1848। वह फिर भी आपत्तियों से युद्ध कर रहा है। सिनेट के चुनाव में हार-1855। वह जीवन-युद्ध में लगातार आगे बढ़ रहा है। विकट परिस्थितियों से भयभीत नहीं हो रहा है। वह वाइस प्रेसिडेंट के पद के लिये लड़ रहा है !
वाइस प्रेसिडेंट के चुनाव में हार - 1856 वह अपना सर्वस्व खोने को तैयार है, पर खतरनाक परिस्थितियों से हार नहीं मान रहा है। जमकर पूरी हिम्मत से लड़ रहा है। वह अपने में ही नहीं, आस-पास के व्यक्तियों में भी वीरता के भाव जागृत कर रहा है।
सिनेट के चुनाव में हार-1858। उसे सत्ताईस लंबे वर्ष संघर्ष करते-करते व्यतीत हो गये हैं; पर उसका साहस दृढ़ है।
कोई और व्यक्ति होता तो दस बार टूटकर समाप्त हो जाता, पर वह कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने में लगा हुआ है। वह कठिनाइयों को परास्त करके रहेगा। समय बदलता है। अब परिस्थितियाँ उसके पक्ष में हो रही हैं। वह स्वावलम्बन में विश्वास रख रहा है। लीजिये, वह जीत गया। विजयश्री उसे प्राप्त हो गयी है।
प्रेसिडेंट के चुनाव में जीत - 1860 और सर्वोच्च पद की प्राप्ति तीस वर्षों तक निराशा के झूले में झूलते रहने पर भी आशा की ज्योति, पूर्ण विजय, सार्वजनिक सम्मान, यश और विजय-वैजयन्ती को फहराने वाला यह साहसी पुरुष कौन था ।
यह गांव का एक गरीब युवक था। यह वह साहसी व्यक्ति था, जो इच्छाशक्ति के कारण मुसीबतों के तूफान से घिर जाने पर, भी कभी निराश नहीं हुआ।
यह वह आदमी था, जिसने दुर्भाग्य के आगे कभी हार नहीं मानी, दृढ़ आत्मविश्वास का सम्बल लेकर नित्य नवीन उत्साह से जीवन-पथ पर आगे बढ़ता चला गया। वह था अमेरिका-जैसे विशाल देश का भूतपूर्व राष्ट्रपति- अब्राहम लिंकन
राम चरण महेंद्र
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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